रांची, सुप्रिया सिंह
नेता जी के बेटे बनेंगे मंत्री-विधायक और जनता के बच्चे का जीवन गुजरेगा ठेके मे
नेता जी के बेटे-बेटियां ठेकेदारी करेंगे, विधायक बनेंगे, सांसद बनेंगे, मंत्री बनेंगे, मुख्यमंत्री बनेंगे, केन्द्रीय मंत्री बनेंगे, आइएएस बनेंगे, आइपीएस बनेंगे और सामान्य जनता के बच्चे ठेके पर सरकारी कार्यालयों में काम करेंगे, ठेके पर सरकारी दारु दुकानों पर दारु बेचने के लिए रखे जायेंगे, ठेके पर स्कूल में रखे जायेंगे, वह भी घंटी के आधार पर, कितना सुंदर सोच हैं, हमारे राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास का। भगवान से दुआ हैं कि ऐसा ही मुख्यमंत्री पूरे देश के विभिन्न राज्यों को मिल जाये ताकि उन राज्यों का भी उसी तरह विकास हो, जैसा कि झारखण्ड का विकास हो रहा हैं, वह भी हाथी उड़ाकर।
एक लोकोक्ति है, काम का न काज का, दुश्मन अनाज का। एक तो ऐसे ही पूरे राज्य के शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया, पूरे राज्य में प्राथमिक स्कूल ही नहीं, बल्कि अब तो हाई स्कूल को भी बंद करने का फैसला राज्य सरकार ने ले लिया, जिससे गरीब बच्चों के हाथों से स्कूल ही निकल गई और जो बचे हैं, वहां भी ठेका प्रथा से, वह भी घंटी के आधार पर शिक्षक रखने की बात करके, राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बता दिया कि उनकी सोच कितनी निराली है।
राज्य में स्थिति ऐसी है कि ट्रेंड पारा टीचरों का मासिक वेतन 9000 और अनट्रेंड पारा टीचर का मासिक वेतन 7000 और सरकारी दारु की दुकान में ठेके पर रखे गये दारु बेचनेवाले को सरकार न्यूनतम 14000 रुपये मासिक भुगतान कर रही है, यानी राज्य सरकार को लगता है कि शिक्षा दान – विद्या दान से भी बड़ा दान दारु दान है तभी तो दारु बेचनेवाले को पारा टीचरों से भी ज्यादा यानी दुगनी राशि का भुगतान किया जा रहा है।
राज्य सरकार के इस दिव्य सोच पर राजनीतिक पंडितों का समूह कहता है कि राज्य सरकार ने पारा टीचर रखने शुरु किये, दारु बेचने शुरु किये, भाई मैं कहता हूं कि ये सरकार भी ठीक नहीं चल रही, क्यों न यहां पर पारा सरकार रख लिया जाये और उसे भी पारा टीचर की तरह उनके मंत्रियों को वेतन दिया जाय ताकि राज्य का आर्थिक विकास हो, समुचित विकास हो।
यहां तो बड़ी बेशर्मी दिखाई जा रही हैं, अपना वेतन बढ़ाना हो, तो आराम से सदन में अपनी बढ़ी हुई राशि ध्वनिमत से पास करा लो और सामान्य जनता के दुखदर्द की बात हो तो उसे पारा बनाकर लटका दो, और फिर कहो कि हमने विकास की गंगा बहा दी, ऐसी सरकार और ऐसी सोच रखनेवाली सरकार को तो जनता को चाहिए कि ऐसी सबक सिखाये कि वह जिंदगी भर याद रखें, पर चूंकि जनता वोट देने के समय जाति व धर्म के नाम पर बह जाती है, जिसका फायदा सभी राजनीतिक दल उठाते है।
फिर अंत में राज्य की जनता के बच्चे पारा ही पारा बनकर जीवन गुजार देते हैं और नेताओं के बेटे-बेटियां इन सामान्य जनता के बच्चों का तब तक रक्त चूसते रहते हैं, जब तक उनकी शरीर की सिट्ठियां नहीं बन जाती। परिणाम सामने हैं, जरा देखिये झारखण्ड सरकार में शामिल मंत्रियों और उनके विधायकों के ठाठ-बांट। वो याद हैं न भाजपा का ही बोकारो विधायक ने एक क्रुद्ध युवा को यह कहकर शांत कराया था कि एक विधायक का एक महीने का खर्च दस लाख रुपये होता है। अभी भी वक्त हैं सोचिये, नहीं तो जिंदगी भर शोषण के शिकार होते रहियेगा, और ये नेता आपकी बोटी-बोटी नोच लेंगे।