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चीनी मिलें उत्प्रवाह पर लगाएं लगाम: नरेन्द्र मोहन

कानपुर, 04 सितम्बर : चीनी मिलों से निकलने वाला उत्प्रवाह एक गंभीर समस्या है। चीनी मिलों के लिये निर्धारित मानकों के अनुसार प्रति टन गन्ना पेराई करने पर 200 लीटर से ज्यादा उत्प्रवाह नहीं निकलना चाहिये। 

यह बात राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक नरेन्द्र मोहन ने चीनी मिलों के प्रशिक्षणार्थियों के प्रशिक्षण के दौरान कही। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर चीनी मिलों में गन्ने की पेराई से अधिक मात्रा में निकलने वाले उत्प्रवाह को लेकर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसका विषय ईटीपी आपरेशन एण्ड टेक्निक्स ऑफ वेदर इफल्यूएंट एनालिसिस रखा गया। 

कार्यक्रम का शुभारंभ चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो. सुशील सोलोमन ने सोमवार को दीप प्रज्जवलित कर किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि चीनी मिलें लगभग 100 से 200 ली. प्रति टन गन्ने की दर से ताजे पानी का इस्तेमाल करती हैं। इसको समुचित जल-प्रबंधन द्वारा काफी कम (शून्य) किया जा सकता है। ऐसा करने से न केवल प्राकृतिक स्त्रोतों के अंधाधुंध दोहन को कम किया जा सकेगा अपितु पर्यावरण की रक्षा भी की जा सकेगी। साथ ही चीनी मिलों से निकलने वाले उत्प्रवाह को कम करके एक बड़ी समस्या से बचा जा सकेगा। 

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के निदेशक प्रो. नरेन्द्र मोहन ने बताया कि चीनी मिलों में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित उत्प्रवाह के मानकों का आगामी पेराई सत्र 2017-18 से कड़ाई से अनुपालन किया जाना है। यह आवश्यक है कि चीनी मिलें अपने यहां उत्प्रवाह शोधन यंत्र की उपलब्धता सुनिश्चित करें एवं उसको सुचारू रूप से चलाने हेतु प्रशिक्षित एवं कुशल मानव शक्ति की व्यवस्था करें। चीनी मिलों से निकलने वाला उत्प्रवाह एक गंभीर समस्या है। चीनी मिलों के लिये निर्धारित मानकों के अनुसार प्रति टन गन्ना पेराई करने पर 200 ली. से ज्यादा उत्प्रवाह नहीं निकलना चाहिये।

उत्प्रवाह की गुणवत्ता हेतु भी मानक निर्धारित किये गये हैं एवं यह आवश्यक है कि चीनी मिलें अपने यहां आनलाइन सिस्टम की व्यवस्था करें ताकि चीनी मिलों से निकलने वाले उत्प्रवाह की मात्रा एवं उसकी गुणवत्ता पर निरंतर नजर रखी जा सके। इसी प्रकार शीरे पर आधारित आसवनियों के लिये यह आवश्यक है कि वह अपने यहां शून्य द्रव उत्प्रवाह की व्यवस्था सुनिश्चित करें एवं उस के लिये दिशा-निर्देशों के अनुसार बायो कंपोस्टिंग या इनसाइनरेशन ब्वायलर की स्थापना करें। इस विषय पर चीनी मिलों एवं आसवनियों को जागरूक करने एवं विषय का सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक ज्ञान देने हेतु यह महत्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। 

बताया गया कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम में उ.प्र. एवं बिहार की चीनी मिलों एवं आसवनियों में कार्यरत शर्करा तकनीकवेत्ता एवं शर्करा अभियंता भाग ले रहे हैं। संस्थान की फेकल्टी एवं अन्य विशेषज्ञों द्वारा इस विषय पर प्रशिक्षण दिया जायेगा साथ ही भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को उत्प्रवाह की गुणवत्ता की जांच करने हेतु उपलब्ध तकनीक के बारे में प्रायोगिक ज्ञान भी दिया जायेगा। प्रशिक्षण के दौरान सहायक आचार्य डा. संतोष कुमार, सहायक आचार्य डा. विष्णु प्रभाकर सहित अन्य आचार्यों ने अपने-अपने विचार रखे।

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