चहेतों को टिकट दिलाने की कोशिश में लगे भाजपा के नेता-पदाधिकारी!
गोरखपुर, 31 अक्टूबर (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश नेतृत्व इस निकाय चुनाव में अपने संघर्ष के साथियों यानी कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारना चाह रहा है, लेकिन स्थानीय स्तर पर कुछ और ही गुल खिलाने का प्रयास जारी है। स्थानीय नेता अपने चहेतों को टिकट दिलाकर पार्टी की साख को ही दांव पर लगाने में जुटे हैं।
गोरखपुर मंडल के निकाय चुनाव के लिये कई दिनों से मंथन हो रहा है। संभावित उम्मीदवारों का चयन हो रहा है। इधर, चुनाव तिथियों की घोषणा के बाद भी यह प्रक्रिया अधूरी है। परिणाम, बेनतीजा है। कई जगह पर प्रत्याशी चयन के नाम पर आरोप भी लगने शुरू हो गए हैं। आरोपों की सत्यता को आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी भी दबी जुबान स्वीकारने लगे हैं। इसकी भनक स्थानीय नेताओं को भी लग चुकी है, बावजूद इसके इन नेताओं और पदाधिकारियों के आंख की पट्टी नहीं खुल रही है और वे मनमानी करने की कोशिश जारी रखे हुए हैं।
गोरखपुर नगर निगम सीट के अलावा नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों तक का फैसला भी अभी भाजपा नहीं कर पाई है। गोरखपुर-बस्ती मंडलों के जिला व क्षेत्र स्तर तक के पदाधिकारियों की कई दफा बैठक हो चुकी है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पा रहा है। चाहे पार्षद उम्मीदवार के चाय की बात हो या फिर नगर पालिका और नगर पंचायतों के अध्यक्षों और सदस्यों के चयन का मामला, हर जगह धन उगाही और पक्षपात का आरोप लगना आम हो गया है।
इधर, उपेक्षित व निराश कार्यकर्ताओं का कहना है कि अब पार्टी में दलबलुओं का राज है। निष्ठावान कार्यकर्ताओं को केवल आश्वासन की घुट्टी पिलाई जा रही है। इस पर भी चुनाव लड़ने की मंशा रखने वाले कार्यकर्ताओं की उम्मीदवारी में दम को जांचने को बनी कमेटी भी मनमानी उतर आई है। बाहरियों यानी दूसरे दलों से आये नेताओं को ही तवज्जो दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, भाजपा व जनसंघ के एक कद्दावर पूर्व मंत्री के सामाजिक रूप से सक्रिय पुत्र ने कुछ दिनों पहले अपनी भड़ास को सोशल मीडिया पर निकली थी। वह कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से नाराज था। फ़िलहाल, गोरखपुर में शुरू हुई गुटबंदी की आ रहीं खबरें इन आरोपों को बल दे रहा है।
महराजगंज, कुशीनगर व देवरिया जिले में भी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप लग रहा है। यहां अन्य पार्टियों से भाजपा में शामिल हुए कुछ लोगों को प्रभावशाली बताने का कुचक्र भी चल रहा है। हालांकि विनम्र कार्यकर्ताओ में से दो-एक नाम को प्रभावशाली लोगों में जरूर शामिल किया जा सकता है। इतना ही नहीं, कुछेक मामलों में यह बात सामने आई है कि नगर का प्रभार भी उन्हें ही दिया गया है, जो उसी शहर या कस्बे के निवासी हैं। ऐसे में उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया संदिग्ध बनी है। यही वजह है कि कुछ पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों पर अपने चहेतों को टिकट दिलाने के नाम पर अपने तरीके से रिपोर्ट तैयार करने, चुपके से बैठक कर राय-शुमारी करने और खुलेआम धन की डिमांड करने जैसे आरोप सामने आ चुके हैं।