असम के 48 लाख लोगों की नागरिकता साबित करने का दोबारा मौका मिलेगा : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 05 दिसंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने असम के 48 लाख लोगों की नागरिकता के मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का दोबारा मौका मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि जिन 48 लाख महिलाओं को पंचायत द्वारा नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया गया है उसका वेरिफिकेशन के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 22 नवंबर को ऑल असम माइनॉरिटीज स्टूडेंट यूनियन ( आमसू ) और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रख लिया था| सुनवाई के दौरान असम सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने कहा था कि जिन 48 लाख महिलाओं को पंचायत द्वारा नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया गया है उनका कोई कानूनी अस्तित्व नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने इस दलील का न तो समर्थन किया और न ही विरोध किया था।
आमसू की ओर से सलमान खुर्शीद ने कहा था कि नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजनशिप के कोआर्डिनेटर ने अपने 16 दस्तावेजों में से एक दस्तावेज पंचायत द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र को भी सही माना है। लिहाजा ये पूरी तरह से कानूनी दस्तावेज है।
दरअसल असम के ग्राम पंचायत सचिवों ने असम के 48 लाख लोगों को नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया है जिसे गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उन प्रमाणपत्रों को पब्लिक डॉक्युमेंट मानने से इनकार कर दिया था और कहा था कि ये प्राइवेट डॉक्युमेंट हैं। हाईकोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ आमसू समेत छह याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
आमसू ने अपनी याचिका में कहा था कि ये जो प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं वे पब्लिक डॉक्युमेंट ही हैं। आमसू के वकील फुजैल अहमद अय्युबी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इन प्रमाण पत्रों को अंतिम रुप देने में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, महानिबंधक और सुप्रीम कोर्ट की मर्जी रही है। ये 16 सहायक दस्तावेजों में से 13वें स्थान पऱ आता है। आमसू ने कहा था कि अगर इन लोगों के प्रमाणपत्र को सही नहीं माना जाएगा तो सबकी नागरिकता खत्म हो जाएगी और उन्हें विदेशी माना जाएगा। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी से पूछा कि आखिर आपकी प्रक्रिया कब पूरी होगी तो एनआरसी के कोआर्डिनेटर ने कहा कि ये इस साल के अंत तक पूरी हो जाएगी।