पिथौरागढ़, 09 मई = उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ से लगी चीन सीमा तक सड़क पहुंचने का इंतजार और बढ़ गया है। सीमा सड़क संगठन ने निर्माण अवधि पूरा करने की समय सीमा फिर दो वर्ष बढ़ा दी है।
एक तरफ जहां चीन फोरलेन सड़क भारतीय सीमा क्षेत्र तक बना चुका है तो वहीं भारतीय क्षेत्र में 13 वर्षों से सड़क का काम पूरा नहीं हो पाया है। इसके पीछे सरकारी मशीनरी विषम भौगोलिक परिस्थितियों की बात कहती रही है। हालांकि सामरिक दृष्टि व कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए इस सड़क का निर्माण बड़ी उपलब्धि मानी जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि भारत में तिब्बत चीन सीमा से सटे उत्तराखंड की सीमांत तहसील धारचूला (पिथौरागढ़) के घटियाबगड़ से लिपूपास तक 76 किलोमीटर सड़क का निर्माण वर्ष 2003 में शुरू हुआ था। कार्यदायी संस्था सीमा सड़क संगठन ने 2008 तक इसे पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा था, लेकिन सड़क पूरी नहीं हो पाई।
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इसके बाद वर्ष 2012 और फिर 2016 तक सड़क पूरा करने की समय-सीमा तय की गई, परंतु सड़क का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया। अब सीमा सड़क संगठन वर्ष 2018 तक इस सड़क का निर्माण पूरा करने का दावा कर रहा है। 76 किलोमीटर लम्बी सड़क में अब तक लगभग 50 किलोमीटर सड़क बन पाई है।
शेष 26 किलोमीटर सड़क बनाने के लिए सीमा सड़क संगठन को कठोर चट्टानें काटनी हैं। यह क्षेत्र पिथौरागढ़ के लखनपुर से गर्बाधार तक है। तकनीक और संसाधनों के लिए अब सीमा सड़क संगठन निजी कंपनियों की मदद ले रहा है। गर्बाधार से अभी तक मात्र चार किमी सड़क कट सकी है। ऊपर लामारी से लखनपुर की तरफ सड़क निर्माण चुनौती बना है।
जनरल रिजर्व इंजीनियर्स कोर (ग्रिफ) के ऑफिसर कमांडिंग (ओसी) मनीष नारायण ने बताया कि सड़क का निर्माण कार्य तय समय में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पूरा नहीं हो पाया। गर्बाधार से लिपूलेख तक निर्माणाधीन मार्ग पर लखनपुर से खानमाडेरा और नजंग से मालपा के मध्य कठोर चट्टान काटने के लिए निजी कंपनियों की मदद भी ली जा रही है। तीन पुलों का निर्माण हो चुका है। अन्य पुलों के निर्माण के लिए बीते दिनों निर्माण सामग्री हेलीकॉप्टर से गुंजी भेज दी गई है। अब सड़क का काम 2018 तक पूरा करने का लक्ष्य है।