पुलिस तंत्र में रिफार्म की जरूरत
– डा. रमेश ठाकुर
पुलिसिया सिस्टम बूढ़ा हो चुका है। उसे उर्जावान बनाने की जरूरत है। इसको लेकर फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्रालय पर दबाव बनना शुरू भी हो गया है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में यह मुद्दा उठा है। बीते एकाध महीनों में कई राज्यों की पुलिस की जो हरकतें सामने आई है उसको देखते हुए पुलिस महकमे में बदलाव की जरूरत महसूस होने लगी है। पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह काफी समय से इसकी मांग कर रहे हैं। पुलिस का रवैया निश्चित रूप से सरकारों के लिए परेशानी का सबब बन रही है। केंद्र सरकार हो, चाहे राज्य सरकारें, कितना भी अच्छा काम करें, पर जब सुरक्षा तंत्र क्राइम कंट्रोल करने में नाकाम हो जाता है तो उसकी जबावदेही हुकूमतों पर आ जाती है। तब लोग पुलिस या सुरक्षा सिस्टम को नहीं कोसते, सीधे सरकारों को कठघरे में खड़ा करते हैं।
दरअसल, चुनावी के वक्त सुरक्षा की गारंटी जन प्रतिनिधि ही देते हैं। जाहिर है सवाल उन्हीं से होंगे। दिल्ली, यूपी, पंजाब, हरियाणा के अलावा ज्यादातर राज्यों की पुलिस के काम करने के तौर-तरीकों पर मौजूदा वक्त में सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल की कुछ घटनाओं ने रोंगटे खड़े किए हैं। पुलिस का आपराधिक प्रवृत्तियों को संरक्षण देना, फरियादियों की शिकायतों को अनदेखा करना, उनकी शिकायतों पर एक्शन लेने की जगह आरोपियों तक उनकी सूचनाएं पहुंचाना आदि हरकतों का हाल में पर्दाफाश हुआ है। दिल्ली से सटे मेरठ में लव जिहाद का मामला इस वक्त चर्चा में है। घटना को लेकर कई हिंदू संगठन आक्रोशित हैं। संगठन के लोग सीधे प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहे हैं। दिल्ली में कुछ जगहों पर हिन्दु सेना द्वारा जिहादियों के पुतले भी फूंके गए हैं। अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लिखित में जवाब मांगा है कि आखिरकार हिंदुस्तान में लव जिहाद के नाम पर कबतक हिन्दू महिलाओं की बलि चढ़ती रहेगी? मुद्दा वास्तव में बड़ा चिंतनीय है। मेरठ लव-जिहाद मसले को पुलिस अगर समय रहते हैंडल कर लेती तो शायद माँ-बेटी की जान बच सकती थी। पुलिस को पता था एक मुस्लिम व्यक्ति हिंदू बनकर मां-बेटी को अपने चुंगल में फंसा चुका है। बावजूद इसके पुलिस ने जिहादी पर कोई करवाई नहीं की, नतीजा दोनों मां-बेटी जिहादी के हाथों मारी गईं।
दरअसल, यह वक्त की जरूरत है कि पुलिस के पूरे सिस्टम को रिफॉर्म किया जाए। ऐसे मामलों में पुलिस के लचीलेपन और उसकी घोर लापरवाही पर कई सवाल खड़े होते हैं। मेरठ में एक लव जिहादी ने बड़ी बेरहमी से मां-बेटी को मौत के घाट उतारा। देखा जाय तो इस कृत्य में पुलिस भी बराबर की भागीदार है। करीब डेढ़ महीने बाद मां-बेटी प्रिया व कशिश के कंकाल मोहम्मद शमशाद नामक जिहादी के घर से बरामद हुए। शमशाद ने अमित गुर्जर बनकर प्रिया को अपने प्रेमजाल में फँसाया था और शादी की थी। शादी के कुछ ही दिनों में जब जिहादी का भांडा फूटा तो प्रिया ने थाने में जाकर कोतवाल से शिकायत की। कोतवाल ने उसकी सूचना शमशाद को दे दी। शमशाद ने कोतवाल को चढ़ावा देकर मामले को शांत कर दिया। पुलिस ने प्रिया की शिकायत को कचरे के डिब्बे में डालकर मामले को रफा-दफा कर दिया।
जिहादी शमशाद कई तरह के अनैतिक कार्यों में संलिप्त था, दिखावे के लिए बुक बाइंडिंग का काम करता था। ये बात भी पुलिस को पता थी। शमशाद जब घर मोटी रकम लेकर आता था, तो प्रिया उनसे पैसों के संबंध में पूछती थी। इसको लेकर आपस में झगड़ा होता था। उसके पहले इस्लाम मानने को लेकर भी प्रिया का शमशाद से झगड़ा हुआ था। प्रिया को सबकुछ पता चल गया था, वह विरोध करने लगी थी और अपनी सहेली चंचल को सभी बातों से अवगत कराती थी। प्रिया जब शमशाद का खुलकर विरोध करने लगी तो उसने वही किया जो अंत में एक जिहादी करता है। शमशाद ने अपने साले के साथ मिलकर मां-बेटी को ठिकाने लगाने का षड्यंत्र रचा। रात में सोते समय दोनों को मार डाला और शवों को कमरे में दबा दिया।
प्रिया की सहेली चंचल उसे लगातार फोन करती, कोई रिप्लाई नहीं आता। उसे अनहोनी का शक हुआ। तभी चंचल ने पुलिस के पास जाने का निर्णय लिया। वह एसएसपी के पास पहुंची। एसएसपी ने मामले को गंभीरता से लिया और एक जांच टीम गठित की। पूरे मामले की छानबीन का ज़िम्मा एक तेजतर्रार इंस्पेक्टर को सौंपा। जिन्होंने दो दिनों के भीतर ही पूरे मामले को एक्सपोज कर डाला। मां-बेटी का कंकाल शमशाद के घर से बरामद कर लिया गया। मामला जैसे ही बाहर आया चारों ओर हाहाकार मचा है। चंचल इससे पहले पुलिस में दो दफे और शिकायत कर चुकी थी जिसपर कोई करवाई नहीं की गई। पुलिस ने अगर करवाई की होती तो निश्चित रूप से दोनों मां-बेटी की जान बचाई जा सकती थी।
सवाल ये है कि सिस्टम कब संवेदनशील होगा? कब पुलिस में सुधार होगा? भाजपा विधायक राजेश कुमार मिश्रा भरतौल की मांग तब और जायज लगने लगती है, जिसमें उन्होंने सरकारों द्वारा गुंडों की बनाई लिस्ट की भांति भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों की भी सूची तैयार करने की मांग की। क्योंकि खाकी में भी अनगिनत भेड़िए छिपे हैं, जो फरियादियों की समस्याओं को सुलझाने के बजाय माफियाओं की आवभगत करते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश का बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग दबाव बना रहा है कि पुलिस के पूरे सिस्टम को आधुनिक किया जाए। जिस तरह से उन्होंने इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स आदि विभागों में कार्यरत नाकारा और भ्रष्ट अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया, ठीक उसी अंदाज़ में पुलिस विभाग में नजरें घुमाने की आवश्यकता है। राज्यों में सुधार तभी होगा, जब केंद्र सरकार से कोई मुकम्मल पहल शुरू होगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)