दंगा भड़काने पर जेल क्यों न जाए कोई गर्भवती स्त्री
– आर.के.सिन्हा
क्या सांप्रदायिक दंगे भड़काने जैसे गंभीर आरोप झेल रही महिला को जेल के पीछे भेजना अपराध है? क्या कोई गर्भवती महिला किसी की हत्या या अन्य अपराध करने के बाद सिर्फ इसी आधार पर जेल से बाहर रह सकती है कि उसके गर्भ में बच्चा पल रहा है? यह सवाल जरूरी और समीचीन भी है। असल में, दिल्ली की एक अदालत ने विगत फरवरी में राजधानी में सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार जामिया समन्वय समिति (जेसीसी) की सदस्य सफूरा जरगर की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एम फिल की छात्रा सफूरा चार माह की गर्भवती बताते हैं। सफूरा पर आरोप है कि वह दिल्ली में भड़के दंगों की साजिश से जुड़ी हुई थी।
अब हम असली मुद्दे पर आते हैं। सफूरा की रिहाई के हक में तमाम सेक्युलरवादी सोशल मीडिया पर आ गए हैं। ये कह रहे हैं कि चूंकि सफूरा गर्भवती है इसलिए उसकी जमानत की अर्जी को स्वीकार कर लिया जाना चाहिए था। सफूरा के हक में इस तरह का कमजोर तर्क सेक्युलरवादी ही दे रहे हैं। क्या सफूरा के लिए आंसू बहाने वालों ने कभी इस तरह के तर्क किसी अन्य महिला के हक में दिये हैं? सबसे शर्मनाक बात यह है कि सफूरा के लिए बोलने वाले कह रहे हैं कि केरल में मारी गई हथिनी पर देश दुखी हो सकता है तो सफूरा को लेकर चुप्पी क्यों? अब आप बताएं कि क्या इतनी बेवकूफी भरी तुलना करने का कोई मतलब है? पर इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी है इसलिए आप जो चाहें बोलें और जिस बात पर चाहें सरकार को कोसें, आपको खुली छूट है।
सफूरा के हिमायती यह भी याद रखें कि दिल्ली की अदालत ने उसकी जमानत की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि जब आप अंगारे के साथ खेलते हैं, तो चिंगारी से आग भड़कने के लिए हवा को दोष नहीं दे सकते। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने आगे यह भी जोड़ा कि भले ही आरोपी सफूरा ने हिंसा का कोई प्रत्यक्ष कार्य नहीं किया लेकिन वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपने दायित्व से बच नहीं सकती हैं। ‘सह-षड्यंत्रकारियों के कृत्य और भड़काऊ भाषण भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत आरोपी के खिलाफ भी स्वीकार्य हैं।’
सफूरा ने भीड़ को भड़काने के लिए कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिया था, जिसके फलस्वरूप भयानक दंगे हुए। उन दंगों में दर्जनों लोगों की जानें गईं और करोड़ों रुपए की संपत्ति भी स्वाहा कर दी गई। उसके निशान अब भी देखे जा सकते हैं। हजारों लोग सड़कों पर आ गए। दरअसल होता यह है कि एकबार इंसान कोई गलत कदम उठा लेता है और उसके बाद जब कानून के फंदे में फंसता है तो उसे स्वाभाविक रूप से दिन में तारे नजर आने लगते हैं। फिर वह माफी मांगता फिरता है। पर तबतक बहुत देर हो चुकी होती है। फिर उसे देश का सबसे शक्तिशाली इंसान भी कानूनी प्रक्रिया से बचा नहीं सकता है।
दुखी होगी गांधी की आत्मा
सफूरा का संबंध एक उस शिक्षण संस्थान से है जिसकी स्थापना में गांधी जी की भूमिका रही थी। इससे हकीम अजमल खान, देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और इतिहासकार मुशीर उल हसन जैसे नाम जुड़े रहे हैं। इसी जामिया में मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कालजयी कहानी `कफन’ 1935 में लिखी थी। प्रेमचंद नवम्बर, 1935 में दिल्ली में जामिया में ठहरे थे। यहां उनके मेजबान ‘रिसाला जामिया’ पत्रिका के संपादक अकील साहब थे। तब अकील साहब ने प्रेमचंद से यहां रहते हुए एक कहानी लिखने का आग्रह किया। उन्होंने उसी रात को ‘कफन’ लिखी। इसी जामिया के हिन्दी विभाग से देश के प्रख्यात हिंदी विद्वान जैसे प्रो.अब्दुल बिस्मिल्लाह, असगर वजाहत, अशोक चक्रधर जुड़े रहे हैं। जरा दुर्भाग्य देखें कि अब इस शिक्षण संस्थान से दंगे भड़काने वाले निकल रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने उत्तर पूर्व दिल्ली दंगा मामले की निष्पक्ष जांच और फॉरेंसिक सबूतों के विश्लेषणों के बाद ही बहुत से षड्यंत्रकारी दंगाईयों की गिरफ्तारियां की हैं। इनमें जामिया के कई छात्र भी हैं। दिल्ली पुलिस का कहना है ‘सभी गिरफ्तारियां वैज्ञानिक और फॉरेंसिक सबूतों के विश्लेषण के बाद ही की गई हैं , जिसमें वीडियो फुटेज आदि शामिल हैं।’
काश सफूरा ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे भड़काऊ भाषण देने से पहले यह सोचा होता कि उसके कृत्य से देश के राष्ट्रपिता की भी आत्मा दुखी होगी। इतना उसने सोचा होता तो शायद दिल्ली में इतने भीषण दंगे भड़कते ही नहीं। याद रखें कि दिल्ली में दंगे योजनाबद्ध तरीके से तब भड़काए गए जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली में थे। दंगे भड़कने का नुकसान यह हुआ कि ट्रंप की यात्रा नेपथ्य में चली गई और मीडिया ने प्रमुखता से दंगों की तस्वीरें ही छापीं। यह सब देश को बदनाम करने के लिए ही साजिशन किया गया था। इस साजिश में यह मानना पड़ेगा कि साजिशकर्ता दंगाई सफल रहे और सरकारी खुफिया तंत्र फेल रही।
बंद करो चरित्र हनन
हालांकि सफूरा पर लगे तमाम आरोपों के बावजूद इतना अवश्य कहूंगा कि किसी को भी उसके चरित्र पर लांछन लगाने का कोई हक नहीं। सोशल मीडिया पर कुछ लोग कहने से बाज नहीं आ रहे हैं कि सफूरा बिना शादी के गर्भवती कैसे हो गई। यह बेहद शर्मनाक टिप्पणी है। सफूरा विवाहित है। किसी भी स्त्री पर ओछी टिप्पणी करने का किसी को कतई अधिकार नहीं है। आपको याद होगा कि दिल्ली की मॉडल जेसिका लाल की जब 1999 में हत्या हुई थी तब भी बहुत से घटिया मानसिकता वाले लोग उसके चरित्र पर ही सवाल खड़े कर रहे थे। यानी उसकी हत्या के बाद भी उसका चरित्र हनन हो रहा था। जेसिका लाल राजधानी के एक पढ़े-लिखे परिवार की कन्या थी। वह एक रेस्तरां में पार्ट टाइम काम करती थी, ताकि अपने घर की माली हालत सुधार सके। क्या यह उसका कोई जुर्म था?
बहरहाल, हम अपने मूल विषय पर वापस चलेंगे। सफूरा जरगर को अभी भी अपना पक्ष रखने के तमाम अवसर बाकी हैं। उन्हें भारत की निष्पक्ष न्याय व्यवस्था पर यकीन करना चाहिए। अगर उनपर लगे आरोप सिद्ध नहीं हुए तो वह कालांतर में बाइज्जत बरी हो ही जाएंगी। लेकिन आरोप सिद्ध होने पर कानून अपनी उचित सजा सुनाने का काम करेगा। याद रखें कि भारत का कानून किसी के प्रति धर्म, जाति, प्रांत, रंग, लिंग आदि के आधार पर न तो सख्ती करता है और न ही सहानुभूति दिखाता है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)