World Water Day: दुनिया की आधी आबादी के सामने पेयजल का भीषण संकट
नई दिल्ली (ईएमएस)। दुनिया में इस समय भीषण जल संकट के मुहाने पर खड़ी है। वर्तमान में दुनिया की आधी आबादी के पास पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। पानी की यह किल्लत अचानक नहीं पैदा हो गई है। इसके पीछे कहीं न कहीं हमारा ही हाथ है। हम उपलब्ध जल संसाधनों का बेहिसाब दोहन कर रहे हैं, जिसकी वजह से जल संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। दुनिया में जिस गति से जल संकट बढ़ रहा है, उससे तय है कि अगली पीढ़ियां पानी के लिए तरसने वाली हैं।
जल दिवस का आयोजन पिछले 25 सालों से किया जा रहा है, लेकिन जल संरक्षण को कर लोगों में जागरूरता नहीं पैदा हुई। हमारा दृष्टिकोण यही होता है कि दूसरे लोग पानी नहीं बचा रहे हैं, तो हम क्यों बचाएं। हमें इस सोच से मुक्ति पानी होगी। इस बार जल दिवस की थीम है नेचर फॉर वाटर यानी इस समस्या का ऐसा समाधान खोजना जो प्रकृति पर ही आधारित हो। आइए, प्रकृति की इस समस्या के लिए प्रकृति को ही ढाल बनाएं।
पानी का मोल प्यास लगने पर ही मालूम पड़ता है। कोई भी दूसरी चीज इसका विकल्प नहीं हो सकती।
गला तर तभी होता है जब पानी की बूंदें हलक से नीचे उतरती हैं। केपटाउन, कैलिफोर्निया से लेकर कोलकाता तक दुनिया में सैकड़ों ऐसे शहर हैं, जो भीषण जल संकट से जूझ रहे हैं। जुलाई 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित करके दुनिया के हर व्यक्ति को पानी का अधिकार दिया। इसके तहत हर व्यक्ति को अपनी और घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी सुलभ होना चाहिए। इसके लिए प्रति व्यक्ति प्रति दिन के लिए 50 से 100 लीटर पानी का मानक तय किया गया है। यह पानी साफ, स्वीकार्य और सस्ता होना चाहिए। परिवार की आय के तीन फीसदी से ज्यादा पानी की कीमत नहीं होनी चाहिए। पानी का स्रोत व्यक्ति के घर से 1000 मीटर से ज्यादा दूर नहीं होना चाहिए। पानी एकत्र करने के लिए 30 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए।
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प्रदूषित पानी और प्राथमिक साफ-सफाई के अभाव में दुनिया के गरीब देशों में बीमारी और बदहाली और तेजी से बढ़ रही है। दुनिया में 2.3 अरब लोगों के पास शौचालय जैसे स्वच्छता के प्राथमिक संसाधन नहीं हैं। अध्ययन बताते हैं कि अगर साफ-सफाई को बेहतर बनाने के लिए एक डॉलर का निवेश किया जाता है, तो इससे 9 डॉलर का रिटर्न मिलता है। धरती के कुल रकबे में वेटलैंड्स (दलदल या नम स्थान) की महज 2.6 फीसद हिस्सेदारी है। लेकिन जल चक्र में इनकी बहुत योगदान होता है। ये छन्नी की तरह काम करते हैं। कीटनाशकों, औद्योगिक और खानों के हानिकारक तत्वों को छानकर पानी की गुणवत्ता दुरुस्त करते हैं।