तेहरान, 08 जून = संसद और अयातुल्ला खोमेनी की मजार पर हमला करने वाले जिहादी ईरान के ही थे जो तथाकथित इस्लामिक स्टेट (आईएस) में शामिल हो गए थे। इस हमले में 12 लोगों की मौत हो गई। यह जानकारी अधिकारिक सूत्रों से गुरुवार को मिली।
ईरान के सरकारी टेलीविज़न को दिए एक साक्षात्कार में ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख रज़ा सैफ़ुल्लाही ने कहा कि हमलावर वे थे जो ‘ईरान के ही कई क्षेत्रों से आईएस में शामिल हो गए थे।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली थी और ईरान में शिया मुसलमानों पर और हमले करने की चेतावनी दी थी। उधर, ईरान के रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने इसका मुंहतोड़ जबाव देने का प्रण लेते हुए अमरीका और सऊदी अरब पर उंगली उठाई है, क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में सऊदी अरब का दौरा किया था।
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हालांकि अमरीका और सऊदी अरब दोनों ने ही इस हमले की भर्त्सना की है।
विदित हो कि ईरान को हमेशा से एक सुरक्षित देश माना जाता रहा है। ऐसा भी माना जाता है कि ईरान ने अपने आप को चारों ओर से सुरक्षित कर रखा है। वहां कुछ राजनीतिक विद्रोह जरूर रहे हैं, लेकिन भीतरी विद्रोह कभी नहीं रहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान में इस तरह का इसलिए हुआ है कि वह सीरिया और इराक में चरमपंथियों के खिलाफ सरकार का समर्थन करता है। नतीजा है कि आईएस जैसे बागी चरमपंथियों पर दबाव बढ़ा है।
जानकारों का मानना है कि दुनियाभर में शिया सुन्नी विवाद बढ़ रहे हैं और आने वाले समय में यह और गंभीर रूप लेगा और ईरान को भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा।