काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ भी मां विशालाक्षी के मंदिर में ही विश्राम करते हैं।
Uttar Pradesh.वाराणसी, 30 मार्च = वासंतिक चैत्र नवरात्र में पांचवे दिन (पंचमी) को आदि शक्ति के गौरी स्वरूप विशालाक्षी गौरी के विशेष दर्शन पूजन का विधान है। इनका मंदिर मीर घाट के धर्मकूप क्षेत्र में स्थित है। माना जाता है कि मां के इस रूप की आराधना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। मां नि:संतान स्त्रियों को संतान प्रदान करती हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार इस स्थान पर मां सती का कर्ण-कुण्डल और उनका एक अंग गिरा था। जिससे इस स्थान की महिमा और माहत्म्य दोनों बढ़ गयी। श्रद्धालु यहां आदि शक्ति भगवती की उपस्थिति मानकर दर्शन-पूजन करते हैं। विशाल नेत्रों वाली मां विशालाक्षी का यह स्थान मां सती के 51 शक्ति पीठों में से एक है। इनका महत्व कांची की मां (कृपा दृष्टा) कामाक्षी और मदुरै की (मत्स्य नेत्री) मीनाक्षी के समान है। पुराणों के अनुसार, काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ भी मां विशालाक्षी के मंदिर में ही विश्राम करते हैं। मंदिर में मां विशालाक्षी की दो मूर्तियां हैं।
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मंदिर के महन्त राधेश्याम दूबे बताते हैं कि वर्ष 1971 में अभिषेक कराते समय पुजारी से मां की मुख्य प्रतिमा की अंगुली खण्डित हो गयी थी। जिसके बाद खण्डित प्रतिमा के आगे मां की दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गयी। मंदिर का जीर्णोद्धार सन् 1908 में मद्रासियों ने कराया। गर्भगृह को छोड़कर मंदिर का अन्य भाग दक्षिण भारतीय मंदिर शैली का बना हुआ है। मंदिर के बाहरी भाग पर रंग-बिरंगे रूप में गणेश जी, शंकर जी समेत कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। मंदिर में भादों मास पर भव्य आयोजन किया जाता है।
इस माह की कृष्ण पक्ष तृतीया को मां विशालाक्षी का जन्मोत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है। बताया कि चैत्र नवरात्र की पंचमी तिथि को मां विशालाक्षी का मंदिर अलसुबह 5 से रात 10 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है। मां की पांच बार आरती की जाती है। बताते हैं कि मां विशालाक्षी के दर्शन से सभी प्रकार का कष्ट दूर हो जाता है और सुख,समृद्धि एवं यश बढ़ता है।