गुजरात में तेजी से बंद हो रहे हैं उद्योग धंधे , परप्रांतीयो के पलायन से ……..
अहमदाबाद. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी भले ही यह दावा करें कि उनके राज्य से कोई जनपलायन नहीं हो रहा किंतु हकीकत यही है कि गुजरात में तेजी से उद्योग धंधे बंद होते जा रहे हैं. इसका कारण है परप्रांतीय कर्मियों का पलायन. सन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व बहुमत हासिल करने वाली भाजपा की जीत का प्रमुख कारण ही आर्थिक प्रगति के लिए गुजरात मॉडल सामने रखना था. लेकिन ऐसा लग रहा है कि सामाजिक विरोधाभासों और क्षेत्रीय अस्मिता के चलते यह खोखला साबित होने जा रहा है.
इसे साबित करने के लिए दो सांख्यकी समुच्चय दिए जा सकते हैं. सन 2017-18 में गुजरात की औसत गैर कृषि ग्रामीण मजदूरी देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले 10 प्रतिशत कम थी. शहरों में मजदूरों की मांग को परखने के लिए गैर कृषि ग्रामीण मजदूरी एक सटीक पैमाना है. तर्क की दृष्टि से देखें तो अगर गुजरात में सबसे अधिक औद्योगीकरण का दावा किया जाता है तो वहां इसकी दरें दूसरे राज्यों की तुलना में कहीं आगे होनी चाहिए थीं. इस विसंगति के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री के पास क्या जवाब है. बड़ी संख्या में कर्मियों के कामधंधे की तलाश में गुजरात आने से स्थानीय उद्योगपतियों को मजदूरी की दरें कम रखने में सहायता मिली. सन 2016-17 के आर्थिक सर्वे के अनुसार 30 ऐसे अंतरराज्यीय प्रवासी मार्गों की सूची का खुलासा हुआ जिससे मजदूरों के आने और दूसरे राज्यों में जाने का आंकड़ा पता चलता है. रोजगार की तलाश में गुजरात आने वाले कर्मियों में गुजरात दूसरा बड़ा राज्य बन गया, वहीं जिन राज्यों से मजदूरों या अन्य कर्मियों ने दूसरे राज्यों का रुख किया , उनमें उत्तर प्रदेश ,बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश गिने जा सकते हैं.
खराब राजनीति और गलत अर्थनीति का उदाहरण
सच बात तो यह है कि अगर श्रम की दरें बढ़ती रहीं तो गुजरात की कई गैर कृषि औद्योगिक ईकाइयां अपनी औद्योगिक प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएंगी. ऐसा वाकई में इसलिए होगा यदि पलायन करने वाली श्रमशक्ति राज्य छोड़कर जाने पर विवश कर दी जाए. ऐसा यदि अभी हो रहा है तो यह गुजरात के लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों के लिए तीसरा बड़ा विघटन होगा, जो कि नोटबंदी और जीएसटी के आघात से अभी- अभी उबरी है. कोड़ा लगा कर गुजरात से कर्मियों का पलायन रोकना निश्चित रूप से गुरात में बुरी राजनीति और बलत अर्थनीति का ज्वलंत उदाहरण है. गुजरात में एक बच्ची से रेप के विरोध में उत्तर भारतीयों को स्थानीय लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा और बड़ी संख्या में लोग उत्तर प्रदेश और बिहार लौटने लगे. इस सबके बीच गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने जनपलायन की बात को ही सीधे तौर पर नकार दिया. उन्होंने कहा कि लोग हेट क्राइम्स की वजह से नहीं, बल्कि त्योहारों की वजह से घर वापस जा रहे हैं. हालांकि, गुजरात के बड़े रेलवे स्टेशन्स का पिछले कुछ दिनों का रिकार्ड उठाकर देखें तो पता चलता है कि इस बार घर वापस जाने वालों के पास त्योहारों से ज्यादा वजहें जरूर हैं. आंकड़ों के मुताबिक, अहमदाबाद समेत चार बड़े स्टेशन्स से 5 और 7 अक्टूबर के बीच पैसेंजर ट्रैफिक पिछले वर्ष की तुलना में काफी बढ़ा हुआ था. गांधीधाम स्टेशन में 6 अक्टूबर को 137 प्रतिशत बढ़ोतरी देखी गई. अगर लोग केवल त्योहारों के लिए जा रहे होते तो इतनी बढ़ोतरी होना मुश्किल था.
कई स्टेशन्स पर बढ़ी संख्या
5 अक्टूबर को अहमदाबाद और मेहसाणा में यात्रियों की संख्या में लगभग 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई, जो 7 अक्टूबर को 60 प्रतिशत के करीब पहुंच गई थी. एक रेलवे अधिकारी ने भी बताया है कि बड़ी संख्या में घर जाने के पीछे डर एक बड़ा कारण है. डिविजनल रेलवे मैनेजर दिनेश कुमार ने बताया कि हमलों के कारण यकीनन पलायन हुआ है. हालांकि, इसकी संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है.
CM ने कहा था, ‘नहीं हो रहे हमले’
उल्लेखनीय है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार के हिंदी-भाषी लोग गुजरात में हिंसा के बाद अपने घरों को वापस लौट रहे हैं. दरअसल, बिहार के एक मजदूर के ऊपर एक 14 महीने की बच्ची से रेप का आरोप है. लगातार लोगों पर हमले और नतीजतन उनके घर वापस जाने की खबरों के बीच गुजरात के मंत्री और अधिकारी यह विश्वास दिलाने में जुटे हैं कि लोग अपने घरों को त्योहारों के लिए जा रहे हैं. यहां तक कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी कहा था कि गुजरात के सीएम ने उन्हें बताया है कि वहां उत्तर भारतीयों पर कोई हमले नहीं हो रहे हैं.