बेंगलुरु (ईएमएस)। कर्नाटक में 12 मई को होने वाले चुनावों से पहले लिंगायतों और वीरशैव लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के विवादास्पद मुद्दे के चुनाव पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित राजनीतिक दलों ने अब सधा हुआ रुख अपना लिया है। दरअसल, लिंगायत-वीरशैव को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने के लिए कर्नाटक कांग्रेस में भी मतभेद हैं। अत: अब सिद्धरमैया भी सतर्कता बरत रहे हैं। राज्य की आबादी में लिंगायत-वीरशैव की 17 प्रतिशत हिस्सेदारी है। करीब 100 निर्वाचन क्षेत्रों में उनका वोट निर्णायक होता है।
कर्नाटक विधानसभा के सदस्यों की संख्या 224 है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और मंत्रिमंडल के कुछ लिंगायत मंत्रियों ने अलग धर्म की मांग को लेकर आंदोलन चलाया। लेकिन अब वे सतर्कता बरत रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि या तो मुद्दा पार्टी के लिए काम कर सकता है या उस पर हिंदू समुदाय को बांटने का आरोप लग सकता है। राज्य मंत्रिमंडल ने 19 मार्च को लिंगायतों और वीरशैव लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए केंद्र को सिफारिश करने का फैसला किया था।
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दूसरी तरफ, मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा इस कदम को अपने वोट बैंक में सेंध लगाने के तौर पर देख रही है और अब तक उसने अपना रूख पूरी तरह साफ नहीं किया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह राज्य के हालिया दौरे के दौरान लिंगायतों के 10 से ज्यादा मठों में गए थे। इसे समुदाय का समर्थन बनाए रखने का प्रयास बताया गया। राज्य की तीसरी बड़ी पार्टी जेडीएस भी मुद्दे पर सधा हुआ रुख अपना रही है। हालांकि, लिंगायत समुदाय से पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बसवराज होरट्टी भी अलग धर्म का दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन का हिस्सा थे।