बीजिंग, 07 फरवरी (हि.स.)। मालदीव में राजनीतिक संकट के बीच राष्ट्रपति यामीन की तानाशाही के खिलाफ विपक्षी खेमों और सुप्रीम कोर्ट ने भारत से मदद की गुहार लगाई है। इसके बाद भारत ने संकेत दिए हैं कि इस मामले में मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का पालन किया जा सकता, जिसमें सेना को तैयार रखना शामिल है।
यद्यपि, अभी भारत की तरफ से आधिकारिक तौर पर मदद की घोषणा नहीं की गई है, सिर्फ संकेत दिए हैं। लेकिन चीन पहले ही बेचैन हो गया है और कहा है कि मालदीव की सरकार और विपक्ष मौजूदा संकट का हल निकालने में सक्षम हैं, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय दखल की जरूरत नहीं है।
वहीं, चीन के समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स में स्पष्ट रूप से मालदीव को भारत के प्रति सर्तक किया गया है। लेख में कहा गया है कि मालदीव को भारत की भूमिका और अपने देश की स्वतंत्रता में से किसी एक को चुनना पड़ेगा। इसके पीछे दलील दी गई है कि भारत दक्षिण एशियाई देशों को नियंत्रित करना चाहता है। ऐसे में मालदीव को इससे सावधान रहना होगा।
दरअसल, चीन की इस बौखलाहट के पीछे कई कारण हैं। पहला, यह है कि भारत दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों में अपनी मजबूत पकड़ बना रहा है। दूसरा, पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद और अब्दुल गयूम समेत मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर भारत से मदद का आह्वान किया है, जबकि मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और चीन के बीच रिश्ते मजबूत हुए हैं। यहां तक कि मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं, जो पाकिस्तान के बाद ऐसा करने वाला दूसरा देश बन गया है।
ऐसे में चीन को लगता है कि अगर भारत के हस्तक्षेप से यामीन की जगह विपक्षी दल को सत्ता मिलती है, तो चीन और मालदीव के रिश्तों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत इससे पहले भी एक बार अब्दुल गयूम के दौर में सैन्य बल से मालदीव की मदद कर चुका है। यही वजह है कि चीन भारत को मालदीव से दूर रहने की नसीहत दे रहा है।