इसरो ने लॉन्च किया साउथ एशिया सैटेलाइट GSAT , इन 6 देशो को होगा फायदा
श्रीहरिकोटा : भारत की स्पेस डिप्लोमैसी के तहत तैयार हुई साउथ एशिया सैटेलाइट को इसरो ने लॉन्च कर दिया है. इसे शुक्रवर शाम 4:57 मिनट पर श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया. 50 मीटर ऊंचे रॉकेट के जरिए भेजा गया यह सैटेलाइट अंतरिक्ष में शांतिदूत की भूमिका निभाएगा. गौरतलब है कि जीएसएलवी रॉकेट की यह 11वीं उड़ान है.
पाकिस्तान को छोड़ बाकी सभी देशों को फायदा
पहले इसे सार्क सैटेलाइट का नाम दिया गया था, लेकिन पाकिस्तान ने भारत के इस तोहफे का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया था. भारत के इस कदम को चीन की स्पेस डिप्लोमैसी के जवाब के तौर पर देखा जा रहा. भारत का ये शांति दूत स्पेस में जाकर कई काम करेगा. यह एक संचार उपग्रह है, जो नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान को दूरसंचार की सुविधाएं मुहैया कराएगा. सार्क देशों में पाकिस्तान को छोड़ बाकी सभी देशों को इस उपग्रह का फायदा मिलेगा. जानकारों के मुताबिक- भारत का यह कदम पड़ोसी देशों पर चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने में काम आएगा.
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ये हैं इस सैटेलाइट के फायदे
अब सवाल ये है कि अंतरिक्ष में भारत का ये शांतिदूत क्या-क्या भूमिकाएं निभाएगा. इसरो के मुताबिक-इसके ज़रिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे. किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी. इससे देशों के बीच हॉट लाइन की सुविधा दी जा सकेगी और टेली मेडिसिन सुविधाओं को भी बढ़ावा मिलेगा.
साउथ एशिया सैटेलाइट की लागत क़रीब 235 करोड़ रुपये है जबकि सैटेलाइट के लॉन्च समेत इस पूरे प्रोजेक्ट पर भारत 450 करोड़ रुपए खर्च करने जा रहा है. यानी पड़ोसी देशों को एक शानदार कीमती तोहफ़ा.
इसरो अध्यक्ष ने दी जानकारी
इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा, शाम में 4 बजकर 57 मिनट पर प्रक्षेपण होगा. सभी गतिविधियां सुचारू रूप से चल रही हैं. जीसैट को लेकर जाने वाले जीएसएलवी-एफ09 का प्रक्षेपण यहां से करीब 135 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिच केंद्र के दूसरे लांचिंग पैड से होगा. मई 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों से दक्षेस उपग्रह बनाने के लिए कहा था वह पड़ोसी देशों को ‘भारत की ओर से उपहार’ होगा. गत रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने घोषणा की थी कि दक्षिण एशिया उपग्रह अपने पड़ोसी देशों को भारत की ओर से ‘कीमती उपहार’ होगा.
पीएम मोदी ने कहा था, 5 मई को भारत दक्षिण एशिया उपग्रह का प्रक्षेपण करेगा. इस परियोजना में भाग लेने वाले देशों की विकासात्मक जरूरतों को पूरा करने में इस उपग्रह के फायदे लंबा रास्ता तय करेंगे. भविष्य के प्रक्षेपणों के बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा कि इसरो जीएसएलवी एमके 3 के बाद पीएसएलवी का प्रक्षेपण करेगा. उन्होंने कहा कि इसरो अगले साल की शुरुआत में चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण करेगा. इससे पहले संचार उपग्रह जीएसएटी-8 का प्रक्षेपण 21 मई 2011 को फ्रेंच गुएना के कोउरो से हुआ था.
ये हैं इस प्रोजेक्ट की खाशियत
इस मिशन में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं.
इससे दक्षिण एशिया के देशों को कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का फायदा मिलेगा. प्राकृतिक आपदाओं के दौरान कम्युनिकेशन में मददगार होगा
इस सैटेलाइट का नाम पहले सार्क रखा गया लेकिन पाकिस्तान के बाहर होने के बाद इसका नाम साउथ ईस्ट सैटेलाइट कर दिया गया. पाकिस्तान ने यह कहते हुए इससे बाहर रहने का फैसला किया कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है.
मई 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों से दक्षेस उपग्रह बनाने के लिए कहा था वह पड़ोसी देशों को ‘भारत की ओर से उपहार’
इस उपग्रह की लागत करीब 235 करोड़ रुपये है और इसका उद्देश्य दक्षिण एशिया क्षेत्र के देशों को संचार और आपदा सहयोग मुहैया कराना है.