कठुआ गैंगरेप : पीड़िता की पहचान खोलने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी , मृतक की भी होती है गरिमा
नई दिल्ली (ईएमएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने गैंगरेप और हत्या का शिकार कठुआ की आठ साल की बच्ची समेत बलात्कार पीड़ितों की पहचान सार्वजनिक करने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि मृतक की भी गरिमा होती है और मीडिया रिपोर्टिंग के नाम पर उसका नाम सार्वजनिक कर उनकी गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि मीडिया रिपोर्टिंग पीड़िता के नाम का उल्लेख किए बिना भी तो की जा सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में भी जहां बलात्कार पीड़ित जीवित हैं, वह नाबालिग या विक्षिप्त हो तो भी उसकी पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। उसे भी निजता का अधिकार है।
वह पूरी जिंदगी इस तरह के कलंक के साथ जीवित नहीं रह सकती। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए का मुद्दा उठाए जाने पर कहा मृतक की गरिमा के बारे में भी सोचिए। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्टिंग नाम लिए बगैर भी की जा सकती है। जीवित लोगों की भांति मृतक की भी गरिमा होती है। धारा 228-ए यौन हिंसा के पीड़ितों की पहचान उजागर करने से संबंधित है।
पीठ इस धारा से संबंधित पहलुओं पर विचार के लिए तैयार हो गई है, लेकिन उसने सवाल किया कि बलात्कार का शिकार किसी नाबालिग की पहचान उसके माता-पिता की सहमति से कैसे उजागर की जा सकती है। पीठ ने कहा ऐसा क्यों होना चाहिए कि महज माता-पिता की सहमति से नाबालिग पीड़ित की पहचान उजागर कर दी जाए। पीठ ने कहा भले ही व्यक्ति विक्षिप्त मनोदशा वाला ही क्यों नहीं हो, उसका भी निजता का अधिकार है। नाबालिग भी आगे चलकर वयस्क होगी। उन्होंने सवाल किया यह कलंक जीवन भर उसके साथ क्यों रहना चाहिए। न्याय मित्र की भूमिका निभा रहीं सुश्री इन्दिरा जयसिंह ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए के बारे में शीर्ष अदालत का स्पष्टीकरण जरूरी है। उन्होंने कहा इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग करने पर मीडिया पर ‘पूरी तरह प्रतिबंध’ नहीं लगाया जा सकता। शीर्ष अदालत को प्रेस की आजादी और पीड़ित के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा।
सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। साथ ही उसने यह भी सवाल किया कि जिन मामलों में पीड़ित की मृत्यु हो गयी है, उनमें भी नाम का खुलासा क्यों किया जाना चाहिए। जयसिंह ने कठुआ मामले का सीधे-सीधे जिक्र करने की बजाय कहा कि हाल ही में एक मामले में पीड़ित की मृत्यु हो गयी थी जिससे देश के भीतर ही नहीं बल्कि समूची दुनिया में उसके लिए न्याय की मांग उठी। पीठ ने कहा कि वह धारा 228-ए से संबंधित मुद्दे पर गौर करेगी। इसके बाद केन्द्र के वकील ने आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिए न्यायालय से समय का अनुरोध किया। इस पर न्यायालय ने इसकी सुनवाई आठ मई के लिए स्थगित कर दी। शीर्ष अदालत दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।