कोरोना ने दिखाई डिजिटल भुगतान की राह
– डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
अब इसे कोरोना का साइड इफेक्ट कहें या कुछ और पर इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना के बाद देश में डिजिटल लेन-देन अब आदत में शामिल होता जा रहा है। 2016 में नोटबंदी के बाद सरकार ने लोगों को अपने लेन-देन डिजिटल प्लेटफार्म पर करने के लिए प्रेरित किया और 2020 तक 40 अरब ट्रांजेक्शन का लक्ष्य रखा था जो न केवल हासिल कर लिया गया है अपितु 14 प्रतिशत अधिक ट्रांजेक्शन के साथ करीब 46 अरब को छू गया है।
दरअसल कई बातें समय और परिस्थितियों के अनुसार गति पकड़ती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लाॅकडाउन के कारण शुरुआती दौर में औद्योगिक गतिविधियों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई पर डिजिटल प्लेटफार्म के उपयोग के नए क्षेत्रों में तेजी दर्ज की गई। दरअसल कोरोना के कारण लोगों को एटीएम तक के उपयोग से संकोच होने लगा और इस कारण जरूरी भुगतान भले ही कम राशि के भुगतान हो पर वे डिजिटल प्लेटफार्म पर होने लगे हैं। करीब तीन माह के लाॅकडाउन व अब ओपनिंग के दौर में लोगों की आदत में ऑनलाईन लेन-देन आम होता जा रहा है। रेजरपे के अनुसार देश में एक नया रुझान और सामने आने लगा है। अब मेट्रोपोलिटन सिटीज से बाहर ऑनलाईन भुगतान की आदत में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी है। दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में डिजिटल भुगतान में बढ़ोतरी देखी जा रही है। डेबिट और क्रेडिट कार्ड से भुगतान में जहां 39 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी जा रही हैं वहीं नेटबैंकिंग क्षेत्र में भी लेन-देन में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अनुदान भुगतान में तो 148 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई है।
कोरोना के कारण सरकारी अनुदान वितरण में तेजी आई है। कोविड-19 में सरकार द्वारा गरीबों और जरूरतमंद लोगों तक ऑनलाइन सीधे उनके खातों में अनुदान की राशि उपलब्ध कराई है। इससे सबसे अधिक लाभ यह हुआ है कि कोरोना लाॅकडाउन और आर्थिक गतिविधियों के लगभग बंद रहने की स्थिति में जरूरतमंद लोगों को बड़ी राहत मिल सकी है। खास बात यह है कि डिजिटल भुगतान के कारण व्यवस्था में पारदर्शिता तो आई ही, लक्षित व्यक्ति तक एक रुपये में से 15 पैसा पहुंचने की स्थितियों में बदलाव आया है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि डिजिटल भुगतान से भ्रष्टाचार पर प्रभावी रोक लगी है। एक मोटे अनुमान के अनुसार दो साल पहले तक देश में प्रतिवर्ष सवा 3 लाख करोड़ रु. से अधिक की सब्सिडी दी जाती रही है। इसमें बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप, विभिन्न तरह की पेंशन योजनाएं, डीजल, एलपीजी, उर्वरकों सहित सरकार द्वारा लाभार्थियों को दी जाने वाली सब्सिडी शामिल है। इसमें करीब 12.5 करोड़ परिवारोें को मनरेगा कार्यक्रम में लाभान्वित किया जाता है। साढ़े छह करोड़ बीपीएल परिवारों को सब्सिडी की सुविधा दी जाती है। देश में डे़ढ़ करोड़ लोगों को वृद्धावस्था पेंशन दी जाती है। 55 लाख विद्यार्थियों को प्री मेट्कि और 7 लाख छात्रों को पोस्ट मैट्कि स्कॉलरशिप दी जाती है। मनरेगा, पेंशन, जननी सुरक्षा योजना सहित फ्लैगशिप कार्यक्रम व 22 तरह की स्काॅलरशिप के साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित होने वाले गेहूं, चावल, चीनी, केरोसीन आदि के साथ ही रसोई गैस, रासायनिक उर्वरक आदि व व्यक्तिगत की लाभ की योजनाओं में सब्सिडी का भुगतान किया जाता है।
एक समय माना यह जाता रहा है कि सब्सिडी की राशि लाभार्थियों तक पूरी पहुंच नहीं पाती। इसके अलावा उर्वरकों, पेट्रोल उत्पादोें आदि पर सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी सीधे उत्पादकों को जाने से आम लोगों को पता ही नहीं चलता कि सरकार द्वारा उन्हें किसी तरह की सब्सिडी दी भी जा रही है? सरकार का यह भी मानना है कि लाखों करोड़ों रुपए की सब्सिडी के बावजूद सरकार के प्रति लोगों का नजरिया नकारात्मक ही रहता है। पेंशन, स्काॅलरशिप आदि में भ्रष्टाचार व घोटालों के कारण भी सरकार की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। किसानों को करोड़ों रुपए की सब्सिडी देने के बाद भी उर्वरकों के भाव बढ़ने व बीज, बिजली, डीजल आदि महंगे होने का खामियाजा सरकार को ही भुगतना पड़ता है। ऐसे मेें सीधे खाते में डीबीटी से भुगतान से लाभार्थियों तक राशि पहुंचने लगी है।
यह तो अनुदान का सरकारी पक्ष है। पर दैनिक जीवन में लोगों को डिजिटल लेन-देन की जो आदत सरकार डालना चाहती है वह कोरोना के चलते कारगर होती जा रही है। अब तो गली के किराने की दुकान, सब्जी वाला, पान की दुकान वाला या फेरी लगाने वाला भी एप्स के माध्यम से भुगतान लेने लगा है। भले ही यह भुगतान छोटा हो, राशि का लेन-देन कम हो पर अब दस-बीस-पचास रुपए का भुगतान भी जिस तरह से डिजिटल प्लेटफार्म पर होने लगा है उससे नोट और एटीएम का उपयोग सीमित होने लगा है। पानी, बिजली, टेलीफोन, मोबाइल आदि जरुरी भुगतान डिजिटल प्लेटफार्म पर होने से लोगों को भुगतान को लेकर जो तनाव रहता था उसमें भी कमी आई है। पानी, बिजली, फोन के बिल के लिए लंबी लाइनें या ई-मित्र के चक्कर काटना अब बीते जमाने की बात होती जा रही है। इससे आम आदमी को बड़ी राहत मिली है। डिजिटल भुगतान अब आदत बनता जा रहा है। ऐसे में सरकार खासतौर से बैंकिंग संस्थाओं को कुछ राहतें या सुविधाएं लेकर आना चाहिए ताकि लोग और अधिक प्रोत्साहित व डिजिटल भुगतान के लिए प्रेरित हो सके।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)