अयोध्या में जिस दिन बाबरी मस्जिद गिराई गई, उस दिन संविधान भी ध्वंस किया गया : शरद यादव
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जिस तरह से अयोध्या में राम मंदिर का मामला गरमाया जा रहा है, उसे लेकर जदयू के पूर्व नेता और लोकतांत्रिक जनता दल के मुखिया शरद यादव ने मोदी सरकार और बीजेपी को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि चुनाव से ठीक पहले मंदिर का मुद्दा उठाने का मकसद है देश को बांटना है. वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव ने अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद की ‘धर्म संसद’ को लेकर सोमवार को भाजपा पर निशाना साधा और कहा कि चुनाव से पहले मंदिर का मुद्दा उठाया जाता है ताकि देश को बांटा जा सके. शरद यादव ने कहा कि देश की उम्र बढ़ने के साथ लोकतांत्रिक मर्यादा का क्षरण हो रहा है जो बहुत चिंता की बात है.
शरद यादव ने कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग की ओर से आयोजित संविधान दिवस समारोह में कहा, ‘अयोध्या में जो गिराया गया वो ढांचा नहीं गिराया था, बल्कि संविधान का ध्वंस किया गया था और संविधान की सारी मर्यादा को तोड़ा गया था. एक बार फिर से आस्था का विषय बताया जा रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘बाबा साहेब का संविधान आस्था नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला है. इसके तहत संसद कभी बाहर नहीं लगती, लेकिन अब संसद बाहर लगाई जा रही है.’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा संविधान साझा विरासत की बात करता है. यह विविधताओं वाला देश है. यहां अलग अलग जाति और धर्म के लोग रहते हैं. यह चिंता की बात है कि जैसे जैसे भारत की उम्र बढ़ रही है उसी तरह लोकतंत्र की मर्यादा लगातार कम हो रही है.’ इससे पहले उन्होंने एक बयान में कहा, ‘आज देश में हालात ठीक नहीं है. सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम करने के अलावा कुछ नहीं हो रहा है. मौजूदा शासन में देश कठिनाई के दौर से गुजर रहा है. आये दिन संविधान विरोधी ताकतें देश को बांटने और तोड़ने का काम कर रही है. सांप्रदायिक ताकतों द्वारा लोगों को गुमराह किया जा रहा है और धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दिया जा रहा है.’
समाजवादी नेता ने दावा किया, ‘मंदिर का मुद्दा सांप्रदायिक ताकतें तभी उठाती हैं जब चुनाव नजदीक होता है जिससे की समाज को वोट के लिए बांटा जा सके. इनका मकसद सिर्फ़ और सिर्फ देश को तोड़ना है और हमें इनसे सतर्क रहना चाहिए. धर्म के आधार पर भेदभाव और देश को नहींबांटा जाना चाहिए.’
यादव ने कहा, ‘हमारा देश विविधता में एकता का देश है जहाँ हर धर्म और जाति के लोगों को समान अधिकार है और किसी भी प्रकार के विवाद को सुलझाने के लिए अदालतों का दरवाजा सब के लिए खुला है. अदालत के फैसले का हर किसी को सम्मान करना चाहिए तथा न्यायपालिका में विश्वास होना चाहिए.’