अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लिखी जाएगी विकास की नई इबारत
जम्मू । जम्मू-कश्मीर व लद्दाख गुरुवार को औपचारिक तौर पर केंद्र शासित प्रदेश बन गये। अब यहां नए कानून लागू होंगे जिससे दोनों प्रदेशों में विकास की नई इबारत लिखी जाएगी। अब जम्मू-कश्मीर में संसद से बने कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसले सीधे लागू हो सकेंगे। जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा जबकि लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा। देश की आजादी के समय जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कराने में सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान रहा और आज लौह पुरुष की जयंती पर ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग राज्य बन गए।
गुरुवार सुबह लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश के पहले उपराज्यपाल के रूप में राधाकृष्ण माथुर ने शपथ ली। इसके बाद दोपहर में जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल के रूप में गिरीश चंद्र मुर्मू ने श्रीनगर स्थित राजभवन में शपथ ग्रहण की। इन दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल को पद एवं गोपनीयता की शपथ जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने दिलवाई। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के प्रधान सचिव उमंग नरूला को केंद्र शासित लद्दाख के पहले उपराज्यपाल आरके माथुर का सलाहकार नियुक्त किया है। नरूला 1965 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वह जम्मू प्रांत के मंडलायुक्त भी रह चुके हैं। लद्दाख में पुलिस प्रशासन की कमान 1995 बैच के आईपीएस एसएस खंडारे को सौंपी गई है। दोनों अधिकारियों ने आज अपना नया कार्यभार संभाल लिया है।
इसके साथ ही 70 वर्षों की लंबी जद्दोजहद के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल का पूरे हिंदुस्तान में एक देश, एक विधान और एक निशान का सपना साकार हो गया है। इसीलिए उनकी जयंती का दिन ही जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेशों का औपचारिक दर्जा देने के लिए चुना गया। अब दोनों ही जगह अलग-अलग प्रशासनिक व्यवस्था होगी, जिसकी कमान राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल संभालेंगे। अब से यहां की परिस्थितियां भी बदल गई हैं। दो केंद्र शासित राज्यों का पुनर्गठन होने के साथ ही पूरे देश में पूर्ण राज्यों की संख्या 29 से घटकर 28 हो गई है और केंद्र शासित राज्यों की संख्या सात से बढ़कर नौ हो गई है। स्वतंत्र भारत के बीते सात दशक के इतिहास में केंद्र शासित राज्यों को पूर्ण राज्य बनाए जाने या बड़े राज्यों को दो राज्यों में पुनर्गठित किए जाने के कई मामले हैं, लेकिन किसी पूर्ण राज्य को दो केंद्र शासित राज्यों में बदलने का यह पहला मौका है।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की पुलिस और कानून व्यवस्था अब केंद्र के हाथ होगी। नये भर्ती होने वाले अधिकारी यूटी के कैडर में शामिल होंगे। एंटी क्रप्शन ब्यूरो और आईएएस और आईपीएस अब मुख्यमंत्री नहीं उपराज्यपाल के अधीन होंगे। जम्मू-कश्मीर राज्य के पहले मुख्यमंत्री गुलाम मोहम्मद सादिक और अंतिम महबूबा मुफ्ती थीं। गुलाम मोहम्मद सादिक 30 मार्च 1965 से 12 दिसम्बर 1971 तक मुख्यमंत्री रहे। इससे पहले वजीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) राज्य का मुखिया होता था। जम्मू-कश्मीर राज्य के पहले राज्यपाल कर्ण सिंह और अंतिम सत्यपाल मलिक थे।
भारत सरकार द्वारा 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 की ताकतों को पंगु करने के बाद छह अगस्त को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पारित किया गया था। इसके लगभग तीन माह बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है। केंद्र शासित बनने के बाद अब जम्मू-कश्मीर में दिल्ली और लद्दाख में चंडीगढ़ जैसी व्यवस्था होगी। यानी जम्मू-कश्मीर में दिल्ली की तरह विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा जबकि लद्दाख बिना विधानसभा वाला चंडीगढ़ की तरह केंद्र शासित प्रदेश होगा। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में देश के 31 नामी व्यावसायिक घरानों और कंपनियों ने लगभग 15 हजार करोड़ का पूंजी निवेश करने की इच्छा जताते हुए लगभग 45 एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट भी जमा कराए हैं। लद्दाख में निवेश को लेकर विभिन्न कंपनियों ने बेझिझक दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है। करीब 70 कंपनियों ने निवेश के लिए राज्य प्रशासन के साथ विभिन्न स्तरों पर संपर्क किया है।
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने पर यहां के राजनीतिक-प्रशासनिक तौर-तरीके बदल गए हैं। जम्मू-कश्मीर में अब तक विधानमंडल के दो सदन विधानसभा और विधान परिषद थे लेकिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद नहीं होगी। जम्मू-कश्मीर विधान परिषद को 17 अक्टूबर को ही जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 57 के तहत समाप्त कर दिया गया था। जम्मू-कश्मीर में अब तक 87 सीटों पर चुनाव होते थे जिनमें 4 लद्दाख की, 46 कश्मीर की और 37 जम्मू की सीटें थीं। पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की 24 सीटों पर न ही चुनाव होते थे और न ही किसी को नामित किया जाता था, इसलिए यह 24 सीटें खाली पड़ी रहती हैं। लद्दाख के अलग केंद्र शासित प्रदेश बन जाने से उसकी चारों विधानसभा सीटों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इसलिए अब केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 107 सीटें रह गई हैं जिसे परिसीमन के बाद 114 तक बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है। इस संदर्भ में 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाएगा। अब चुनाव आयोग राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर सकता है. जिसमें आबादी के साथ भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक बिंदुओं पर ध्यान रखा जा सकता है।
केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री की संवैधानिक स्थिति पूरी तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री के समान होगी। मुख्यमंत्री अपनी मंत्रिपरिषद में अधिकतम नौ विधायकों को ही मंत्री बनायेंगे। इसके अलावा राज्य विधानसभा द्वारा पारित किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को उपराज्यपाल की मंजूरी के बाद ही लागू किया जा सकेगा। उपराज्यपाल चाहें तो किसी भी बिल या प्रस्ताव को नकार सकते हैं।
आज से जम्मू-कश्मीर में क्या बदला
1. अब दोनों राज्यों का एक ही हाईकोर्ट होगा लेकिन दोनों राज्यों के एडवोकेट जनरल अलग होंगे। सरकारी कर्मचारियों के सामने दोनों केंद्र शासित राज्यों में से किसी एक को चुनने का विकल्प होगा।
2. राज्य में अधिकतर केंद्रीय कानून लागू नहीं होते थे लेकिन अब केंद्र शासित राज्य बन जाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख राज्यों में कम से कम 106 केंद्रीय कानून लागू होंगे।
3. इसमें केंद्र सरकार की योजनाओं के साथ केंद्रीय मानवाधिकार आयोग का कानून, सूचना अधिकार कानून, एनमी प्रॉपर्टी एक्ट और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से रोकने वाला कानून शामिल है।
4. जमीन और सरकारी नौकरी पर सिर्फ राज्य के स्थाई निवासियों के अधिकार वाले 35-ए के हटने के बाद केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में जमीन से जुड़े कम से कम 7 कानूनों में बदलाव होगा।
5. राज्य पुनर्गठन कानून के तहत जम्मू-कश्मीर के करीब 153 ऐसे कानून खत्म हो गए, जिन्हें राज्य के स्तर पर बनाया गया था। हालांकि 166 कानून अब भी दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में लागू रहेंगे।
6. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह देश के बाकी हिस्सों की तरह 5 साल का ही होगा।
7. विधानसभा में अनुसूचित जाति के साथ साथ अब अनुसूचित जनजाति के लिए भी सीटें आरक्षित होंगी।
8. पहले कैबिनेट में 24 मंत्री बनाए जा सकते थे लेकिन अब दूसरे राज्यों की तरह कुल सदस्य संख्या के 10% से ज़्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते ।
9. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पहले विधान परिषद भी होती थी, वो अब नहीं होगी। हालांकि राज्य से आने वाली लोकसभा और राज्यसभा की सीटों की संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
10. केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर से 5 और केंद्र शासित लद्दाख से एक लोकसभा सांसद ही चुन कर आएगा। इसी तरह से केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर से पहले की तरह ही राज्यसभा के 4 सांसद ही चुने जाएंगे। एजेंसी हिस