महाराष्ट्र : कुपोषण और किसानों की आत्महत्या पर राज्य सरकार गंभीर नहीं : हाईकोर्ट
मुंबई, 19 जून : राज्य में कुपोषण किसानों की आत्महत्या व कर्जमाफी जैसी ही समस्या है, लेकिन राज्य सरकार इस समस्या को लेकर गंभीर नहीं है। इस तरह की टिप्पणी सोमवार को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के विरुद्ध किया है और राज्य सरकार को 14 अगस्त तक दिए गए सभी आदेश के आधार पर कार्रवाई करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कार्रवाई नहीं की गई तो मुख्य सचिव व संबंधित जिलाधिकारी को जवाबदेह माना जाएगा।
राज्य में कुपोषण के मुद्दे पर सोमवार को हाईकोर्ट के न्यायाधीश विद्यासागर कानड़े सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अगर विशेषज्ञ लोगों के सुझाव के आधार पर कार्रवाई करती तो पोलियो और चेचक जैसे कुपोषण से भी राज्य को मुक्ति मिल सकती थी। हाईकोर्ट ने कुपोषण के लिए काम करने वाले डॉ. अभय बंग की सिफारिशों के आधार पर कार्रवाई करने का आदेश जारी किया है। डॉ. अभय बंग ने 2004 में अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट व राज्य सरकार को सौंपा था।
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. बंग ने बताया कि इस समय भी राज्य में तकरीबन 11 हजार बच्चों की मौत कुपोषण से हो रही है। इनमें जन्म लेते ही बच्चों की मौत, एक महीने तक बच्चों की मौत का भी समावेश है। इतना ही नहीं मलेरिया, न्युमोनिया, जुलाब आदि बीमारियों से भी कुपोषित बच्चों की मौत हो रही है।
डॉ. बंग ने कहा राज्य में हर साल 2 हजार छात्र डॉक्टर बनते हैं लेकिन सेवाशर्त का उल्लंघन करते हुए यह सभी दुर्गम भाग में नहीं जाते और राज्य सरकार इन सबसे जो अल्प रकम दंड स्वरूप तय की गई है वह भी नहीं वसूलती, जिससे राज्य को हर साल 900 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। राज्य में कुपोषण की जो स्थिति 2004 में थी, वही अब भी है जो चिंताजनक है।
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