नई दिल्ली (ईएमएस)। सेहत और दवाइयों पर होने वाले खर्च का बोझ लोगों को गरीब बनाने के साथ ही गरीबी रेखा में आने वाले लोगों की तादाद भी बढ़ाता जा रहा है।
अनुमान है कि एक साल में साढ़े पांच लाख लोग स्वास्थ्य सेवाओं पर पैसे खर्च करने के कारण तंगी के शिकार बने हैं जबकि 3 करोड़ 80 लाख लोग सिर्फ दवाइयों का खर्च उठाने की वजह से ही गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गए हैं। इस अध्ययन में खुलासा हुआ है कि कैंसर, दिल की बीमारियां और डायबीटीज पर सबसे ज्यादा पैसे खर्च होते हैं। अध्यायन अनुसार गैर-संक्रामक बीमारियों में कैंसर एक ऐसी बीमारी जिस पर ज्यादातर घरों के द्वारा सबसे ज्यादा पैसे खर्च किए जाते हैं। अगर किसी घर के कुल खर्च का 10 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा सेहत से जुड़ी चीजों पर खर्च होता है तो उसे सही नहीं माना जाता। इसके अलावा देश के सबसे गरीब तबके के लोगों को दुर्घटनाओं के इलाज में सबसे ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं।
इस स्टडी में शामिल ऑथर्स ने जिस डेटा का अध्ययन किया वह 2 जगहों से हासिल किया गया था। पहला डेटा देशभर का उपभोक्ता खर्च सर्वे था जो 2 दशकों 1993-94 से लेकर 2011-12 के बीच का था और दूसरा सर्वे 2014 में नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन की ओर से करवाया गया था जिसका नाम ‘सामाजिक उपभोग: स्वास्थ्य’ रखा गया था। इस अध्ययन में कहा गया है कि वैसे तो सरकार की तरफ से कई बीमा योजनाएं स्कीम्स चलायी जा रही हैं बावजूद इसके जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को दवाइयों पर बहुत सारा पैसा खर्च करना पड़ता है क्योंकि ज्यादातर बीमा कवर में में सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने वाला इलाज ही कवर होता है जो अस्वस्थता के बोझ का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा है।