दुर्दान्त विकास की रहस्यमयी गिरफ्तारी
– ऋतुपर्ण दवे
देखते ही देखते कई राज्यों के लिए चुनौती बना 8 पुलिसकर्मियों का हत्यारा और पहले 60 से ज्यादा जुर्मों का मोस्ट वान्टेड विकास आखिर हाथ आया तो अपनी गलती या योजना से, यह अभी साफ नहीं है। वह पकड़ा भी गया तो एक अदने से सुरक्षाकर्मी की सतर्क निगाहों और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता से। विकास दुबे को लेकर इस दौरान कई कहानियाँ सामने आईं, कई जगह उसकी मूवमेण्ट की बातें पता चली, आखिरी बार दो दिन पहले फरीदाबाद में भी कथित रूप से दिखा और ऑटो में बैठकर जाने वाला देश का मोस्टवान्टेड अपराधी कैसे कुछ ही घण्टों में 773 किमी दूर महाकाल के दरबार में पहुँच गया, यह अभी तो पहेली ही है।
विकास की गिरफ्तारी को लेकर जो सच सामने आया है उससे तो साफ लगता है कि उसने अपने एन्काउण्टर को मात देने के लिए ही तो कहीं यह षड्यंत्र नहीं रचा? श्रावण मास में ज्योतिर्लिंग महाकाल में दर्शन की नई व्यवस्था लागू है. जिसके तहत भक्तों की सुविधा के लिए प्रति व्यक्ति 250 रुपये के टिकट पर शीघ्र दर्शन हेतु सीधे प्रवेश की व्यवस्था है। जबकि नि:शुल्क दर्शन करने वाले भक्तों को महाकाल एप व टोल फ्री नंबर पर अग्रिम बुकिंग कराना होता है। इस महीने में सुबह 5.30 से रात्रि 9 बजे तक करीब साढ़े पंहद्र घंटे भक्त भगवान महाकाल के दर्शन की व्यवस्था की गई है। जाहिर है वह सीधे दर्शन के लिए जा रहा था लेकिन उसकी एक गलती या चालाकी ने शक पैदा कर दिया करा दिया। पहला शक उस दुकानदार को हुआ जिससे वह सुबह-सुबह 7 बजे मंदिर परिसर से पहले बाहर प्रसाद ले रहा था, जिसे उसकी लंगड़ाती चाल और चेहरे और डीलडौल देखते ही शक हो गया था। उसने तत्काल मंदिर के अंदर तैनात गार्ड तक अपनी बात पहुँचाई।
उसके बाद मंदिर के अन्दर प्रवेश के बाद महाकाल के दर्शन के लिए बजाए रुटीन प्रवेश के वह पीछे के दरवाजे से ही मास्क लगाकर घुसने की कोशिश करने लगा। जाहिर है उसकी अप्रत्याशित और बेढंगी हरकत वहां तैनात निजी सुरक्षाकर्मीं लखन यादव की निगाहों से नहीं बच पाई। लखन को शंका तो थी ही सो उसने विकास को टोका और आईडी पूछी, जिससे वह उलझ गया और यहीं से शुरू हुआ विवाद हाथापाई तक जा पहुँचा। इस बीच वह बेखौफ होकर अपना नाम विकास दुबे ही बताता रहा। लगता है कि यह उसके गिरफ्तार होने की योजना का हिस्सा था तभी तो उसने वहाँ झगड़ा किया। इस झगड़े में एक सुरक्षाकर्मी की घड़ी भी टूट गई। चूँकि वहाँ कई सुरक्षाकर्मी और पुलिस के जवान भी तैनात थे इसलिए तत्काल वायरलेस सेट मैसेज गया और तमाम सुरक्षा दल एक जगह आए। उसे तुरंत कब्जे में लेकर प्रसाद वाले लड्डू के तखत पर काबू कर बिठाया गया। तब तक पूरे उज्जैन पुलिस को यह खबर पहुँच चुकी थी। करीब घण्टे भर से ज्यादा वक्त तक उसे मंदिर में ही पकड़ कर रखा गया। उसके बाद उसे बाहर निकाला गया। वहाँ किस तरह से पुलिस की मौजूदगी में वह चीख-चीखकर कहता रहा कि वह कानपुर वाला वही विकास दुबे है जिसे चैनलों पर हर किसी ने देखा। सारी कड़ियों को जोड़ें तो लगता है कि उसने जिन्दा पकड़े जाने के लिए ही योजनाबध्द होकर तो कहीं यह सरेण्डर नहीं किया?
अब आगे क्या नई स्टोरी निकलती या बनती है यह तो नहीं मालूम लेकिन यह सच है कि उसका मप्र से एक गहरा कनेक्शन है जो दो दिन पहले ही सामने आया, जब उसका सगा साला ज्ञानेन्द्र निगम उर्फ राजू खुल्लर को हिरासत में लेने उप्र एसटीएफ की टीम शहडोल जिले के बुढ़ार नगर पहुँची थी। जहाँ राजू के न मिलने पर उसके 19 बरस के बेटे आदर्श को एसटीएफ ले गई। बाद में दूसरे दिन नाटकीय अंदाज में राजू शहडोल के एसपी कार्यालय के सामने प्रकट हुआ और खुद ही पुलिस कप्तान से मिला। यहाँ मीडिया के सामने ऑन कैमरा बयान भी दिया कि उसे अपने एनकाउण्टर का डर है, इसके बाद उसे भी उप्र एसटीएफ की टीम ले गई।
राजू और विकास कानपुर के पड़ोसी हैं तथा राजू की बहन से उसे इश्क हो गया था तो उसने शादी कर ली। राजू हत्या के दो मामलों में विकास के साथ शामिल था जो बरी होते ही कानपुर छोड़ मप्र आ गया। अहम बात यह है कि जब विकास किसी मामले में जेल में बन्द था तो राजू खुल्लर और उसकी बहन सोनू ने उसकी सल्तनत संभाल रखी थी लेकिन जब विकास जेल से बाहर आया तो उसकी कुछ सम्पत्तियों को लेकर राजू और सोनू में अनबन हो गई। उसके बाद 2006 में साले-बहनोई ने आपसी नाता तोड़ दिया। उसी समय से ज्ञानेन्द्र उर्फ राजु खुल्लर बुढ़ार में भूसा बेचने का धंधा करते हुए रह रहा है लेकिन सोनू से बात बना ली और सोनू नए तरीके से उसके जीवन में कुछ यूँ आई कि वह ऋचा बनकर न केवल पत्नी कहलाई बल्कि जिला पंचायत की सीढ़ियों तक पहुँच गई। बता दें कि राजू की बहन सोनू ही विकास की पत्नी ऋचा है जो इन दिनों उसकी हमराज और खास रणनीतिकार भी और फिलहाल गायब है। विकास के पकड़े जाने से पहले उसके कई खासमखास रहे साथी जरूर एन्काउण्टर में मारे गए जिनकी संख्या रोज बढ़ती जा रही है। इससे यह लगता है कि उसकी पूरी गैंग तहस-नहस हो चुकी है।
अब 5 लाख के इस इनामी बदमाश, जो अपने जिले के टॉप टेन अपराधियों तक की सूची में नहीं था, देखना होगा कि क्या-क्या राज उगलता है। निश्चित रूप से इसके पकड़े जाने से कइयों की धड़कनें बढ़ी होंगी क्योंकि जिस तरह से इसके कुछ पुराने बयानों में कई राजनीतिक दलों से इसकी करीबी दिखी, उससे जल्द ही यह मामला एक नई सियासत में रंगा दिखने वाला है। जाहिर है प्याज के अब छिलके उतरने शुरू होंगे और इसमें विकास की कहानी किस-किस मोड़ पर जाएगी यह तो नहीं पता लेकिन इतना जरूर है कि पूरे देश और दुनिया ने देखा कि किस तरह एक अपराधी कई राज्यों की पुलिस के लिए सिरदर्द बना रहा और न जाने कितने चेकपोस्ट और जाँच टीमों को चकमा देकर कहाँ से कहाँ बेधड़क पहुंच गया।
यकीनन विकास दुबे प्रकरण सिस्टम, इण्टेलिजेन्स और अपराधियों के जबरदस्त ताने-बाने के साइबर युग का वो नया उदाहरण बनेगा जिसने ट्रैकिंग और ट्रेसिंग के जमाने में भी सारे तंत्रों को अपने आपराधिक नेटवर्क के जैमर से पंगु बना दिया। लेकिन उम्मीद भी उसी सिस्टम से है जिसके लिए यह चुनौती बना। बस देखना है कि विकास के विनाश की अबूझ पहेली में कितने और क्या-क्या सच सामने आते हैं और अभेद्य किले से महाकाल की दर तक पहुँचने वाले इस दुर्दान्त अपराधी को कब और कैसी सजा मिलती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)