‘गुरूग्राम’ के ‘रेयान इंटरनेशनल स्कूल’ में सात वर्ष के विद्यार्थी प्रद्युम्न की हत्या को पिछले कुछ दिनों से इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया ने इतना अधिक कवरेज दिया है कि फिर वही पुराने अलाप व आरोप मीडिया ट्रायल की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं। निश्चित रूप से मासूम की उक्त जघन्य हत्या ने अभिभावक के साथ साथ आम नागरिकों को झकझोर दिया है, जिसकी भर्त्सना के लिये शब्द नहीं हैं। एक मॉं ही उस असीमित, असहनीय, अविरल दुख को महसूस कर सकती है व वह उसे घिसटते हुए जी रही है। अन्य लोग सिर्फ शब्दों द्वारा ही संवेदना व्यक्त कर सकते हैं। इन सबके बावजूद इस घटना को जिस तरह से मीडिया के द्वारा प्रसारित प्रचारित किया जा रहा हैं ‘क्या यही एक उचित तरीका बचा हैं’ प्रश्न यह है?
इस तरह की यह प्रथम घटना नहीं हैं, पूर्व में भी घटित होती रही हैं। विद्यमान घटना के 24 घंटे के भीतर ही न केवल अभियुक्त पकडा जा चुका है बल्कि उसने अपने इकबालिया बयान में जुर्म भीे स्वीकार कर लिया है। वह एक मानसिक रोग का शिकार हो सकता है, जैसा कि उसने हत्या के उद्देश्य के संबंध में अपने बयान में बतलाया था। इसके बावजूद पीड़ित परिवार के सदस्य पुलिस जांच से संन्तुष्ट नहीं हैं, एवं सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं जिसके लिये वे उच्चतम न्यायालय भी पहुंचे हैं।
यह उनका एक पूर्ण संवैधानिक अधिकार है जिसकी हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने इसका संज्ञान लेते हुए इसे मात्र एक घटना न मानकर स्कूलों में हो रही ऐसी घटनाओं व अव्यवस्था को रोकने के लिए केन्द्र सरकार, हरियाणा सरकार, मानव संसाधन मंत्रालय व सीबीएसई को नोटिस जारी कर पूछा है कि स्कूल के बच्चों की सुरक्षा के बारे में व ऐसी घटना होने पर स्कूल प्रबंधक की जवाबदेही क्या होनी चाहिए? प्रद्युम्न के परिवार का यह कहना है कि उक्त हत्या में कन्डक्टर के अलावा और कोई ‘दूसरा’ भी शामिल हैं। यह दूसरा कौन है ? न तो पीड़ित परिवार ने किसी की ओर इंगित किया है और न ही मीडिया ने। यद्यपि मीडिया इस घटना को जोर-शोर से प्रचारित कर रहा है। पुलिस की जांच में भी अभी तक कोई दूसरी थ्योरी सामने नहीं आयी है। एसआईटी की जांच रिपोर्ट में प्रथम दृष्ट्या स्कूल प्रशासन पर गहन लापरवाही व सुरक्षा बंदोबस्त में चूक व विभिन्न नियमों के उल्लंघन के आरोप पाये गये हैं। इस आधार पर पुलिस ने स्कूल के दो प्रशासनिक व्यक्तियों को गिरफ्तार भी कर लिया है व कार्यवाहक प्राचार्य को भी पूछताछ के लिये हिरासत में लिया है।
यदि हम एसआईटी की उक्त रिपोर्ट की सूक्ष्म विवेचना करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि रेयान स्कूल में जो तीन प्रमुख कमियॉं बतलाई गई हैं, वे सब कमोेवेश लगभग हर सरकारी/गैर सरकारी स्कूल में भी मिल जायेंगी। इलेक्ट्रानिक मीडिया के ओवी वैन आज भी किसी स्कूल में चले जाएं तो उनमें कमोबेश उपरोक्त कमियों के साथ और अन्य कई कमियॉं भी मिल जायेंगी। कुछ मीडिया हाऊस ने यह कार्य किया भी है। तब सरकार इस घटना से सबक लेकर तुरंत समस्त स्कूलों की विस्तृत जांच करवाने के आदेश क्यों नहीं दे रही है ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। मीडिया ने भी न तो स्वयं इस दृष्टि से कार्य किया है और न ही सरकार का ध्यान ऐसी कार्यवाही के लिये आकर्षित किया है। यद्यपि अब केन्द्रीय सरकार का मानव संसाधन मंत्रालय एवं कुछ राज्य सरकारों ने उच्चतम न्यायालय द्वारा नोटिस जारी होने के बाद इस दिशा में कुछ कार्यवाही करने हेतु कदम उठाए हैं।
सिर्फ पीड़ित परिवार की असहनीय असीमित व्यथा को लगातार 72-72 घंटे से ज्यादा व्यक्त करके क्या मीडिया अपने दायित्व से मुक्त हो गया है? इस तरह की घटना जब एक ग्रामीण इलाके में छोटे से स्कूल में हो जाती है तब मीडिया कहां चला जाता है? किसी ग्रामीण इलाके की स्कूल की व्यवस्था देख लें। क्या वहॉं बाउंड्रीवाल है? क्या सिक्योरिटी गार्ड हैं। क्या वे सब व्यवस्था इन ग्रामीण स्कूलो में है, जिनकी ओर एसआईटी ने उंगली उठाई है। क्या ग्रामीण स्कूल के ‘बच्चे’ ‘बच्चे’ नहीं होते हैं? अब जब शिक्षा का अधिकार पूरे देश में एक मूल संवैधानिक अधिकार बन गया है, तब सुरक्षित शिक्षा के पैमाने भी पूरे देश में क्यों नहीं लागू होने चाहिए?
एक बात और है, राजनेताओं का शिक्षण संस्थाओं के साथ गहरा नाता है, जिसके कारण यदि पब्लिक स्कूलों में कहीं शिक्षा का स्टेन्डर्ड बढ़ता है तो दूसरी ओर अभिमावकों का आर्थिक शोषण भी बढ़ता है। साथ ही शिक्षण संस्था संचालन में नियमों की बडी अनदेखी भी होती है। लेकिन राजनीतिक दखल होने के कारण कोई भी प्रशासनिक व्यवस्था इन पर कार्यवाही करने में तब तक हिचकती रहती है, जब तक कोई घटना न हो जाय। इस नेक्सस को तोड़ना भी समय की पुकार है।
उक्त जघन्य घटना की भर्त्सना मात्र करते हुए पीड़ित परिवार के साथ पूरी हार्दिक संवेदना दर्शाने के साथ मीडिया अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ ट्रायल कर, अपनी लक्ष्मण रेखा को खुद तोड़ रहा है, और यह पहली बार नहीं हो रहा है। राजीव खण्डेलवाल