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समलैंगिक संबंध अपराध हैं या नहीं ? इस पर पुनर्विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली,08 जनवरी : सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने पर सहमत हो गया है। कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा , जस्टिसस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि दो सदस्यीय जजों द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को सही ठहराये जाने के फैसले से सेक्सुअल पसंद के अधिकार का हनन होता है। 

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने नौ जजों की संविधान बेंच द्वारा निजता के अधिकार पर फैसले में किसी व्यक्ति की सेक्सुअल पसंद को निजता का मामला बताने का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि जानवरों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बनाने पर कोई विचार नहीं करेगा। कोर्ट ने कहा कि बच्चों के साथ यौन हिंसा के मामले पर कड़े दंड प्रावधानों को चुनौती देनेवाली किसी भी याचिका पर विचार नहीं करेगा।

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इसके साथ ही कोर्ट ने लेस्बियन और गे समुदाय के बीच सहमति से बने यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से हटाने के मामले पर विचार करने के लिए संविघान बेंच को रेफर कर दिया। दरअसल लेस्बियन और गे समुदाय के पांच याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर धारा 377 को निरस्त करने की मांग की है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें उनकी सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से हमेशा पुलिस का भय बना रहता है।

याचिका में ये भी कहा गया है कि वो गे, लेस्बियन हैं और ये कानून संविधान के जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसके तहत सभी को अपना पार्टनर चुनने और अपने तरीके से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 में बदलाव करने से ये कहते हुए मना कर दिया था कि कानून में बदलाव करना संसद का काम है।  (हि.स.)।

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