पढ़िए, भारतीय संस्कृति में प्रचलित और कई ग्रंथों में उल्लेखित भारत के कई ऐसे रहस्य हैं, जो अभी तक अनसुलझे हुए हैं.
हिन्दू धर्म या भारतीय संस्कृति में प्रचलित और कई ग्रंथों में उल्लेखित भारत के कई ऐसे रहस्य हैं, जो अभी तक अनसुलझे हुए हैं और उनमें से कुछ का तो रहस्य मानव कभी नहीं जान पाया . प्राचीन सभ्यताओं, धर्म, समाज और संस्कृतियों का महान देश भारत वैसे भी रहस्य और रोमांच के लिए जाना जाता है। एक ओर जहां भारत में दुनिया की प्रथम भाषा संस्कृत का जन्म हुआ तो दूसरी ओर दुनिया का प्रथम ग्रंथ ऋग्वेद लिखा गया।
वही जन्मी दुनिया की प्रथम लिपि ब्राह्मी लिपि का जन्म हुआ तो दूसरी ओर दुनिया के प्रथम विश्वविद्यालय नालंदा और तक्षशिला की स्थापना हुई। ज्यामिति, पाई का मान, रिलेटिविटी का सिद्धांत जैसे कई सिद्धांत और आविष्कार हैं, जो भारत ने गढ़े हैं। लेकिन हम इन सबको हटकर कुछ ऐसे 29 रहस्य बताने वाले हैं, जो अब तक बिलकुल अनसुलझे हैं।
ऋषि कश्यप और उनकी पत्नियों के पुत्रों का रहस्य : कहते हैं कि धरती के प्रारंभिक काल में धरती एक द्वीप वाली थी, फिर वह दो द्वीप वाली बनी और अंत में सात द्वीपों वाली बन गई। प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने समुद्र में और धरती पर कई तरह के जीवों की भी उत्पत्ति की। उत्पत्ति के इस काल में उन्होंने अपने काफी मानस पुत्रों को भी जन्म दिया। उन्हीं में से एक थे मरीची। ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे।
मान्यता के मुताबित न्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता ‘कला’ कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। आपको बता दे की यहां रहस्य वाली बात यह कि क्या कोई इंसान सर्प, पक्षी, पशु आदि तरह की जातियों को जन्म दे सकता है? जबकि जीव विकासवादियों को ऐसे में शोध करना जरूर चाहिए। भगवान विष्णु सदा एक गरूड़ पर सवार रहते थे। ये गरूड़जी कश्यप की पत्नी विनीता से जन्मे थे।
ऐसे तो कश्यप ऋषि की कई पत्नियां थीं जबकि प्रमुख रूप से 17 का हम उल्लेख करना चाहेंगे- 1. अदिति, 2. दिति, 3. दनु, 4. काष्ठा, 5. अरिष्टा, 6. सुरसा, 7. इला, 8. मुनि, 9. क्रोधवशा, 10. ताम्रा, 11. सुरभि, 12. सुरसा, 13. तिमि, 14. विनीता, 15. कद्रू, 16. पतांगी और 17. यामिनी आदि पत्नियां बनीं।
- अदिति से 12 आदित्यों का जन्म हुआ- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। ये सभी देवता कहलाए और इनका हिमालय के उत्तर में स्थान था।
- दिति से कई पुत्रों का जन्म हुआ- कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक 2 पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। ये दैत्य कहलाए और इनका स्थान हिमालय के दक्षिण में था। श्रीमद्भागवत के मुताबित इन 3 संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र बिल्कुल नि:संतान रहे जबकि हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।
- दनु : ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई। ये सभी पुत्र दानव कहलाए।
- इनकीअन्य पत्नियां : रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छू आदि विषैले जंतु पैदा किए। ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपने बच्चे के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ इत्यादि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जंतुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।
और यही नहीं रानी विनीता के गर्भ से गरूड़ (विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा हुए। कद्रू की कोख से बहुत से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की 2 पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के 60 हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ, जो कि कालांतर में निवात कवच के नाम से भी विख्यात हुए।
फन, उड़ने वाले, मणिधर और इच्छाधारी सांप होते हैं? आप सभी जानते है की जीव-जंतुओं में सबसे उच्च स्थान गाय का है और उसके बाद सांप ही है! सांप एक रहस्यमय प्राणी है। आपने देखा होगा की आज भी देशभर के गांवों में लोगों के शरीर में नाग देवता की सवारी आती है। शिव के प्रमुख गणों में सांप भी है। भारत में नाग जातियों का एक लंबा इतिहास रहा है। कहते हैं कि कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छू आदि विषैले जंतु पैदा किए। अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला- उक्त 5 नागों के कुल के लोगों का ही भारत में वर्चस्व था। ये सभी कश्यप वंशी थे, जबकि इन्हीं से नागवंश चला। और शेषनाग को 10 फन वाला माना गया है। भगवान विष्णु भी उन पर ही लेटे हुए दर्शाए गए हैं।
माना जाता है कि 100 सालो से ज्यादा उम्र होने के बाद सर्प में उड़ने की शक्ति आ जाती है। सर्प कई तरह के होते हैं जिनमे मणिधारी, इच्छाधारी, उड़ने वाले, एकफनी से लेकर दसफनी तक के सांप, जिसे शेषनाग कहते हैं। नीलमणिधारी सांप को सबसे उत्तम माना जाता है। इच्छाधारी नाग के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी इच्छा से मानव, पशु या अन्य किसी भी जीव के अनुसार अपना रूप धारण कर सकता है। जबकि वैज्ञानिको ने इसकी पुष्टि की है लेकिन 10 फन वाले सांप अभी तक उन्हें नहीं देखे गए हैं।
क्या पारसमणि होती है? मणि एक प्रकार का चमकता हुआ खूबसूरत पत्थर होता है। मणि को हीरे की श्रेणी में रखा जा सकता है। यह भी अपने आप में एक रहस्य है। जिसके भी पास मणि होती थी वह कुछ भी कर सकता था। ज्ञात हो कि अश्वत्थामा के पास एक मणि थी जिसके बल पर वह काफी शक्तिशाली और अमर हो गया था। रावण ने कुबेर से चंद्रकांत नाम की मणि छीन ली थी।
मान्यता है कि मणियां कई प्रकार की होती थीं। नीलमणि, चंद्रकांत मणि, शेष मणि, कौस्तुभ मणि, पारसमणि, लाल मणि आदि। पारसमणि से लोहे की किसी भी चीज को छुआ देने से वह सोने की बन जाती थी। लोग कहते हैं कि कौवों को इसकी पहचान होती है और यह हिमालय के पास में पाई जाती है। और जबकि पौराणिक ग्रंथों में भी मणि के किस्से काफी भरे पड़े हैं।
संजीवनी बूटी का रहस्य अभी भी बरकरार : शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या याद थी जिसके दम पर वे युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे। और इस विद्या को सीखने के लिए गुरु बृहस्पति ने अपने एक शिष्य को शुक्राचार्य का शिष्य बनने के लिए भेजा। उसने यह विद्या सीख ली थी जबकि शुक्राचार्य और उनके दैत्यों को इसका जब पता चला तो उन्होंने उसका वध कर दिया।
रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब राम-रावण युद्ध में मेघनाथ आदि के भयंकर अस्त्र प्रयोग से समूची राम सेना मरणासन्न हो गई थी, तो हनुमानजी ने जामवंत के कहने पर वैद्यराज सुषेण को बुलाया और फिर सुषेण ने कहा कि आप द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर 4 वनस्पतियां लाएं : मृत संजीवनी (मरे हुए को जिलाने वाली), विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। हनुमान बेशुमार वनस्पतियों में से इन्हें पहचान नहीं पाए, तो वह पूरा पर्वत ही उठा लाए। और इस प्रकार लक्ष्मण को मृत्यु के मुख से खींचकर जीवनदान दिया गया।
इन 4 वनस्पतियों में से मृत संजीवनी (या सिर्फ संजीवनी कहें) सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्यक्ति को मृत्युशैया से पुनः स्वस्थ कर सकती है। लेकिन सवाल यह है कि यह चमत्कारिक पौधा कौन-सा है! और इस बारे में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के डॉ. केएन गणेशैया, डॉ. आर. वासुदेव तथा डॉ. आर. उमाशंकर ने बेहद व्यवस्थित ढंग से इस पर शोध कर 2 पौधों को चिह्नित भी किया है।
इन 6 में से भी 3 प्रजातियां ऐसी थीं, जो ‘संजीवनी’ या उससे मिलते-जुलते शब्द से सर्वाधिक बार और सबसे ज्यादा एकरूपता से मेल खाती थी : क्रेसा क्रेटिका, सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम। इनके सामान्य नाम क्रमशः रुदन्ती, संजीवनी बूटी और जीवका हैं। इन्हीं में से एक का चुनाव करना था। अगला सवाल यह था कि इनमें से कौन-सी पर्वतीय इलाके में पाई जाती है, जहां हनुमान ने इसे तलाशा होगा। क्रेसा क्रेटिका नहीं हो सकती, क्योंकि यह दखन के पठार या नीची भूमि में पाई जाती है।
सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस कई महीनों तक एकदम सूखी या ‘मृत’ पड़ी रहती है और एक बारिश आते ही ‘पुनर्जीवित’ हो उठती है। डॉ. एनके शाह, डॉ. शर्मिष्ठा बनर्जी और सैयद हुसैन ने इस पर कुछ प्रयोग किए हैं और पाया है कि इसमें कुछ ऐसे अणु पाए जाते हैं, जो ऑक्सीकारक क्षति व पराबैंगनी क्षति से चूहों और कीटों की कोशिकाओं की रक्षा करते हैं तथा उनकी मरम्मत में मदद करते हैं। तो क्या सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस ही रामायण काल की संजीवनी बूटी है?
सच्चे वैज्ञानिकों की भांति गणेशैया व उनके साथी जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते।इसके लिए उनका कहा की दूसरे पौधे डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम का दावा भी कमतर नहीं है। अब इन दो प्रजातियों के बीच फैसला करने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके संपन्न होते ही रामायणकालीन संजीवनी बूटी शायद हमारे सामने होगी। भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय के ऊपरी इलाके में पौधे की खोज की वो अलग ही अनोखा नज़र आता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पौधा एक ऐसी औषधि के रूप में काम करता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को रेग्युलेट करता है। और हमारे शरीर को पर्वतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में भी काफी मदद करता है और हमें रेडियो एक्टिविटी से भी बचाता है। लेकिन आज तक कोई भी इन जड़ी बूटियों के बारे में सही उत्तर नहीं दे सका है!
क्या कल्पवृक्ष अभी भी है? : वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का काफी उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष प्रकार का वृक्ष है। और पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के मुताबित यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा मांगता है वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा का काफी भंडार होता है। यह वृक्ष समुद्र मंथन से निकला था। और समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी ‘सुरकानन वन’ (हिमालय के उत्तर में) में स्थापना कर दी थी।
कल्प की आयु : कल्पवृक्ष का अर्थ होता है, जो एक कल्प तक जीवित रहे। जबकि अब सवाल यह उठता है कि क्या सच में ऐसा कोई वृक्ष था या अभी भी है? यदि था तो उसे आज भी होना चाहिए, क्योंकि उसे तो एक कल्प तक जीवित रहना है। यदि ऐसा कोई-सा वृक्ष है तो वह कैसा दिखता है? और उसके क्या फायदे हैं? जबकि कुछ लोग कहते हैं कि अपरिजात के वृक्ष को ही कल्पवृक्ष माना जाता है, लेकिन अधिकतर इससे कोई भी सहमत नहीं हैं।
क्या कामधेनु गाय होती थी? : आपको बता दे की कामधेनु गाय की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई थी। और यह एक चमत्कारी गाय होती थी जिसके दर्शन मात्र से ही सभी प्रकार के दु:ख-दर्द दूर हो जाते थे। और दैवीय शक्तियों से संपन्न यह गाय जिसके भी पास होती थी उससे चमत्कारिक लाभ मिलता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था।
आपको पता होगा की हिन्दु्ओं के लिए सबसे पवित्र पशु गाय है। इस धरती पर भी सबसे पहले गायों की कुछ ही प्रजातियां होती थीं। उससे भी प्रारंभिक काल में केवल एक ही प्रजाति थी। जो आज से करीब 9,500 साल पूर्व गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया, जबकि उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नहीं दिया। और गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के सारे100 पुत्र मारे गए थे।
माना जाता है की गाय में 33 कोटि के देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ ‘करोड़’ नहीं, ‘प्रकार’ होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं। इनके कारण गाय से कई तरह के रोगो को दूर करने के गुण भी मोजूत है और इसके हर एक अंग से पुण्य अपने का भी है!
वानर प्रजाति : क्या सचमुच रामायण काल में बताए गए जामवंत एक रीछ थे और हनुमानजी एक वानर? जबकि आज भी यह रहस्य बरकरार है। यदि बजरंग बली वानर नहीं होते तो उनको रामायण और रामचरित मानस में कपि, वानर, शाखामृग, प्लवंगम, लोमश और पुच्छधारी कहकर नहीं पुकारा जाता। लंकादहन का वर्णन भी फिर पूंछ से जुड़ा हुआ नहीं होता।
कहा जाता है कि कपि नामक एक वानर जाति थी। और हनुमानजी भी उसी जाति के ब्राह्मण थे। हनुमान चालीसा की एक पंक्ति है: को नहि जानत है जग में, ‘कपि’ संकटमोचन नाम तिहारो।।
आपको बता दे की कुछ लोग कपि को चिंपांजी के रूप में देखते हैं। वैज्ञानिकों की माने तो ‘कपि प्रजाति’ होमिनोइडेया नामक महापरिवार प्राणी जगत की सदस्य जीव जातियों में से एक थी। जीव विज्ञानी कहते हैं कि होमिनोइडेया नामक महापरिवार के प्राणी जगत की 2 प्रमुख जाति शाखाएं जिसमें से प्रथम को ‘हीन कपि’ दूसरी को महाकपि कहा जाता था। हीन कपि अर्थात छोटे कपि और महाकपि अर्थात बड़े आकार के मानवनुमा कपि। इन महाकपियों की 4 उपशाखाएं भी हैं- गोरिल्ला, चिंपांजी, मनुष्य तथा ओरंगउटान।
शोधकर्ताओं के मुताबित भारतवर्ष में आज से 9 से 10 लाख वर्ष पूर्व बंदरों की एक ऐसी विलक्षण जाति में विद्यमान थी, जो आज से करीब 15 हजार साल पूर्व विलुप्त होने लगी थी और रामायण काल के बाद करीब विलुप्त ही हो गई। इस वानर जाति का नाम ‘कपि’ था। मानवनुमा यह प्रजाति मुख और पूंछ से बंदर जैसी नजर आती थी। भारत से दुर्भाग्यवश कपि प्रजाति समाप्त हो गई, जबकि कहा जाता है कि इंडोनेशिया देश के बाली नामक द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है।
आपको बताना इसलिए जरुरी है, क्योंकि उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया के बीच फ्यूनल विनिमय के कुछ सबूत पाए गए हैं। कर्क ने बताया कि यह जीवाश्म अनुकूलित प्रजातियों के अंत के संबंध में बहुत कुछ जानकारी दे सकते हैं, क्योंकि यह अमेरिका के उस वक्त कितनी विविधता रही थी इस बात के जीते- जागते यह उदाहरण थे।
सिंधु, सरस्वती, गंगा, नर्मदा और ब्रह्मपुत्र : उक्त 5 नदियों को भारत और विशेषकर हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। उक्त पांचों नदियों का जल एक-दूसरे से अलग है जबकि उनमें से नर्मदा नदी को छोड़कर बाकी नदियां हिमालय के एक ही स्थान से निकलने वाली नदियां हैं। नर्मदा एकमात्र ऐसी नदी है, जो सभी नदियों की अपेक्षा विपरीत दिशा में बहती है और इसे पाताल की नदी कहते हैं।
सरस्वती : सरस्वती नदी का तो अब भूगर्भीय हलचलों के कारण अस्तित्व लुप्त हो गया जबकि आज भी वह राजस्थान और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में अपने होने का एक अहसास दिलाती है। और कहते हैं कि करीब 18 ईसापूर्व इस नदी का अस्तित्व मिट गया। इस नदी के किनारे बैठकर ही वेद की ऋचाओं का जन्म हुआ और भगवान ब्रह्मा ने अपने कई महत्वपूर्ण यज्ञ संपन्न भी किए। प्राचीन सभ्यताओं की जननी सरस्वती नदी आज भी एक रहस्य है आज उन लोगों को लिए जो जान-बूझकर इसका अस्तित्व नहीं स्वीकारना चाहते हैं।
शोधानुसार यह सभ्यता करीब 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी और 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और करीब 1800 ईसा पूर्व आते-आते यह लुप्त हो गया। कहा जाता है कि 1,800 ईसा पूर्व के आसपास किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण एक और जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्चिम की ओर पलायन कर दिया। पुरात्ववेत्ता मेसोपोटामिया (5000-300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते हैं, जबकि अभी इस सरस्वती सभ्यता पर शोध करना जरुरी आवश्यकता है।
गंगा नदी : यह एक रहस्य ही है कि आखिरकार गंगा नदी का पानी कभी भी क्यों नहीं सड़ता? जबकि वैज्ञानिक बताते हैं कि इस नदी में 3 प्रकार के ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो अन्य सभी प्रकार के बैक्टीरियाओं को खा जाते हैं जिसके चलते इसका पानी सड़ता नहीं है। मान्यता हैं की यह भारत की सबसे और उच्च पवित्र और रहस्यमय नदी है। इसे राम के वंशज राजा भगीरथ ने स्वर्ग से नीचे उतारा था।
गरूड़ वाहन : गरूड़ का हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है। वे पक्षियों के राजा और भगवान विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरूड़ को कश्यप ऋषि और विनीता का पुत्र कहा गया है। विनीता दक्ष कन्या थीं। गरूड़ के बड़े भाई का नाम अरुण है, जो भगवान सूर्य के रथ का सारथी है। पक्षीराज गरूड़ को जीव विज्ञान में लेपटोटाइल्स जावानिकस कहते हैं। यह इंटरनेशनल यूनियन कंजरवेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट यानी विलुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में है। पंचतंत्र में गरूड़ की कई सारी कहानियां हैं।
प्राचीन मंदिरों के द्वार पर एक ओर गरूड़, तो दूसरी ओर हनुमानजी की मूर्ति आवेष्ठित की जाती रही है। घर में रखे मंदिर में गरूड़ घंटी और मंदिर के शिखर पर गरूड़ ध्वज होता है। इनके नाम से एक व्रत, पुराण भी है। एवं भगवान गरूड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है।
अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्या कभी पक्षी मानव हुआ करते थे? पुराणों में भगवान गरूड़ के पराक्रम के बारे में कई कथाओं का वर्णन मिलता है। की गरुड़ ने देवताओं से युद्ध करके उनसे अमृत कलश को छीन लिया था। उन्होंने भगवान राम को नागपाश से भी मुक्त कराया था। गरुड़ को अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड हो गया था जबकि हनुमानजी ने उनका घमंड चूर-चूर कर दिया था।
चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर एक तीर्थस्थल है जिसे ‘पक्षी तीर्थ’ कहा जाता है। आपको बता दे की यह तीर्थस्थल वेदगिरि पर्वत के ऊपर है। कई सदियों से दोपहर के वक्त गरूड़ का जोड़ा सुदूर आकाश से उतर आता है और फिर मंदिर के पुजारी द्वारा दिए गए खाद्यान्न को ग्रहण करके आकाश में लौट जाता है।
आज सैकड़ों लोग उनका दर्शन करने के लिए वहां पहले से ही उपस्थित हुए रहते हैं। वहां के पुजारी के अनुसार सतयुग में ब्रह्मा के 8 मानसपुत्र शिव के शाप से गरूड़ बन गए थे। उनमें से 2 सतयुग के अंत में, 2 त्रेता के अंत में, 2 द्वापर के अंत में शाप से मुक्त हो चुके हैं। ऐसा कहा जाता है कि अब जो 2 बचे हुए वे कलयुग के अंत में मुक्त हो जायेंगे .