राजधानी दिल्ली की हालत जिंदा बम के जैसी , भूकंप का जबर्दस्त खतरा
नई दिल्ली (ईएमएस)। भूकंप तबाही का दूसरा नाम है। हर साल दुनिया में हजारों भूकंप आते हैं और इनमें से कुछ तो भीषण तबाही के निशान छोड़ जाते हैं। कई बार यह बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान करते हैं और एहसास दिलाते हैं, प्रकृति के उस रौद्र रूप का, जिसके सामने किसी की नहीं चलती। अब ऐसे में सवाल यह है कि आखिर भूकंप आते क्यों हैं। भूकंप क्यों आते हैं, यह समझने के लिए हमें पृथ्वी की संरचना को समझना पड़ेगा। पृथ्वी बारह टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है, जिसके नीचे तरल पदार्थ लावा के रूप में है। ये प्लेटें लावे पर तैर रही होती हैं। इनके टकराने से ही भूकंप आते हैं। टैक्टोनिक प्लेट्स अपनी जगह से हिलती रहती हैं और खिसकती भी हैं।
हर साल ये प्लेट्स करीब 4-5 मिलीमीटर तक अपने स्थान से खिसक जाती हैं। इस क्रम में कभी-कभी ये प्लेट्स एक-दूसरे से टकरा जाती हैं। जिसकी वजह से भूकंप आते हैं। अब बात करते दिल्ली-एनसीआर की जो भूकंप के लिहाज से बेहद खतरनाक जोन में आता है। इसके बावजूद यहां अंधाधुंध अवैध निर्माण हो रहे हैं। इन निर्माणों में न तो नेशनल बिल्डिंग कोड का पालन किया जा रहा है और न ही स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग का। दिल्ली में रहने वाले टॉउन प्लानर सुधीर वोरा ने साल 2015 में नेपाल के भूकंप के बाद कहा था कि 6 रिक्टर स्केल का भूकंप भारत को 70 फीसदी तक तबाह कर सकता है।
अगर इस तीव्रता का भूकंप दिल्ली में आता है, तो मुझे लगता है दिल्ली की 80 लाख जनसंख्या का सफाया हो जाएगा। दरअसल, बिना किसी प्लानिंग के विकास ने दिल्ली को एक जिंदा बम जैसा बना दिया है। राज्यों और केंद्र सरकार की अलग-अलग एजेंसियों ने रिस्क को लेकर एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के अनुसार दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों की मिट्टी अलग है। यमुना पार का इलाका रेतीली जमीन पर बसा है और यह हाईराइज बिल्डिंगों के लिए मुफीद नहीं है। जबकि मध्य दिल्ली के रिज इलाके को काफी हद तक सुरक्षित माना जाता है। भूंकप के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है।
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जोन-2 में दक्षिण भारतीय क्षेत्र को रखा गया है, जहां भूकंप का खतरा सबसे कम है। जोन-3 में मध्य भारत है। जोन-4 में दिल्ली सहित उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों को रखा गया है, जबकि जोन-5 में हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ को रखा गया है। जोन-5 के अंतर्गत आने वाले इलाके सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं। इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है। यह हिमालय के दक्षिण में है, जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है, जिसमें चीन आदि देश बसे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंडियन प्लेट उत्तर-पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट की तरफ बढ़ रही है। यदि ये प्लेटें टकराती हैं तो भूकंप का केंद्र भारत में होगा।