राष्ट्रीय सुरक्षा पर जागरूक हों देश का आम नागरिक: आरएसएस
नई दिल्ली, 04 नवम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय सह सम्पर्क प्रमुख अरुण कुमार ने कहा कि देश की सुरक्षा से संबंधित विषयों के बारे में आम आदमी को जागरूक होना चाहिए तभी देश की एकता और अखंडता पर मौजूद चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम केवल विशेषज्ञों के विचार-विमर्श के मुद्दे नहीं हैं बल्कि आम जन को भी इनसे परिचित होना चाहिए।
अरुण कुमार ने यह बात शनिवार को भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) में आयोजित तीन दिवसीय युवा विमर्श-2017 के समापन सत्र में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा में हमारी भूमिका’ विषय पर छात्रों को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि चीन के विश्वविद्यालयों में भारत पर अध्ययन के लिए केंद्र बनाए गए हैं। इनमें भारत की अर्थव्यवस्था, समाज जीवन सहित हर विषय पर अध्ययन हो रहा है और इसका हमें तभी पता चलता है जब उसके परिणाम सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि असल में दूसरों का अध्ययन करना हमारा स्वभाव नहीं है। इसके कारण हम परेशानी झेल रहे हैं। उन्होंने चाणक्य के विचार का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि आप अपने प्रतिद्वंदी की ताकत और कमजोरी को जानते-समझते हैं, साथ ही मुकाबला करने की प्रतिरोधक क्षमता है तभी सुख से रह सकते हैं।
अरुण कुमार ने युवाओं को सोशल मीडिया पर भ्रामक संदेशों को बिना सोचे विचारे अन्य लोगों को भेजने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि आज सोशल मीडिया का इस्तेमाल समाज को बांटने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक संघर्ष की अवधारणा को समझने की जरूरत है। हमारे आस्था के केंद्र राम और कृष्ण पर उपहासात्मक संदेश जलीकट्टू या दलित बनाम ठाकुर पर बहस असल में कौन करा रहा है। उन्होंने कहा कि जब हम इनकी तह में गये तो पता चला कि इसमें अधिकांश संदेश पाकिस्तान से भेजे गये हैं।
अरुण कुमार ने जेएनयू से लाइब्रेरियन और दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रो. सांईबाबा की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में माओवादी और देश विरोधी शक्तियों ने अपनी पैठ बना ली है। शैक्षणिक परिसरों पर विरोधी विचारधारा का कब्जा हो गया है और उनका प्रभाव बढ़ने से लोगों का इस्तेमाल हो रहा है। उन्हें पता ही नहीं चल रहा है कि वे किन हाथों की कठपुतली बन रहे हैं। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध, शीत युद्ध और पोस्ट कोल्ड वार, रूस और इथोपिया के टूटने का जिक्र करते हुए कहा कि रूस का विखंडन वैचारिक व अलगाववादी विखंडन है। इससे रूस के हिस्सा रहे देश आज भी जूझ रहे हैं। हर दो साल में विश्व का मानचित्र बदल जाता है। उन्होंने कहा कि 1962 में चीन सैनिक आक्रमण करता है तो 67 में नक्सलबाड़ी वैचारिक आंदोनल शुरू होता है और कैसे आज उस आंदोलन का प्रभाव आर्थिक आंदोलन के रूप में बदल गया है। ये युवाओं को सोचना होगा क्योंकि किसी भी देश की सीमाएं त्वजा होती हैं, परिवहन धमनियां होती हैं, उस देश की रीड़ युवा होता है। शिक्षा, रोजगार, परिवहन, सड़क, संचार के माध्यम को हम विकसित करके अपनी सीमाओं को सुरक्षित कर सकते हैं।