फारबिसगंज/अररिया, = सीमांचल को हरित क्रांति का जनक माना जाता रहा है और साठ-सत्तर के दशक में खेती की उपज इसका प्रमाण है लेकिन अब अररिया के किसान अपने खेतों में गेहूं की अच्छी उपज के लिए नेपाल के बीज पर आश्रित हैं।
विडंबना यह है कि नेपाल से आने वाला एनएल ब्रांड गेहूं बीज यहां के गांवों में अपना सिक्का जमा चुका है। साठ सत्तर के दशक में सौ मन प्रति एकड़ की उपज देने वाला लरमा रोहो जैसे गेहूं बीज और टायचून धान ने उपज के मामले में अपना धमाल मचाया था।
जानकारों की मानें तो यह दरअसल चाइनीज गेहूं बीज का नेपाली अवतार है। सिकटी के सीमावर्ती कासत, बौका, उफरैल चौक, कुर्साकाटा, तारावाड़ी, सिकटी सहित दो दर्जन से ज्यादा छोटे बड़े बाजारों में अच्छी क्वालिटी का भारतीय गेहूं बीज नहीं मिलता नएल ब्रांड नेपाली गेहूं बीज आराम से मिल जाता है।
कुर्साकाटा में एक किसान राम नारायण मंडल ने बताया कि एनएल मार्का गेहूं बीज इस इलाके में बीते कुछ साल से खूब चल रहा है जबकि इंडियन बीज अक्सर सुन्न चला जाता है। इसीलिए लोग नेपाली बीज का ही इस्तेमाल करते हैं।
जानकार किसान यह मानते हैं कि एनएल मार्का गेहूं बीज चाइनिज कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है। दो साल पहले सीमा पर पुलिस ने चाउ नामक एक चीनी कृषि जानकार को गिरफ्तार भी किया था। वह भारत की खेतों में खड़ी धान की फसल की तस्वीरें ले रहा था।
चाउ ने अपने बयान में भी यह बताया था कि वह कृषि विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करता है। तस्वीर का दूसरा पहलू तो और निराशाजनक है। प्रशासन व पुलिस की ढिलाई से यहां के खेतों के लिए आवंटित रसायनिक खाद स्मगलिंग के जरिए नेपाल जा रही है और भारत के किसान खाद की किल्लत झेलने को विवश हैं। आप नेपाल से लगने वाली सीमा पर चले जाइए तो खाद की एक नहीं अनेक दुकानें दिख जाएंगी। ये दुकानें केवल उर्वरक तस्करी का रोजगार करती हैं।
इस संदर्भ में सिकटी कैंप प्रभारी एसएसबी 52 वीं बटालियन संदीप सिंह ने कहा कि एसएसबी जवानों ने सीमा पार से आ रहे एनएल ब्रांड गेहूं बीज और इधर से जाने वाले उर्वरकों की कई खेप पकड़ी है। उन्हें कैरी कर रहे लोग भी अरेस्ट किए गए हैं। सीमा पर तैनात जवान पूरी तरह चौकस हैं।