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मीनाक्षी लेखी ने पूछा कुरान में किस आयात में तलाक-ए-बिद्दत का है जिक्र

नई दिल्ली : संसद में तीन तलाक बिल को लेकर जोरदार बहस चल रही है। एक तरफ बीजेपी सरकार जहां इस बिल को पास कराने को लेकर अड़ी हुई है, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां इसे ज्वाइंट सेलेक्ट कमेटी में भेजने को लेकर आवाज बुलंद कर रही है।

वही बीजेपी सरकार का कहना है कि उन्होंने इस बिल में वह सभी बदलाव कर दिए हैं, जिनको लेकर विपक्षी पार्टियां मांग कर रही थी, ऐसे में इसका विरोध करना सिर्फ महिलाओं के सम्मान के खिलाफ होगा। सरकार की तरफ से बोलते हुए बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि प्रधान सेवक की सेवाओं के लाभ से मुस्लिम महिलाओं को वंछित नहीं रखा जा सकता। हमारी सरकार महिला को सशक्त नहीं बल्कि सशक्त महिलाओं के द्वारा ही उनके सशक्तिकरण की बात कर रही है।

 तलाक-ए-बिदत महिलाओं के अधिकारों से वंचित करता है, जिसे कोर्ट भी असंवैधानिक करार दे चुका है। उन्होंने कहा कि महिला चाहे हिंदू हो या मुस्लिम हो या किसी और धर्म की हो, अधिकतर महिलाएं तलाक से दूर भागती हैं। आज जीवनभर निभाने की बात होती है, किसी को अधिकार दे देना की तलाक तलाक तलाक, क्या यह सही है। कोई सुलह आपसी बातचीत का रास्ता तो होना चाहिए। कांग्रेस ने हमेशा से तुष्टीकरण की राजनीति की है वरना मुस्लिम महिलाओं को उनका हक कब का मिल गया होता।

हम देश में यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड लागू करना चाहते हैं न कि मुस्लिम या हिन्दू कानून।मीनीक्षी लेखी ने कहा कि कुरान में किस आयात में तलाक-ए-बिद्दत का जिक्र है, बताए? सारा माजरा यह कहा जा रहा है कि सिविल मामलों को आप आपराधिक नहीं बना सकते, ट्रिपल तलाक में पहली बात ये है कि सारे अधिकार पुरुषों के हाथ में दे देती है.

 जिसपर किसी भी विपक्षी सांसद ने बात नहीं की है। जो लोग सबरीमाला कर रहे हैं वो अगर शशि थरुर का ट्वीट भी पढ़ लेते तो समझ आ जाता, उन्होंने भी कहा कि सबरीमाला का मामला धार्मिक मामला है। लेकिन यहां मामला अधिकारों का, लैंगिक समानता का मामला भी है जो कि संविधान के दायरे में है।

कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने जताया ऐतराज कहा ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’

कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने संदन में चर्चा के दौरान बिल पर बोलते हुए कहा कि हमें ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ से ऐतराज है, बिल से हमें कोई आपत्ति नहीं है। इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाना चाहिए। इस्लाम के रिवाजों में दखल का हक न कोर्ट को है और न संसद को.

इसके लिए कानून लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि तलाक कानून के नाम पर आप मुस्लिम महिलाओं को कानूनी केस के अलावा कुछ भी नहीं दे रहे हैं। शाहबानो और सायरा बानो के केस से हमें कुछ सीख लेने की जरूरत है। इतिहास में अगर किसी कानून ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार दिया है तो वह राजीव गांधी सरकार की ओर से लाए गए 1986 के कानून से मिला है।

रविशंकर प्रसाद ने कहा तीन तलाक बिल घर में नारी के सम्मान का मामला

इसपर सदन में सरकार की तरफ से बोलते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक बिल किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि यह बिल महिलाओं को सम्मान देने से जुड़ा है और कांग्रेस पहले इस बिल पर चर्चा के लिए तैयार थी। जब दिसंबर में बिल लाए थे तब भी बिल लोकसभा में पास हुआ था, लेकिन राज्यसभा से लौट गया था। विपक्ष की कई सिफारिशों के मुताबिक बिल में बदलाव भी किए गए हैं और पीड़ित महिला के अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित किए गए हैं।

 कानून मंत्री ने कहा कि इस मामले को सियासत के तराजू पर नहीं इंसाफ के तराजू पर तौला जाना चाहिए, यह घर में नारी के सम्मान का मामला है। क्या राजनीतिक कारणों से तीन तलाक की पीड़ित महिलाओं के पक्ष में कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। यह बिल महिलाओं के न्याय से जुड़ा है और सदन को एक सुर में बोलना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि हम संसद से अपील करेंगे कि वह तीन तलाक के खिलाफ बिल पारित करे। एक आंकड़े के मुताबिक जनवरी 2017 से लेकर 10 दिसंबर तक देश में 477 तीन तलाक हुए हैं।

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा ज्वाइंट सेलेक्ट कमेटी में भेजे बिल

 

मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा में कहा कि तीन तलाक बिल बहुत जरूरी बिल है और इस बिल के ज्वाइंट सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाना चाहिए, क्योंकि सरकार किसी धार्मिक मामले में हस्तक्षेप कर रही है। खड़गे ने कहा कि इस बिल से करीब 30 करोड़ महिलाएं प्रभावित होंगी और उनकी रक्षा जरूरी है। कांग्रेस, टीएमसी समेत कई अन्य दलों के सांसद तीन तलाक बिल को ज्वाइंट सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग कर रहे हैं।

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा सरकार ने किसी स्टेक होल्डर्स से पक्ष नहीं जाना

वहीं लोकसभा में इस मामले में AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सरकार ने किसी स्टेक होल्डर्स से बिल के बारे में उनका पक्ष नहीं जाना है। कई अन्य दलों के सांसद भी बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग कर रहे हैं। इस पर संसदीय कार्यमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि इस बिल को रोकना ठीक नहीं है और इसपर चर्चा होनी चाहिए।

क्या हैं तीन बदलाव…

पहला संशोधन:

पहले का प्रावधान- इस मामले में पहले कोई भी केस दर्ज करा सकता था. इतना ही नहीं पुलिस संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर सकती थी।

अब संशोधन के बाद- अब पीड़िता, सगे रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकेंगे।

दूसरा संशोधन:

पहले का प्रावधान-पहले गैर जमानती अपराध और संज्ञेय अपराध था। पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकती थी।

अब संशोधन के बाद- मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार होगा।

तीसरा संशोधन:

पहले का प्रावधान- पहले समझौते का कोई प्रावधान नहीं था।

अब संशोधन के बाद-मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रहेगा।

तीन तलाक पर अबतक…

– 16 महीने पहले आया था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

– तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था

– अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था

– सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कानून बनाने को कहा था

– सरकार ने लोकसभा से मुस्लिम महिला विधेयक पारित कराया

– लोकसभा में 28 दिसंबर 2017 को पास किया गया था

– विधेयक को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पेश किया था

– 10 अगस्त 2018 को बिल राज्यसभा में  पारित नहीं हो सका

– राज्यसभा में सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है

– राज्यसभा ने विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ वापस कर दिया

– विपक्ष की मांग थी कि आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान हो

– विपक्ष की मांग पर विधेयक में जमानत का प्रावधान जोड़ा गया

– बिल में पहले जमानत का प्रावधान नहीं था

– 19 सितंबर 2018 को सरकार ट्रिपल तलाक़ पर अध्यादेश लाई

– विपक्ष की मांग के बाद सरकार ने बिल में तीन संशोधन किए

– संशोधन के बाद विपक्ष विधेयक पर चर्चा को तैयार हुआ

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