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शब : रात के अंधियारों का सच

फिल्म समीक्षा – रेटिंग 1.5 स्टार

निर्देशक ओनीर जिंदगी के डार्क हिस्से को लेकर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। इस बार तो उनकी फिल्म का टाइटल ही शब, यानी रात है। इस अंधेरे भरी कहानी में इंसानी किरदारों की ऐसी सच्चाइयां सामने आती हैं, जो बहुत बार हमारी कल्चर, हमारी सोच और हमारी परंपराओं से टकराव की स्थिति में बदल जाती हैं। नए जमाने के खुलेपन में अप्राकृतिक रिश्तों की असहजता ही इस फिल्म की खूबी है और यही कमजोरी भी, जो हमारे परंपरावादी दर्शकों के गले नहीं उतरने वाली। 

शब की कहानी दिल्ली की है, जिसमें मोहन (आशीष बिष्ट) माडल बनने की हसरत लेकर गांव से देश की राजधानी का सफर तय करता है, लेकिन जल्दी ही असफलता की निराशा में घिर जाता है। ऐसे में उसकी जिंदगी में सोनल (रवीना टंडन) आती है, जो अपनी शादीशुदा जिंदगी से नाखुश है और मोहन में खुशियां तलाशती हैं। 

मोहन का दिल एक होटल में काम करने वाली महिला वेटर रायना (अर्पिता चटर्जी) पर आ जाता है। रायना होटल के मालिक नील से एक तरफा प्यार करती है, वो गे निकलता है। नील की दोस्ती जिस गे दोस्त से है, रायना उनको मिलवाने का काम करती है, लेकिन उसकी और मोहन की जिंदगी के रिश्तों की परेशानियां न दूर होती हैं न खत्म होती हैं। बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करने वाले क्लाइमेक्स पर जाकर फिल्म रुक जाती है। 

ओनीर ने निर्देशक के तौर पर हमेशा समाज का वो हिस्सा दिखाया, जो असहजताओं से भरा हुआ होता है। इनमें से कुछ के साथ हम जुड़ पाते हैं, लेकिन सबसे नहीं। सबको एक कहानी से जोड़ने की ओनीर की कोशिश अगर कामयाब नहीं होती, तो इसकी सबसे बड़ी वजह एक साथ कई सारे किरदारों के ट्रैक हैं, जो आपस में उलझकर कहानी का बेड़ा गर्क करने का काम करते हैं और निर्देशक के तौर पर ओनीर की कमजोरी ये है कि ये सारा रायता उन्होंने खुद फैलाया। वे किरदारों को संतुलित नहीं रख पाते और कई मौकों पर बोल्डनैस के नाम पर कहानी को दिशाहीन बना डालते हैं। इन कमजोरियों के चलते फिल्म अपने मकसद से भटक जाती है। 

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परफारमेंस में रवीना टंडन ने अपने किरदार के साथ न्याय किया। मोहन के किरदार में नए कलाकार आशीष बिष्ट थोड़ा कमजोर रहे, जबकि उनके मुकाबले अर्पिता का कैमरे के साथ कांफिडेंस बेहतर है। वे फिल्म का सबसे आकर्षित चेहरा हैं। 

ऐसी फिल्मों के बाक्स आफिस पर धूम मचाने की संभावना शून्य होती है। बेहद समझदार, बहुत आधुनिक सोच रखने वाले जो दर्शक गंभीर सिनेमा को पसंद करते हैं, उनके लिए ही ये फिल्म है। आम दर्शक इस फिल्म के मायूसी के सिवाय कुछ हासिल नहीं करेंगे। शब में रात के अंधेरे की सच्चाई है, लेकिन बाक्स आफिस की कामयाबी की रोशनी इस फिल्म के नसीब में नहीं है। 

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