पटना, सनाउल हक़ चंचल-
पूर्वोत्तर खासकर असम में बांग्लादेश से घुसपैठ कर भारतीय नागरिकता लेने के मामले में सुप्रीम कोर्ट एक बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्राम पंचायत की ओर से जारी प्रमाण पत्र नागरिकता का दस्तावेज नहीं है। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में शामिल होने के दावे के लिए किसी अन्य वैध रेकॉर्ड के बिना ग्राम पंचायत के सर्टिफिकेट का कोई मतलब नहीं है। कोर्ट के इस फैसले से अवैध बाग्लादेशी प्रवासियों के लिए नागरिकता का जुगाड़ करने वाले नेता एवं बिचौलियों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा कि इस तरह का प्रमाण पत्र जारी करने से पहले कोई पुष्टि नहीं की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह यह यह पड़ताल कर रही है कि क्या गुवाहाटी हाई कोर्ट के इस फैसले, जिसमें राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में एंट्री के लिए पंचायत से जारी दस्तावेज को अवैध करार दिया है। क्या यह फैसला सही है अथवा इन लोगों को नागरिकता के दावे को साबित करने के लिए एक और अवसर दिया जा सकता है। पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में एंट्री के लिए ग्राम पंचायत सचिव के प्रमाण पत्र को वैध मानने के लिए इसकी समुचित पुष्टि की जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट गुवाहाटी हाई कोर्ट द्वारा इसके खिलाफ दिए गए फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें कोर्ट ने फैसला दिया था कि ग्राम पंचायत के सचिव की ओर से जारी प्रमाण पत्र नागरिकता के दावे के लिए कानूनी और वैध दस्तावेज नहीं है।
यहां बता दें कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में नाम शामिल करने के लिए अब तक 3 करोड़ 29 लाख ग्राम पंचायत के सचिवों ने जारी किए है। पंचायत से जारी प्रमाण पत्र के आधार पर करीब 48 लाख लोगों ने नागरिकता का दावा किया है। यह रजिस्टर असम में गैरकानूनी प्रवासियों की पहचान के लिए तैयार किया जा रहा है। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का मसौदा 31 दिसंबर से पहले प्रकाशित किया जाना है।