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चार नवंबर को मनायी जाएगी गोपाष्टमी, जाने इसका महत्व

उदयपुर । गोवर्द्धन पूजा के बाद गोपाष्टमी का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन विविध सम्प्रदायों से जुड़े भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों में विविध आयोजन होते हैं और विशेष रूप से गो माता की पूजा कर गाय के महत्व को प्रतिपादित किया जाता है। इसके लिए पुष्टिमार्गीय कृष्ण मंदिरों में विशेष पद भी गाया जाता है, जिसमें गो माता को महत्व दिया गया है। कह सकते हैं कि गो माता हमारे देश की कृषि प्रधान संस्कृति का अभिन्न अंग रही हैं और आज से नहीं, बल्कि युगों से उसका महत्व रहा है। इस साल गोपाष्टमी का ये पर्व 4 नवंबर को पड़ रहा है।

मंदिरों में यह पद गाया जाता है…..
‘आगे गाय पाछे गाय, इत गाय, उत गाय, गोविन्द को गायन में बसवो ही भावे।
गायन के संग धावे, गायन में सचु पावे, गायन की खुररेन ले अंग लपटावे।।
गायन सो ब्रजछायो, बैकुण्ठ बिसरायो, गायन के हेत गिरिकर ले उठावे।
‘छीत स्वामी’ गिरधारी, विठ्ठलेश वपुधारी, ग्वारिया को कीये, गायन में आवे।।’

भारतीय संस्कृति में गोवर्धन, गाय एवं श्री कृष्ण तीनों अपने आप में एक-दूसरे के पर्याय हैं। गो माता का महत्व बढ़ाने के लिए श्री कृष्ण ने गाय चराने का कार्य किया था। संस्कृतिविद् मनोहरलाल मूंदड़ा कहते हैं कि उनके प्रथम बार गौ चारण दिवस को गोपाष्टमी का नाम दिया गया है। भारत कृषि प्रधान होने से गोवंश का पालन, संवर्द्धन, संरक्षण के कार्य को महत्व देने के लिए श्री कृष्ण ने बाल लीलाएं ब्रज में ही कीं। गाय का महत्व कई मायनों में समझा जा सकता है।

गाय के बछड़े, बछिया को यदि हम देखें तो वह जन्म से ही स्फूर्तिवान, बलवान एवं ओजस्वी होते हैं। उनमें रोगों से लडऩे की अद्भुत प्रतिरोधक शक्ति होती है। ये सब गुण गाय के दूध में है, जिसके लिए आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ वाक संहिता के दुग्धप्रकरण में कहा गया है – ‘प्रवरम जीवनीयम क्षीरमुखम रसायन’ अर्थात् दूध जीवन शक्ति को बढ़ाने वाला श्रेष्ठतम रसायन है। आयुर्वेद के ग्रंथ भाव प्रकाश में कहा गया है कि गाय के दूध से बना दही सबसे श्रेष्ठ विशिष्ट गुणों वाला, रुचि तथा भूख बढ़ाने वाला, हृदय को बल देने वाला, पुष्टिकारक तथा वायुनाशक है। यहां तक कि विदेशों के वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि दही में दूध के अम्ल से उत्पन्न शुष्क जीवाणु आंतों में विषाणुओं की उत्पत्ति को रोकते हैं। अतिसार कब्ज तथा हृदय के लिए हानिकारक कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण भी होता है तथा दही से कैंसर की भी चिकित्सा होती है।

गाय का घृत आंखों के लिए विशेष लाभकारी है, अग्नि तथा बलवर्धक, मधुर, रस युक्त, शीतल, वात-पित्त- कफनाशक, बुद्धिवर्धक, लावण्य-क्रांति, ओज तथा तेज की वृद्धि करने वाला, अलक्ष्मी, पाप को दूर करने वाला एवं मंगलदायक सुगंधयुक्त सहित दीर्घजीवन प्रदान करने वाला समस्त घृतों से श्रेष्ठ रसायन है। इसको खाने से हृदय रोग वालों पर भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। भाव प्रकाश ग्रन्थ के अनुसार गौमूत्र कटु, तिक्त, कसायरसयुक्त तीक्ष्ण, उष्ण, क्षार, लघु अग्निदीपक, मेधा के लिए हितकर पित्तकारक कफ तथा वात नाशक है। शूल उदररोग, खुजली, नेत्र तथा मुख संबंधी रोग, कुष्ठ रोग तथा पाण्डुरोग को समाप्त करने वाला होता है। यह विषाक्त भोजन तथा औषध के विष को समाप्त करता है। घाव में पैदा होने वाले पीप या पस को सुखाता है। इसमें विटामिन बी तथा कार्बोलिक एसिड होता है।

चौरासी लाख योनियों के प्राणियों में गाय ही एक ऐसा प्राणी है जिसका गोबर मल नहीं है, उत्कृष्ट कोटि का मलशोधक है। रोगाणु एवं विषाणु नाशक है तथा मित्र जीवाणुओं का पोषक है। यह कई रोगों में उपयोगी है। धर्मशास्त्र के रूप में प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘धर्मसिन्धु’ में पंचगव्य का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। यह पंचगव्य देह, मन, बुद्धि तथा शुद्धिकारक है। इससे आयु बल एवं तेज आदि की वृद्धि होती है। इन उपयोगों के अलावा यह खेती में भी उपयोगी है और धार्मिक दृष्टिकोण से भी विभिन्न अवसरों पर इन वस्तुओं का उपयोग पवित्रता के लिए किया जाता है। इस प्रकार के कई उपयोग आदि से गाय का एवं गोवर्द्धन का महत्व समझ में आता है। पर्यावरण एवं गायों के रक्षण एवं संवर्द्धन करने से भारत धार्मिक, राष्ट्रीय एवं आर्थिक रूप से सशक्त हो सकेगा।

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