हाईकोर्ट ने लगाई फटकार , अधिकारी कानून से ऊपर नहीं
इलाहाबाद, 05 जनवरी= इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उपआयुक्त स्टैम्प गोरखपुर राम अखिलेश यादव की मनमाने आदेश पारित करने के लिए उनकी खिंचाई की है और कहा है कि कोेई भी लोकसेवक कानून से ऊपर नहीं है। वह बिना कारण बताये मनमाने आदेश पारित कर लोगों का उत्पीड़न नहीं कर सकता।
कोर्ट ने उपआयुक्त स्टैम्प को 25 जनवरी को स्पष्टीकरण के साथ हाजिर होने का निर्देश दिया है और पूछा है कि आदेश पारित करते समय विवेक का प्रयोग कर कारण क्यों स्पष्ट नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि उपआयुक्त ने अपने वैधानिक दायित्व नहीं निभाये।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केशरवानी ने देवरिया के निवासी श्रीमती जानकी देवी की याचिका पर दिया है। याचिका के अनुसार 9 फरवरी 05 में याची ने देवरिया के रामपुर गांव में जमीन का बैनामा लिया। तहसीलदार की रिपोर्ट पर स्टैम्प शुल्क कम जमा करने का मुकदमा कायम हुआ। एडीएम वित्त एवं राजस्व देवरिया ने 30 सितम्बर 06 के आदेश से कहा है कि 32560 रूपये का स्टैम्प शुल्क व पेनाल्टी सहित कुल 50230 रूपये जमा करे। इस आदेश के खिलाफ अपील खारिज हो गयी तो याचिका दाखिल हुई। कोर्ट ने पुनर्विचार कर आदेश देने के लिए प्रकरण वापस कर दिया। इसके बाद पारित आदेशों पर दो बार हाईकोर्ट ने नए सिरे से विचार कर निर्णय लेने को कहा किन्तु मनमाने तौर पर आदेश कायम रहा। कहा गया कि जमीन पर एक कमरा है और शेष जमीन में खेती हो रही है। किन्तु सड़क किनारे है, जमीन का रिहायशी व व्यवसायिक उपयोग भविष्य में किया जा सकता है।
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उप आयुक्त स्टैम्प ने पेनाल्टी चार गुना बढ़ा दी। 4 हजार पेनाल्टी बढ़ाकर दो लाख 3 हजार 608 रूपये का भुगतान मांगा। शुरू में 50230 रूपये ही मांगे थे। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने प्रकरण को तीन बार अधिकारियों को नए सिरे से निर्णय लेने का आदेश दिया किन्तु हर बार मनमानी आदेश पारित किए गए। आदेश देने का कोई ठोस कारण भी नहीं दिया गया। कोर्ट ने अधिकारियों की मनमानी से लोगों के उत्पीड़न पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है और कहा कि अधिकारियों के ऐसे बर्ताव को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने उपआयुक्त व अन्य अधिकारियों द्वारा मनमाने आदेश पारित करने पर स्पष्टीकरण मांगा है कि क्यों न उनके विरुद्ध भारी हर्जाना लगाया जाए। याचिका की सुनवाई 25 जनवरी को होगी।