टाप टेन उद्योगपतियों पर 8 लाख करोड़ का बैंकों का ऋण , कारपोरेट जगत के 5 लाख करोड़ एनपीए में
मुंबई (ईएमएस) भारतीय बैंकों का देश के बड़े बड़े उद्योगपतियों पर लाखों करोड़ रुपयों का लोन बकाया है। पिछले माहों में रिजर्व बैंक आफ इंडिया की सख्ती से लगभग 5 लाख करोड़ रुपयों के बैंक लोन एनपीए की श्रेणी में आ गये हैं। विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी जैसे उद्योग पतियों के देश छोड़कर भाग जाने के बाद, केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक एवं बैंकों पर दबाव बना। उसके बाद बड़े बड़े उद्योगपतियों के लगभग 5 लाख करोड़ का ऋण एनपीए में चला गया है। इन ऋण खातों को एनपीए से बाहर निकालने के लिए 2 लाख करोड़, बैंकों को चुकाने पर नीलामी अथवा दिवालिया कानून के दायरे में आने से बच सकते हैं।
होटल से लेकर बंदरगाह बिकने को तैयार
बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने अपने स्वामित्व के एयरपोर्ट, सड़क, बंदरगाह, स्टील प्लांट, सीमेंट संयंत्र, रिफायनरी, इत्यादि बेचकर बैंकों के ऋण चुकता करने के लिए राष्ट्रीय/अंतरार्ष्टीय स्तर पर प्रयास शुरू कर दिये हैं। देश के सबसे बड़े 10 ओद्योगिक घरानों पर लगभग 8 लाख करोड़ का कर्जा है। इसमें से लगभग 5 लाख करोड़ का कर्ज एनपीए में चला गया है। वहीं सहारा समूह के 86 रियल स्टेट, 4 विमान और 4 होटल भी बिकने जा रहे हैं।
पहली बार देश में एयरपोर्ट, बंदरगाह से लेकर जो खरीदना चाहो, खरीद सकते हो। बशर्ते पैसा हो। बिडंबना यह है कि विजय माल्या, सहारा समूह की संपत्तियां बेचने की कोशिश पिछले कई माह से सुप्रीम कोर्ट, आयकर प्रवर्तन निदेशालय, सेबी और बैंकों के संयुक्त प्रयास के बाद भी सम्पित्त की मूल्य के खरीददार नहीं मिल रहे हैं।
बैंकों की मिलीभगत के घपले, घोटाले
बैंकों ने जिन उद्योग घरानों को हजारों करोड़ का ऋण दिया था। नीलामी में अथवा विक्रय करने पर उसकी 50 फीसदी राशि भी बोली में नहीं मिल रही है। विजय माल्या वाली नीलामी में इसका खुलासा हो चुका है। बड़े बड़े उद्योगपतियों ने बैंकों से हजारों करोड़ का कर्जा लिया। कागजों में खरीद एवं निर्माण में ज्यादा खर्च दिखाकर भारी गोलमाल किया। जिन प्रोजेक्ट पर ऋण दिया हे। उसकी सम्मपत्ति का बाजार मूल्य बैंकों की ऋण रकम से लगभग आधा है।
– शेयरों की खरीद/विक्री में घोटाला-
बड़ी-बड़ी कंपनियों का 10 रुपया वाला शेयर सैकड़ों रुपयों के प्रीमियम पर आम निवेशकों, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं को बेचा गया है। एनपीए होने के बाद इन कंपनियों का शेयर मूल्य 10 रुपया भी आम निवेशकों को मिलता है, या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इससे वित्तीय संस्थाओं और आम निवेशकों के अरबों रुपया डूब जाने की आशंका बन गई है। यदि ऐसा हुआ तो भारत की अर्थ व्यवस्था के लिए सबसे बडा नुकसान होगा। 2008 में अमेरिका में आई मंदी से ज्यादा भयावह स्थिति होगी।