दलित-उत्पीड़न के विरोध में आयोजित उपवास कैसा मजाक बन गया। यह उपवास 10.30 से 4.30 तक चलना था। यह अपने आप में मजाक है। सिर्फ 6 घंटे खाना नहीं खाना कौनसा उपवास है? यदि इसे ही आप उपवास कहते हैं तो भारत में करोड़ों लोग ऐसा उपवास रोज़ ही रखते हैं लेकिन ज्यादा अफसोस की बात यह है कि यह राजघाट पर गांधी समाधि के पास किया गया और एक गांधी के नेतृत्व में किया गया। कौन गांधी ? महात्मा गांधी नहीं, राहुल गांधी ! फर्जी गांधी का फर्जी उपवास ! कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने इस फर्जी उपवास का ढिंढौरा भी खुद ही पीट दिया। उनके छोले-भटूरे सूंतते हुए फोटो सर्वत्र प्रसारित हो गए।
सफाई में उन्हेांने कहा कि दिन में उपवास रखेंगे, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि नाश्ता भी नहीं करेंगे। क्या आप नाश्ते और खाने में फर्क भी नहीं कर सकते ? हमारे गांधीजी ने तो अपने चेलों को भी मात कर दिया। वे उपवास-स्थल पर दिन के 1 बजे पहुंचे याने उन्हें सिर्फ डिनर की ही जरुरत रह गई । तो फिर उपवास 4.30 बजे ही क्यों खत्म कर दिया ? सूर्यास्त का भी इंतजार क्यों नहीं किया ? अरे भई ! ये भी कोई सवाल है ? अरे, ये तो बताओ, क्या यह कम कुर्बानी है ? हमारे गांधीजी का चार बजे चाय का वक्त होता है ? उन्होंने साढ़े चार बजे उपवास तोड़ा, क्या ये कम कुर्बानी है ? लोग तो अनार का रस या नींबू-पानी पीकर उपवास तोड़ते हैं। हमारे आधुनिक गांधी चाय पीकर तोड़ रहे हैं।
दलितों के लिए की गई यह कुर्बानी कम है, क्या ? सोनिया गांधी से मैं यह आशा करता हूं कि वह इस मामले में राहुल को फटकार लगाएंगी। यह ठीक है कि आज की कांग्रेस महात्मा गांधी नहीं, इंदिरा गांधी की कांग्रेस है लेकिन आज यदि इंदिराजी होतीं तो वे इन फर्जी नेताओं पर बुरी तरह से बरस पड़तीं। आजकल देश में फर्जीवाड़े का बोलबाला है। एक पार्टी का नेता फर्जिकल स्ट्राइक करता है तो दूसरी पार्टी का नेता फर्जी उपवास करता है। इससे दलितों को क्या फायदा है ? सभी पार्टियां उन्हें मवेशियों की तरह हांक रही हैं। उनके थोक वोट लेने की खातिर फर्जी सहानुभूति के मेले जुटा रही हैं। (ईएमएस)