जजों के नाम पर रिश्वत देने के मामले की एसआईटी जांच संबंधी याचिका खारिज, 25 लाख जुर्माना
नई दिल्ली, 01 दिसंबर (हि.स.)। मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने के लिए जजों के नाम पर रिश्वत देने के मामले की एसआईटी जांच की मांग करनेवाली कैंपेन फॉर जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड जुडिशियल रिफॉर्म्स ( सीजेएआर) की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सीजेएआर पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। ये रकम सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट वेलफेयर फंड में जमा किया जाएगा। कोर्ट ने 27 नवंबर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि इस मामले में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है। तब जस्टिस आरके अग्रवाल ने कहा था कि ये पहले ही कहा गया है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं है। तब प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर ये आधारहीन एफआईआर होता तो हम इस कोर्ट में आते ही नहीं। हम यहां न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसकी अखंडता के लिए आए हैं। जस्टिस अरुण मिश्रा ने पूछा था कि सीजेएआर एक गैर पंजीकृत संस्था होने के नाते कैसे याचिका दायर कर सकती है। यहां तक कि हलफनामे में किसके नाम से याचिका दायर हुई है उसका जिक्र नहीं किया गया है।
केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि ये याचिका वैसी है जैसी कामिनी जायसवाल की थी जो सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। इस मामले में सीबीआई एफआईआर दर्ज करते समय तथ्यों को पूरी तरह समझ नहीं पाई।
कामिनी जायसवाल की ऐसी ही याचिका पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। कोर्ट ने अपने फैसले में वकील कामिनी जायसवाल, प्रशात भूषण और दुष्यंत दवे द्वारा दायर याचिकाएं को कोर्ट की अवमानना की तरह बताया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि अवमानना की प्रक्रिया शुरु नहीं करेंगे। कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता फोरम शॉपिंग कर रहे थे। उन्होंने जस्टिस चेलमेश्वर की बेच के समक्ष जान-बूझकर वही याचिका लगाई जो पहले से एके सिकरी की बेंच के समक्ष लगा रखी थी।
कोर्ट ने कहा था कि बार और बेंच आपसी सहयोग के जरिये सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था को और बेहतर बनाएंगे। कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने केलिए जजों के नाम पर रिश्वत देने के मामले में दर्ज एफआईआर में किसी भी सिटिंग जज का उल्लेख नही किया गया है। कोर्ट ने कहा था कि वरिष्ठ वकीलों ने बिना तहकीकात किए ही चीफ जस्टिस परगैरजिम्मेदार आऱोप लगाए। ऐेसे आरोपों से सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था को शक के दायरे में लाने की कोशिश की गई। कोर्ट ने तीनों वकीलों की आलोचना करते हुए कहा कि कानून के ऊपर कोई नहीं हैं चाहे वो चीफ जस्टिस ही क्यों नहीं हों।