नई दिल्ली, 06 जनवरी = चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए मीडिया कवरेज को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिसके तहत मतदान के लिए तय समय से 48 घंटे पूर्व अवधि के दौरान टेलीविजन और इसी प्रकार के उपकरण के साथ किसी अन्य माध्यम द्वारा चुनाव सामग्री को प्रदर्शित करने पर रोक लगा दी गई है। इसका उल्लंघन होने पर अधिकतम दो वर्ष तक की अवधि की सजा या जुर्माना या दोनों दंड दिया जा सकता है।
एक विज्ञप्ति जारी कर चुनाव आयोग ने कहा है कि इस संबंध में जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126-अ की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिसमें उल्लिखित अवधि के दौरान पहले चरण में मतदान शुरू होने के लिए निर्धारित समय में और सभी राज्यों में आखिरी चरण में मतदान समाप्त होने के लिए निर्धारित समय के आधे घंटे बाद एक्जिट पोल आयोजित करने और उनके परिणाम प्रसारित करने पर प्रतिबंध है।
उल्लेखनीय है कि गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभाओं के लिए आम चुनाव का कार्यक्रम 4 जनवरी 2017 को चुनाव आयोग ने घोषित कर दिया है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की उपर्युक्त धारा 126 के प्रावधानों के उल्लंघन होने पर अधिकतम दो वर्ष तक की अवधि की सजा या जुर्माना या दोनों दंड दिए जाने का प्रावधान है। ‘चुनाव सामग्री’ का अर्थ है किसी चुनाव के परिणाम को परिकलित या प्रभावित करने के आशय वाली सामग्री।
आयोग ने कहा है कि समाचार प्रसारकों को चुनाव संबंधी मामलों, राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों, चुनाव प्रचार के मुद्दों और मतदान प्रक्रियाओं के बारे में जनता को तटस्थ रूप से जानकारी देने का प्रयास करना चाहिए। पैसे देकर प्रसारित की गई सामग्री पर स्पष्ट रूप से यह चिंहित किया जाना चाहिए कि यह ‘पेड विज्ञापन या पेड सामग्री’ है। पेड सामग्री को राष्ट्रीय प्रसारण संगठन (एनबीए) द्वारा 24 नवम्बर 2011 को जारी किए गए ‘पेड समाचारों पर नीतियों और दिशा-निर्देश’ के अनुरूप ही प्रसारित किया जाना चाहिए।
आयोग के अनुसार चुनाव नियमों के अधीन साम्प्रदायिक या जाति के आधार पर चुनाव अभियान पर प्रतिबंध है। इसलिए प्रेस को ऐसी रिपोर्ट नहीं करनी चाहिए, जो धर्म, वंश, जाति, सम्प्रदाय या भाषा के आधार पर जनता के बीच नफरत या दुश्मनी की भावना को बढ़ावा देती हों। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण रिपोर्ट को सही और निष्पक्ष रूप से प्रसारित करने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। इसके बारे में दर्शकों को यह बताना चाहिए कि किसने सर्वेक्षण के लिए पैसे दिए और किसने सर्वेक्षण करवाया।