हे राम! नेपाल के ओली को सद्बुद्धि देना
– शिव कुमार विवेक
भगवान राम नेपाली थे और उनकी जन्मस्थली अयोध्या भारत में नहीं, नेपाल के बीरगंज जिले में स्थित थी-कहकर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दक्षिण एशिया के सांस्कृतिक इतिहास को धता बताने की कोशिश ही नहीं की है बल्कि वर्तमान व भावी पीढ़ियों को गुमराह करने का गहरा षड्यंत्र किया है। यह ओली के पिछले कुछ दिनों से चीनी शह पर चल रहे भारत विरोध की सबसे खराब कड़ी है।
अबतक वे तीन भारतीय इलाकों को नेपाली नक्शे में दिखाकर शत्रुता की भौगोलिक रेखाएँ खींचने, हिंदी के प्रचलन पर रोक लगाकर भाषायी अलगाववाद खड़ा करने की कोशिश और भारत के निजी चैनलों पर पाबंदी लगाकर मनोरंजन व समाचार के भारतीय स्रोत को सुखाने का प्रयास कर चुके हैं। लेकिन 13 जुलाई को उन्होंने नेपाल के आदिकवि भानुभक्त आचार्य की जयंती पर रामायण की ऐतिहासिक व परंपरा को नकारने का बड़ा और गहरा चालाकी भरा कदम उठाया। यह नई पीढ़ी के सामने नया तथ्य रखकर भारतीय परंपरा और सांस्कृतिक सूत्रों से अलगाव पैदा करने की चाल है।
कार्ल मार्क्स की धर्म को अफीम मानने की धारणा को मानते हुए कम्युनिस्टों का धर्म के प्रति शत्रुता की हद तक व्यवहार होता है। धर्म के प्रति तटस्थ होना गलत नहीं लेकिन धार्मिक आस्थाओं को अतार्किकता से खंडित करना, खराब कम्युनिस्ट होने की निशानी है। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ओली ऐसे ही खराब कम्युनिस्ट हैं। भारत विरोध में वे अपनी ही पार्टी के अन्य नेताओं के विपरीत सांस्कृतिक परंपराओं को नष्ट करने की चेष्टा कर रहे हैं जो दोनों देशों के लोगों के सह अस्तित्व को ही आगे चलकर कठिन बना सकता है। वे इस चेष्टा में अपने देश की लोकस्मृति, लोकचेतना और लोकश्रुति को भी नकारना चाहते हैं।
ओली ने जिन भानुभक्त की जयंती पर रामकथा की नई और मनमानी स्थापना दी, उन्होंने उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में तुलसीदास की तरह रामकथा ‘सातकांड रामायण’ की रचना कर इसे घर-घर पहुँचाया था। रोचक बात यह है कि भानुभक्त खुद वाराणसी में पढ़े और यहीं उनकी कृति पहली बार प्रकाशित हुई। उनकी रामकथा बाल्मीकि रामायण व अध्यात्म रामायण से प्रेरित है। इस कथा में भी राम को अयोध्या का राजकुमार बताया गया है। वह अयोध्या जो सरयू नदी के किनारे पर स्थित है। ओली ने इसे नकारते हुए कहा कि भारत ने नेपाल पर सांस्कृतिक आक्रमण किया और इतिहास से छेड़छाड़ की गई। जनकपुर, जो नेपाल में स्थित है, वहां की राजकुमारी का विवाह किसी भारतीय राजकुमार (राम) से नहीं हुआ था। राम नेपाली थे जो बीरगंज जिले के कस्बे ठोरी के पास अयोध्या में जन्मे थे। यह अटपटी और अद्भुत मान्यता रखी जा रही है। नेपाली लेखक और पूर्व विदेश मंत्री रमेशनाथ पांडेय ने पूछा कि आप अयोध्या को कहीं भी बता देंगे लेकिन वहाँ सरयू कहाँ से लाएँगे। सच यह है कि ठोरी में राम जन्मभूमि की स्थापना से खुद नेपाली ही इत्तेफाक नहीं रखते जबकि वे भी अयोध्या को तीर्थ मानते रहे हैं।
ओली का यह सवाल भी बेहूदा ही कहा जाएगा कि राम विवाह करने के लिए इतनी दूर जनकपुर कैसे आते? अयोध्या से नेपाल की सीमा महज़ 167 किमी है और जनकपुर की दूरी 500 किमी से कुछ ही ज्यादा है। जब राम रामेश्वरम तक ढाई हजार किमी की पदयात्रा कर सकते हैं तो जनकपुर दूर कैसे है? बाल्मीकि रामायण में दूरी का उल्लेख इस तरह है-’राजा जनक की आज्ञा पाकर उनके दूत अयोध्या के लिए प्रस्थित हुए। रास्ते में वाहनों के थक जाने के कारण तीन रात विश्राम करके चौथे दिन वे अयोध्यापुरी पहुँचे।’
ओली इतिहास को विकृत करने के लिए प्राचीन समय के आवागमन व पैदल चलने के इतिहास से भी अनभिज्ञता जाहिर कर रहे हैं। ऐसा करके असल में वे राम के महानायकत्व को भी खत्म करना चाहते हैं जिसको पूरा दक्षिण एशिया प्राचीनकाल से आदर देता आ रहा है। रामायण व महाभारत की कथाओं से जनमानस ने अपने को इस तरह जोड़ लिया है कि देश-विदेश में कई स्थानों को उनसे सीधा जुड़ा हुआ बताया गया है। जिस तरह नेपाल के बाल्मीकि आश्रम के बारे में कहा जाता है कि लव-कुश का पालन यहीं हुआ, उसी तरह के बाल्मीकि आश्रम भारत के कई हिस्सों में इसी मान्यता के साथ स्थापित हैं। आस्था इन मान्यताओं को कहीं भी क्षति नहीं पहुंचाती। इंडोनेशिया, मॉरीशस आदि देशों में अयोध्या और रामकथा से जुड़े प्रतीक स्थापित कर लिए हैं लेकिन वे भी राम की उत्पत्ति के बारे में ऐसे बेहूदा दावे नहीं करते। वहाँ के विद्वान भी रामकथा को एक पैनएशिया फिनामिना मानते हैं। ये देश कभी भारतीय सांस्कृतिक आक्रमण की बात नहीं कहते। तो क्या वामपंथी सरकारें ही सांस्कृतिक परंपराओं को विकृत करने और खत्म करने का एजेंडा लेकर आती हैं? नेपाल इसे साबित करता है।
ओली की चालाकी यह है कि वे केवल इतिहास में झूठ को ठूँसकर अपने ही लोगों को बहकाना नहीं चाहते बल्कि यह कहकर कि भारत ने नकली अयोध्या बना ली है, भारत विरोध को धार्मिक व सांस्कृतिक आक्रामक दृष्टि भी देना चाहते हैं। आश्चर्य है कि कभी दुनिया का एकमात्र हिंदू देश रहा नेपाल एक गुट की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते जन-मन की आस्था के नायक राम के बारे में विवाद खड़ा कर रहा है। यह भी याद रखना चाहिए कि नेपाल को चीन से आर्थिक लाभ मिल सकता है, भारत की तरह सांस्कृतिक-धार्मिक-सामाजिक रिश्ता नहीं।
वर्तमान नेपाल 1768 में अस्तित्व में आया। आदिकाल में अयोध्या और अन्य भारतीय राजवंशों का भौगोलिक भूभाग रहा है। यहां भी तब वर्तमान बिहार और अन्य पड़ोसी राज्यों की तरह अनेक छोटे-छोटे राजकुल विद्यमान थे। जिनमें से कुछ बिहार से संबद्ध रहे। वहाँ के राजवंश अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं के निकट संबंधी रहे हैं। साथ ही वह भारत के सांस्कृतिक और हिंदू इतिहास का अभिन्न हिस्सा रहा है इसलिए इसमें अलग कथानक कहने की गुंजाइश वैसे भी नहीं रही। ओली ऐसा कर इतिहास को नकारना चाहते हैं जिसे नेपाल की जनता ही नहीं स्वीकार कर रही है। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के ही उपप्रमुख विष्णु रिजल ने मीडिया से कहा कि कोई व्यक्ति अप्रमाणित, पुराणविरुद्ध और विवादास्पद बातें कहकर विद्वान नहीं बन जाता। लेकिन मामला विद्वान बनने का ही नहीं है। यह भारत विरोध को नया आधार देने का है। जैसा कि नेपाल की ही राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के सह अध्यक्ष कमल थापा ने कहा कि ओली भारत से रिश्ते बिगाड़ना चाहते हैं।
सच यह है कि सरकारों के स्तर पर रिश्ते खराब करने को उतारू ओली इसके जरिये लोगों के स्तर पर भी दुराव और अलगाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह ऐसे समय में किया है जब भारत में राममंदिर बनाए जाने का फैसला समूचे दक्षिण एशिया में चर्चा का विषय है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)