सियासी दंगल में दबकर रह गई हरित प्रदेश की आवाज.
मेरठ, 29 जनवरी = पश्चिमी उत्तर प्रदेश अलग-अलग समय में सभी राजनीतिक दलों के लिए उर्वर सियासी जमीन रही है। एक समय कांग्रेस का एकछत्र राज रहा है, तो कभी वामपंथियों के गढ़ के रूप में मशहूर रही है वेस्ट यूपी की जमीन। रामलहर में यहां भाजपा का कमल भी खूब खिला तो सपा और बसपा को भी यहां आशातीत चुनावी सफलता मिली। इसके बाद भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय मुद्दों को उठाकर अंजाम तक पहुंचाने में सभी राजनीतिक दलों ने कंजूसी बरती। वेस्ट यूपी को अलग प्रदेश बनाने का मुद्दा वायदों में ही दम तोड़ता रहा है।
सभी राजनीतिक दल एक बात कहते हैं कि सबसे ज्यादा राजस्व देने के बाद भी प्रदेश के हुक्मरान यहां विकास कार्यों से परहेज करते हैं। वेस्ट यूपी को अलग प्रदेश बनाने के दावे चुनावी सभाओं में खूब हुए, लेकिन लोकसभा व विधानसभा की चौखट पर जाते-जाते सभी दावे दम तोड़ गए। लंबे समय से वेस्ट यूपी को अलग प्रदेश बनाने की मांग होती आ रही है। राष्ट्रीय लोकदल ने वेस्ट यूपी के 26 जिलों को मिलाकर हरित प्रदेश के निर्माण का नारा दिया था, लेकिन सियासी बियाबान में यह नारा धूल-धूसरित हो चुका है। अब रालोद ही अपने इस नारे को भूल चुका है।
कोई भी राजनीतिक दल गंभीरता से वेस्ट यूपी को अलग प्रदेश बनाने की मांग नहीं उठा रहा। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निकट होने का लाभ इस क्षेत्र को मिला तो है, लेकिन यूपी की राज्य सरकारें मोटा राजस्व लेने के बाद भी यहां पर खर्च करने से परहेज करती है। यहां के आम जनमानस में एक नारा गूंजता है कि ’पश्चिम कमेरा पूरब लुटेरा’। इसी बात को लेकर वेस्ट को अलग प्रदेश बनाने की मांग उठती रही है।
अलग राज्य की मांग के पीछे प्रदेश की राजधानी लखनऊ और हाईकोर्ट इलाहाबाद को बहुत दूर होना भी है। दोनों स्थानों पर जाने के लिए 500 से 700 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इसमें लोगों की जेब भी ढ़ीली हो जाती है। शिक्षा, कृषि, उद्योग, राजनीति के निर्णय वेस्ट यूपी से कई सौ किलोमीटर दूर होते हैं, जहां पर वेस्ट यूपी के लोगों की आवाज नहीं पहुंच पाती। एक बार इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने में ही यहां के लोगों को पसीने छूट जाते हैं। अलग प्रदेश बनने पर उन्हें राजधानी और हाईकोर्ट अपने निकट ही मिलने की उम्मीद है, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए हरित प्रदेश केवल एक जुमला बनकर रह गया है।
बहुत पुरानी है हरित प्रदेश की मांग
– 1930 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में अखिल भारत हिंदू महासभा के भाई परमानंद ने तत्कालीन संयुक्त
प्रांत के बंटवारे की आवाज उठाई।
– 1953 में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग में 97 विधायकों ने अलग प्रदेश की मांग को उठाया था।
– डाॅ. भीमराव अंबेडकर की पुस्तक में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों को मिलाकर अलग प्रदेश की मांग को उठाया।
– 1977 में जनता पार्टी ने भी छोटे राज्यों की बात कही तो 1978 में विधायक सोहनवीर सिंह तोमर ने उत्तर प्रदेश को
पांच हिस्सों में बांटने की मांग विधानसभा में उठाई।
– राष्ट्रीय लोकदल ने हरित प्रदेश की मुहिम को हवा दी।
– पश्चिमी उत्तर प्रदेश निर्माण संघर्ष समिति, इंद्रप्रस्थ प्रदेश बनाओ मोर्चा समेत तमाम संगठन इस मांग को उठा रहे हैं।
– 2012 में अपने कार्यालय के अंत में तत्कालीन मायावती सरकार ने यूपी के कई टुकड़े करने का प्रस्ताव पास किया।
हरित प्रदेश का प्रस्तावित खाका
प्रस्तावित क्षेत्रफल: 70 हजार वर्ग किलोमीटर
कुल मंडल पांच: मेरठ, सहारनपुर, आगरा, मुरादाबाद, बरेली।
कुल जनपद-26: मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, हापुड़, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा, रामपुर, संभल, आगरा, अलीगढ़, मथुरा, फिरोजाबाद, हाथरस, एटा, मैनपुरी, बरेली, बदायूं, पीलीभीत, शाहजहांपुर।
दिल्ली से मिलाकर इंद्रप्रस्थ प्रदेश की मांग
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग लंबे समय से चली आ रही है। इसके लिए वेस्ट यूपी के कुछ जिलों को दिल्ली में मिलाकर इंद्रप्रस्थ प्रदेश बनाने की मांग भी चली आ रही है। इंद्रप्रस्थ प्रदेश निर्माण संघर्ष समिति के पदाधिकारी डाॅ. स्नेहवीर पुंडीर का कहना है कि उत्तर प्रदेश का निकट भविष्य में बंटवारा होना निश्चित है। भाषाई और सांस्कृतिक आधार पर वेस्ट यूपी का पूर्वी उत्तर प्रदेश से कोई मेल-मिलाप नहीं है। जबकि वेस्ट यूपी के जिले दिल्ली के नजदीक है। मेरठ और सहारनपुर मंडल को दिल्ली के साथ जोड़कर इंद्रप्रस्थ प्रदेश का निर्माण किया जाना चाहिए। इससे दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा भी मिल जाएगा।