पटना, सनाउल हक़ चंचल-
पटना : पारस एचएमआरआई सुपर स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल, राजाबाजार, पटना ने दमा के मरीजों के समुचित इलाज के लिए शुक्रवार 3 नवम्बर को क्राॅनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजिज क्लिनिक (सीओपीडी) लांच करेगा. यह बिहार-झारखंड की पहली सीओपीडी क्लिनिक होगी. इस क्लिनिक की स्थापना का मुख्य मकसद है कि दमा के मरीजों का इलाज गहन जांच-पड़ताल के बाद ही किया जाए. यह जानकारी देते हुए हाॅस्पिटल के पल्मोनोलाॅजी विभाग के डाॅ. प्रकाश सिन्हा ने बताया कि बिहार में कभी-कभी बिना समुचित जाँच-पड़ताल के दमा के मरीज को टीबी का इलाज शुरू कर दिया जाता है जिससे मरीज पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि बार-बार सांस फूलने पर डाॅक्टर से सलाह लेनी चाहिए नहीं तो यह बीमारी सदा के लिए रह जाती है. यह सांस की नली की बीमारी है. अगर इसका इलाज न करा लिया गया तो इसका प्रतिकूल असर दोनों फेफड़ों पर पड़ता है. इससे शरीर में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ने लगती है और आक्सीजन घटने लगता है. जिससे धीरे-धीरे दम फूलना शुरू हो जाता है.
डाॅ. सिन्हा ने बताया कि साधारणतया यह बीमारी उन लोगों को होती है जो लम्बे समय तक सिगरेट, बीड़ी, हुक्का और गांजा पीते हैं. इसके अलावा धुआं, धूल में रहने से भी यह बीमारी हो सकती है. इसे ही दमा कहा जाता है. इस बीमारी की जाँच पल्मोनरी फंक्षन टेस्ट (पीएफटी) से की जाती है. इनहेलर देकर इसका इलाज किया जाता है, लेकिन यह बीमारी जड़ से ठीक नहीं हो पाती है. जाड़े या जाड़े के मौसम की शुरूआत में यह बीमारी कुछ ज्यादा ही होती है. इस बीमारी के लिए परहेज की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि धूल-धुआं से बचना चाहिए. अगरबत्ती और सिगरेट के धुएं से भी बचना चाहिए.
डाॅ. प्रकाश सिन्हा ने कहा कि ब्राँकियल दमा और सीओपीडी दोनों अलग-अलग तरह की बीमारी है जिसका प्रभाव ज्यादा जाड़े में ही देखने को मिलता है. सांस की मोटी नली की बीमारी को ब्राँकियल दमा कहते हैं. जबकि छोटी नली की बीमारी सीओपीडी कहलाती है. पारस को छोड़कर पटना में ऐसी कोई क्लिनिक नहीं है. इस क्लिनिक में मरीज की जाँच की जाती है तथा उसके इतिहास के आधार पर इलाज किया जाता है. जाँच में रियायत भी दी जाती है. खाने के बारे में उन्होंने कहा कि मरीज को सामान्य भोजन करना चाहिए तथा ठंडा खाना से परहेज करना चाहिए. कोल्ड ड्रिंक पीने से सांस की नली में सिकुड़न आ सकती है, इसलिए इससे परहेज करना चाहिए.
हाल के दो मरीजों का हवाला देते हुए डॉ सिन्हा ने कहा कि एक महिला को सीओपीडी था जबकि उसे टीबी का इलाज किया जा रहा था. वह पारस में दिखने आयी तो इसका खुलासा हुआ. टीबी की दवा चलने से उसे पीलिया हो गया था जिससे उसका शरीर पीला पड़ गया था. सभी जाँच कराकर उसका इलाज शुरू किया गया. उसे किमोथेरेपी भी दी गयी. इसी तरह एक लड़के की रीढ़ की हड्डी में तकलीफ थी जिससे उसकी पीठ में दर्द हो रहा था, तो उसे भी टीबी की दवा चला दी गयी जिससे उसे भूख नहीं लग रही थी तथा वह मानसिक तनाव में रहता था. पारस में उसकी रीढ़ की हड्डी की जाँच की गयी तो असली बीमारी का पता चला. रीढ़ की हड्डी के इलाज के बाद अब वह पूर्णतः स्वस्थ है. डाॅ. सिन्हा ने कहा कि सीओपीडी क्लिनिक में गहन जाँच कर इलाज किया जायेगा तो कोई चूक की संभावना नहीं रहेगी.