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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, एक साथ तीन तलाक असंवैधानिक

नई दिल्ली, 22 अगस्त : सुप्रीम कोर्ट में अपने ऐतिहासिक फैसले में एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। पांच जजों ने ये फैसला बहुमत से दिया है। जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस आरएफ नरीमन ने इसे असंवैधानिक करार दिया जबकि चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने इसे संसद में कानून बनाने के लिए छोड़ दिया। जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि तीन तलाक संविधान की धारा 14 का उल्लंघन करती है। इनके मुताबिक धारा 14 समानता का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक संवैधानिक नैतिकता और पब्लिक ऑर्डर का उल्लंघन करती है ।

जब सभी जज फैसला सुनाने के लिए साढ़े दस बजे कोर्ट में आए तो सबसे पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने फैसला पढ़ना शुरु किया। उन्होंने कहा कि संसद को इस पर कानून बनाना चाहिए। चीफ जस्टिस और जस्टिस अब्दुल नजीर ने सरकार को कानून बनाने के लिए छह माह का समय दिया। उन्होंने तीन तलाक पर दखल देने से इनकार किया। चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने कहा कि तीन तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि तलाक-ए-बिद्दत संविधान की धारा 14,15,21 और 25 का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने कहा कि तीन तलाक को तुरंत खत्म नहीं किया जा सकता है। सुन्नी समुदाय इसका पिछले एक हजार वर्षों से उपयोग करता रहा है। हालांकि चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने ये माना कि तीन तलाक पाप है, इसलिए सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और उसे कानून बनाना चाहिए।

आज फैसला सुनने के लिए याचिकाकर्ता शायरा बानो भी मौजूद थीं। फैसला सुनाते समय चीफ जस्टिस का कोर्ट नंबर एक खचाखच भरा हुआ था।

तीन तलाक पर सुनवाई करनेवाली पांच सदस्यीय संविच ने 18 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान बेंच ने पिछले 11 मई से छह दिनों तक तीन तलाक की संवैधानिकता पर सुनवाई की थी।
सुनवाई के दौरान किसने क्या दलीलें दीं : 

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल नहीं दे सकता, सरकार चाहे तो कानून बना सकती है । बोर्ड ने कहा था कि निकाहनामा में तीन तलाक का ना कहने का विकल्प मिलेगा जिसके लिए वे काजियों को एडवाइजरी जारी कर रहे हैं । इस पर कोर्ट ने कहा कि इस बारे में आप कोर्ट में हलफनामा दाखिल करें जिसके बाद बोर्ड ने 22 मई को इस संबंध में हलफनामा दायर किया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हलफमाना दायर कर कहा था कि वो काजियों को एडवाइजरी जारी कर कहेंगे कि वो दूल्हा-दुल्हन को समझाएं कि निकाहनामे में 3 तलाक न करने की शर्त रखें। काजी दूल्हे को 3 तलाक से बचने की सलाह भी देगा। बोर्ड ने कहा कि सबको तलाक के सही तरीके बताएंगे। साथ ही तीन तलाक करने वालों का बहिष्कार करने को कहा जाएगा । 

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड से पूछा था कि कोई परंपरा जो शास्त्रों में पाप है, परंपरा में कैसे कायम रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट का सहयोग कर रहे वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद से कोर्ट ने पूछा कि आपने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की है तो क्या आपने मुसलमान होने का हक खो दिया। सलमान खुर्शीद ने जवाब दिया कि मैं अभी भी मुस्लिम हूं लेकिन चूंकि मैंने सिविल लॉ चुना है इसलिए मुस्लिम पर्सनल लॉ मेरे ऊपर लागू नहीं होगा ।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता फरहा फैज ने कहा था कि ये एक राजनीतिक विभाजन है और इसका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है। अब समय आ गया है कि धर्म के ठेकेदारों के चंगुल से मुक्त हुआ जाए और कुरान और शरीयत के मुताबिक चला जाए। 
पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इस दलील का विरोध किया था कि तीन तलाक की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह सदियों से चला आ रहा है। उन्होंने कहा कि तलाक निश्चित रूप से इस्लाम का एक जरूरी हिस्सा नहीं था और कोर्ट में इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि वो चौदह सौ साल पुरानी परंपरा है।

अपने जवाब में उन्होंने कहा था कि धारा 25 के मुताबिक धर्म के आवश्यक तत्व खंड तीन का हिस्सा हैं। हम हर धर्म को संरक्षित करेंगे, लेकिन कोई भी धर्म अगर संविधान के खंड तीन का उल्लंघन करता है तो उसे खत्म किया जाएगा। दूसरे धर्मों में भी ऐसे रीति-रिवाज हो सकते हैं। उन्होंने कहा था कि हिन्दू धर्म में सती प्रथा, विधवा विवाह रोकना, छूआछूत जैसी कुरीतियां खत्म की गईं। तब कोर्ट ने कहा था कि ये सारे विधायिका द्वारा खत्म किए गए कोर्ट के जरिये नहीं। इसके जवाब में अटार्नी जनरल ने कहा कि तब कोर्ट ने विशाखा के मामले में क्यों हस्तक्षेप किया? हमें जो करना है वो हम करेंगे, लेकिन कोर्ट को भी जरूर दखल देना चाहिए ।

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने अपना जवाब देते हुए कहा था कि कोर्ट के रोल पर चर्चा हो कि क्या कोर्ट धारा 32 के तहत इस पर फैसला कर सकता है। हमें ये जवाब देना है कि कानून क्या है? एक साथ तीन तलाक धारा 13 के तहत आता है और ये मौलिक अधिकार की परिधि में है। संवैधानिकता पर फैसला करते समय संहिताबद्ध औऱ असंहिताबद्ध कानून में फर्क नहीं होना चाहिए। यह कहना कि कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ये खतरनाक है। 

कपिल सिब्बल ने तीन तलाक की वकालत करते हुए कहा था कि ये चौदह सौ सालों से परंपरा चली आ रही है। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों में भेदभाव है तो ऐसे में केवल तीन तलाक पर ही रोक की बात क्यों हो रही है? उन्होंने कहा था कि जब राम का अयोध्या में जन्म पर विश्वास किया जाता है तो फिर संविधान को बीच में लाने की क्या जरूरत है? सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल से पूछा कि अगर व्हाट्सएप पर तलाक दिया जाता है तो क्या वह इस्लाम में मान्य है? कपिल सिब्बल ने कहा था कि केंद्र कह रही है कि अगर सुप्रीम कोर्ट तलाक के तीनों रूपों पर रोक लगाती है तो वो कानून बनाएगी लेकिन अगर संसद ने कानून बनाने से मना कर दिया तब क्या होगा?

एक साथ तीन तलाक के बारे में इन तमाम दलीलों और विभिन्न कानूनी पहलुओं पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों की खंडपीठ ने आज तीन-दो के बहुमत से एेतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया गया।

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