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मशहूर तबलावादक लच्छू महाराज को गूगल ने डूडल बनाकर किया याद

नई दिल्ली : मशहूर तबलावादक लच्छू महाराज को गूगल ने उनके 74वें जन्मदिन पर डूडल बनाकर याद किया है. लच्छू महाराज का जन्म 16 अक्टूबर 1944 को हुआ था. लच्छू महाराज को तबले से अगाध प्रेम था. बानगी यह कि कई बार जो वे सवेरे 10 बजे तबले के साथ रियाज को बैठते तो यह सीधा शाम को 6 बजे ही खत्म होता. पुराने बनारस की पतली-पतली गलियों वाले इलाके दालमंडी में दूसरी मंजिल पर उनका घर था. जहां की गलियां उनके इस फन से आबाद रहा करती थीं.

ठाठों में ठाठ बनारसिया
बहुत ही कम उम्र में उन्होंने तबला और बांसुरी बजाना शुरू कर दिया था. लच्छू महाराज का तबला किस कदर मोहने वाला था, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे जब आठ साल के थे तो वे मुंबई में तबला वादन कर रहे थे. वहां मौजूद अहमद जान थिरकवा ने कहा था कि काश लच्छू मेरा बेटा होता. अहमद जान अपने जमाने के मशहूर तबला वादक थे. वैसे लच्छू महाराज पक्के बनारसी थे. आज भी वे अपने मनमौजी अंदाज के चलते बनारस में याद किए जाते हैं. उन्हें लोग इसलिए मनमौजी कहते थे क्योंकि वे सिर्फ अपने मन से ही तबला बजाते थे.

ऐसे ही एक बार उन्हें तबला वादन के लिए बनारस के विश्व विख्यात संकटमोचन संगीत समारोह में बुलाया गया था. लच्छू महाराज ने ऐसा तबला बजाया कि कुछ ही देर में वह जवाब दे गया, माने तबला बजाते-बजाते तबला फट गया. महाराज के लिए नया तबला लाने में काफी देर हो गई. तब तक उनकी लय टूट चुकी थी, फिर उन्होंने आगे बजाने से मना कर दिया. संगीत के जानकार कहते हैं कि बनावटी संगीत साधकों के विपरीत लच्छू महाराज सच्चे संगीत साधक थे. माना जाए तो वे संगीत में विपक्ष थे.

तबले और जीवन में कोई फर्क नहीं था

1975 में जब आपातकाल लगा तब वे भी जेल गए. जहां वे मशहूर समाजवादी नेताओं जॉर्ज फर्नांडिस, देवव्रत मजुमदार और मार्कंडेय को तबला बजाकर सुनाया करते थे. यह उनके विरोध का तरीका था. लच्छू महाराज वक्त के पक्के थे. एक बार उन्हें तबला वादन के लिए आकाशवाणी बुलाया गया. लेकिन जिन महोदय ने बुलाया था, वे खुद 5 मिनट लेट से पधारे. लच्छू महाराज को यह जमा नहीं और वे बिना कार्यक्रम किए ही वापस आ गए.

लच्छू महाराज तवायफों के परिवार से आते थे. एक बार लच्छू महाराज के बारे में बात करते ख्यात साहित्यकार व्योमेश शुक्ल ने कहा था, तवायफों के परिवार से आने वाले कलाकार नामचीन, प्रकांड विद्वान होने पर भी कहीं न कहीं शर्म का अनुभव करते रहे हैं, यह दर्द लच्छू महाराज के चेहरे पर भी दिखता था. वे प्रख्यात कत्थक नर्तक बिरजू महाराज के चाचा और मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी के दामाद थे.

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