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आदिम जाति कल्याण विभाग में चतुर्थ श्रेणी पदों पर फर्जी भर्तियां

गुना, 25 अप्रैल (हि.स.)। अपने क्रियाकलापों को लेकर गाहे-बगाहे सुर्खियों में रहने वाला आदिम जाति कल्याण विभाग एक बार फिर चर्चाओं में है। चर्चा विभाग में चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए हुई नियुक्तियों से संबंधित है। जिसमें विभागीय कर्मचारियों ने पूरी तरह से मनमानी करते हुए फर्जीवाड़े को अंजाम दिया है।

नियुक्तियां शासन के निर्देशानुसार बिना किसी साक्षात्कार के सीधी भर्ती से की जानी थी, बस इसी का विभागीय कर्मचारियों ने फायदा उठाते हुए मनमानी की है। न तो नियुक्तियों के लिए कोई विज्ञिप्त निकाली गई और न निर्धारित मापदंडों का पालन किया गया। मामला हालांकि चार साल पहले का है, किन्तु हाल ही में जिला पंचायत अध्यक्ष अर्चना चौहान द्वारा की गई शिकायत ने इसे गर्मा दिया है। शिकायत कलेक्टर राजेश जैन को की गई है, जिसमे पूरे मामले की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की बात कही गई है। वैसे इस मामले के सामने आने को भी आदिम जाति में इन दिनों अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच चल रही आपसी खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है।

10 पदों के लिए होनी थी भर्ती

बताया जाता है कि वर्ष 2013 में आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित आश्रम एवं छात्रावासों में चतुर्थ श्रेणी के लिए कलेक्टर दर पर 10 पद रिक्त थे। जिनमें से चार पद अजजा वर्ग के लिए आरक्षित थे। इन सभी पदों पर शासन के निर्देशानुसार बिना किसी प्रक्रिया या साक्षात्कार के सीधी भर्ती की जानी थी। उक्त भर्ती के प्रक्रिया में विभाग ने 18 आवेदन आना बताए हैं। हैरत की बात यह है कि इससे पूर्व कोई विज्ञिप्त निकाली गई और न रोजगार कार्यालय से नाम लिए गए। फिर यह आवेदन कैसे आए? प्रक्रिया में इसका खुलासा नहीं किया गया है।

अधिक योग्यताधारी बाहर, कम को नौकरी

मामले में मजेदार बात यह है कि अधिक योग्यताधारी को प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया और कम योग्यताधारी को नौकरी दे दी गई। यह खुद विभागीय प्रक्रिया से जाहिर हो रहा है। जिसमें नियुक्ति के लिए आए 18 आवेदन में चार आवेदक 08वीं उत्तीर्ण, 01 आवेदक 5वीं उत्तीर्ण एवं शेष 13 आवेदक 10वीं या 12वीं उत्तीर्ण थे। कायदे से अधिक योग्यताधारी आवेदक को नौकरी में प्राथमिकता मिलनी थी, किन्तु इसके विपरीत न्यूनतम योग्यताधारी चार आवेदकों के लिए तत्कालीन कलेक्टर संदीप यादव से अनुमोदन कराकर नौकरी दे दी गई और अधिक योग्यताधारी आवेदकों को प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि शासन के निर्देश का हवाला देने के बजाए यहां खुद के दृष्टिकोण को अमल में लाया गया है। रेखांकित किया गया है कि अधिक योग्यताधारी अभ्यार्थियों को उनकी शैक्षणिक योग्यता अनुसार उच्चतर कार्य पर पदस्थी मिलने की संभावना जताते हुए प्रक्रिया से बाहर किया गया है।

इस गंभीर मामले को लेकर कलेक्टर राजेश जैन पर मामले को दबाने के आरोप लग रहे हैं। इसी के मद्देनजर जिला पंचायत अध्यक्ष अर्चना चौहान ने भोपाल तक दौड़ लगाई है। चौहान का कहना है कि उनकी शिकायत में संलग्न तमाम प्रमाणित दस्तावेजों के बावजूद मामले में कार्रवाई नहीं की जा रही है। जांच के नाम पर मामले को लटकाया जा रहा है। इसी के चलते भोपाल में महकमे के वरिष्ठ अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधियों को शिकायत की गई है।

पूरा खेल सांठगांठ से होने की बात कही जा रहा है। दरअसल जिस समय यह फर्जीवाड़ा हुआ, उस समय विभाग का प्रभार सहकारिता के उमेश तिवारी के पास था। जो तब तत्कालीन कलेक्टर संदीप यादव की नाक का बाल माने जाते थे। यहीं कारण है कि न सिर्फ आदिम जाति बल्कि कई अन्य महत्वपूर्ण विभागों का प्रभार भी इन्ही के पास था।

इनकी हुईं नियुक्ति

वीरेन्द्र पुत्र हजारी सहरिया निवासी सिंघाड़ी, दामोदर पुत्र हजारी सहरिया निवासी बमौरी, हेमराज पुत्र लाल सिंह सहरिया निवासी सिलावटी एवं ऊधम सिंह पुत्र प्यारेलाल सहरिया निवासी अहीरखेड़ी की नियुक्ति चतुर्थ श्रेणी पद पर हुई है। बताया जाता है कि पूरा मामला अब तक फाइलों में दफन पड़ा था। जिपं अध्यक्ष की शिकायत के बाद चर्चाओं में आया है। इसके पीछे इन दिनों विभाग में अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच आपसी खींचतान भी एक प्रमुख कारण है, जिसके मद्देनजर और भी घोटाले सुर्खियां पकड़ सकते हैं।
राजेश जैन कलेक्टर गुना ने कहा कि मामला बहुत पुराना करीब 2012-13 का है। जिला पंचायत अध्यक्ष ने शिकायत की है। मामला ध्यान में है, फिलहाल जांच चल रही है। इसके बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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