सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद बैकफुट पर आया वलसाड पारसी पंचायत
सुप्रीम कोर्ट का दबाव बढ़ा तो पारसी महिला द्वारा गैर-पारसी से शादी करने के बाद अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति देने पर राजी
नई दिल्ली, 14 दिसम्बर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट का दबाव बढ़ा तो वलसाड पारसी पंचायत को बैकफुट पर आना पड़ा| पंचायत ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए ये फैसला किया है कि वे किसी पारसी महिला द्वारा गैर-पारसी से शादी करने के बाद अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति देंगे। इसके पहले पंचायत ने एक पारसी महिला को टावर ऑफ साइलेंस में जाकर अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की इसलिए अनुमति नहीं दी क्योंकि उसने हिन्दू से शादी की थी।
आज सुनवाई के दौरान पारसी पंचायत की ओर से वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच को पारसी पंचायत के इस फैसले की जानकारी दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे पारसी पंचायत को प्रगतिशील रुख अपनाने के लिए राजी करें।
पिछले 7 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने वलसाड के पारसी ट्रस्ट को निर्देश दिया था कि वे ये बताएं कि क्या वे किसी पारसी महिला द्वारा गैर-पारसी से शादी करने के बाद अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति देंगे। कोर्ट के इसी निर्देश के बाद पारसी पंचायत ने अपने फैसले के बारे में सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है कि क्या एक पारसी महिला का धर्म स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत किसी हिन्दू से शादी करने के बाद बदल जाएगा। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य जताया था कि बांबे हाईकोर्ट ने एक पारसी महिला को टावर ऑफ साइलेंस में जाकर अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की इसलिए अनुमति नहीं दी क्योंकि उसने हिन्दू से शादी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में ऐसा कहीं नहीं है की अगर कोई महिला दूसरे धर्मावलंबी से शादी कर ले तो उसे अपने धर्म की रीति रिवाज में शामिल नहीं किया जाएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए स्पेशल मैरिज एक्ट लाया गया ताकि अंतर्धामिक शादियां हो सकें और हर व्यक्ति अपने धर्म का पालन करता रहे।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि संविधान की धारा 25 के तहत हमें धर्म और आस्था चुनने की आजादी है। इस आधार पर किसी को अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने का हक है। उन्होंने कहा था कि समाज में एक लड़के और एक लड़की के प्रति नजरिया अलग-अलग है। यही वजह है कि लड़की को पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया गया। जब कोर्ट ने पूछा कि हाईकोर्ट ने ये फैसला क्यों दिया तो इंदिरा जय सिंह ने कहा कि इसलिए कि उसने एक हिन्दू से शादी की थी।
गुजरात के गुलरुख एम गुप्ता ने याचिका दायर कर गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई महिला किसी दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करती है तो ऐसा माना जाएगा कि उसने अपने पति का धर्म अपना लिया है और वह अपने पुराने धर्म को मानने का अधिकार खो देगी।
गुलरुख एक पारसी महिला है जिसने अपनी शादी 1991 में एक हिंदू पुरुष से की। शादी के बाद भी वह पारसी धर्म का पालन करती रही। गुलरुख ने एक दूसरी पारसी महिला दिलबार वाल्वी का उदाहरण दिया जिसने एक हिंदू से शादी की थी। जब दिलबार की माता का देहांत हुआ तो उसके अंतिम संस्कार में टावर ऑफ साइलेंस में वलसाड पारसी अंजुमन ट्रस्ट ने शामिल नहीं होने दिया। गुलरुख ने ये आशंका जताई है कि उसके साथ भी ऐसा ही हो सकता है। पारसी पंचायत की ये दलील थी कि ये स्पेशल मैरिज एक्ट का मामला नहीं है बल्कि पारसी पर्सनल लॉ का है और ये करीब 35 साल पुरानी प्रथा है। इस संबंध में सारे दस्तावेज और सबूत मौजूद हैं। कोर्ट ने कहा कि ये सबूत और दस्तावेज कहां से आए हैं। इस मामले को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इससे जुड़े तमाम अदालती आदेशों को भी देखना चाहिए।
गुलरुख ने गुजरात हाईकोर्ट से इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए जाने की मांग की, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अगर कोई महिला दूसरे धर्म के पुरुष से शादी करती है तो उसे अपने पति के धर्म को मानना होगा और अपने धर्म को मानने का अधिकार खो देगी। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान बेंच में जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एके सिकरी शामिल हैं ।