मॉं दुर्गा का षष्ठम स्वरुप कात्यायिनी
मॉं दुर्गा के नौ रुपों में छठवां स्वरुप मॉं कात्यायनी का है। यह नाम अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, जबकि संस्कृत शब्दकोश में इन्हीं के अन्य नामों में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हैमावती, इस्वरी भी हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, के रुप में भी प्रचलित हैं। स्कंद पुराण के अनुसार मॉं कात्यायनी परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई, जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आदि रूपा हैं, जिसका उल्लेख पाणिनि पर पतांजलि के महाभाष्य में भी मिलता है। परंपरानुसार रूप में देवी दुर्गा की तरह ही मॉं कात्यायनी लाल रंग से जुड़ी हुई हैं।
चैत्र नवरात्र पर्व की षष्ठी में उनकी पूजा की जाती है। इस दिन साधक व उपासक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। इस आज्ञा चक्र का योगसाधना में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में सर्वस्व न्यौछावर करता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त होते हैं। यहां आपको बतलाते चलें कि माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है। कथानुसार कत नामक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए।
विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन इन्हीं कात्य के गोत्र में उत्पन्न हुए। इन्होंने भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। उनकी इस प्रार्थना को माँ भगवती ने स्वीकार कर ली। कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ा तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण इन्हें कात्यायनी के नाम से पहचाना गया। इस प्रकार माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।