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कोरोना का खतरा और होम्योपैथी

– डॉ. अनिरुद्ध वर्मा

कोविड 19 जिसे सामान्य भाषा में कोरोना वायरस कहा जाता है और जिसने दुनिया के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है, चिकित्सा विज्ञान अभीतक इसके बचाव का कोई टीका नहीं खोज पाया है। यही वजह है कि दुनिया के सभी देश इससे घबराए हुए हैं। चीन के वुहान शहर से चला कोरोना वायरस दुनिया के 200 से ज्यादा देशों में पहुंच गया है और जनस्वास्थ्य के लिए यह गंभीर खतरा बना हुआ है। इसने किसी को नहीं छोड़ा है, चाहे वह अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली आदि जैसे विकसित देश हों या भारत, पाकिस्तान, चिली, पेरू, इजरायल आदि जैसे विकासशील देश। यह हर देश मे तबाही मचा रहा है। यहां तक कि बड़े-बड़े देशों की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं भी इसके सामने बौनी पड़ रही हैं।

दुनिया भर में कोरोना वायरस से लगभग 20 लाख से अधिक लोग संक्रमित पाये गये हैं और सवा लाख से ज्यादा लोग मौत का शिकार हो चुके हैं। भारत में लगभग 12 हजार से अधिक लोग इससे संक्रमित पाये गए हैं और लगभग सवा चार सौ लोगों की मृत्यु हुई है। संतोष की बात यह है कि सरकार के त्वरित प्रयासों के कारण देश मे संक्रमण यूरोपीय देशों की तरह नहीं फैला है। इसकी गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया है।

जब महामारियों एवं संक्रामक रोगों से बचाव एवं उपचार की चर्चा होती है तब होम्योपैथी की चर्चा स्वाभाविक है क्योंकि होम्योपैथी का इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के आविष्कारक डॉ. हैनिमैन के समय से लेकर आजतक 200 वर्षों में होम्योपैथी के महामारियों के बचाव एवं उपचार में महत्वपूर्ण भमिका अदा करने के प्रमाण उपलब्ध हैं। डॉ. हैनिमैन ने अपने जीवनकाल में ही वर्ष 1799 में स्कारलेट फीवर से बचाव के लिए बेलाडोना औषधि का प्रयोग कर सफलता प्राप्त की थी। पर्सियन सरकार ने भी स्कारलेट फीवर से बचाव के किये बेलाडोना का प्रयोग कर सफलता प्राप्त की थी। डॉ. हैनिमैन ने स्वयं 1831 में एशियाटिक कॉलरा के बचाव एवं उपचार में कैम्फर, क्यूपरममेट तथा वेरेटरम एल्बम का प्रयोग कर सफलता प्राप्त करने का जिक्र किया है। डॉ. वोगरवोनिंगहसन ने 1849 में यूरोपीय देशों में फैले एशियाटिक कॉलरा का बचाव एवं उपचार इन्हीं होम्योपैथिक दवाइयों से किया था। जोहान्सबर्ग के डॉ. टाइलर स्मिथ एवं शिकागो के डॉ. ग्रिमर ने 1850 में पोलियोमिलिटिस के उपचार के लिए लथायर्स का प्रयोग अनेक रोगियों में किया था।

देश में वर्ष 1996 एवं 2015 में डेंगू से बचाव के लिए इपिटोरियुम पर्फ का प्रयोग कर इसपर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त किया गया था। जापानी इन्सेफलाइटिस से रोकथाम के लिए वर्ष 1999 में आंध्र प्रदेश ने भारतीय चिकित्सा पद्धतियों एवं होम्योपैथी विभाग भारत सरकार के सहयोग से अभियान चलाया था जिसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए थे। इसके अतिरिक्त समय-समय पर स्वाइन फ्लू, चिकुनगुनिया, मीजल्स, चिकेन पॉक्स, मम्प्स, हूपिंग कफ, एलो फीवर आदि संक्रामक रोगों से बचाव एवं उनके उपचार में होम्योपैथिक दवाइयां अपनी कार्यकारिता साबित कर चुकी हैं। इनके प्रयोग से इन संक्रमणों पर नियंत्रण प्राप्त करने में काफी सहयोग प्राप्त हुआ था। होम्योपैथिक औषधियों के प्रयोग के फलस्वरूप मृत्यु दर में कमी आई तथा जटिलताएं भी कम हुईं।

कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के संकट में होम्योपैथी को याद करना केवल प्रासंगिक ही नहीं बल्कि आज के दौर में महत्वपूर्ण जरूरत भी है।महामारियों के बचाव एवं उपचार में होम्योपैथी की प्रभाविकता के अनेक प्रामाणिक उदाहरण उपलब्ध होने के बावजूद अनेक जानलेवा संक्रामक बीमारियों में जनता की जीवन रक्षा के लिए होम्योपैथी का पूरी तरह उपयोग नहीं हो पा रहा है जबकि लोगों की जान बचाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण पूरी दुनिया दहशत में है। हर देश अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए हरसंभव उपाय कर रहा है। यहां तक कि पारंपरिक पद्धतियों का भी सहारा लिया जा रहा है परंतु अभी अपने देश में सरकार होम्योपैथी पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रही है।

होम्योपैथी के संबंध में यह तर्क दिया जा रहा है कि होम्योपैथी में कोरोना के उपचार के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। यह रोग पहली बार हुआ है और होम्योपैथी में रोगी के लक्षणों के आधार पर उपचार होता है। प्रमाण किसी भी पद्धति के पास नहीं है फिर भी उपचार किया जा रहा है। होम्योपैथी में संक्रामक रोगों के उपचार की असीमित संभावनाएं निहित हैं बस जरूरत है उसे आजमाने की।

होम्योपैथिक औषधियों के काम करने का तरीका एकदम सरल है और जब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अपने हाथ खड़ा कर रहा हो, ऐसी स्थिति में होम्योपैथी अच्छा विकल्प साबित हो सकती है। इस महामारी से निपटने के लिये समय आ गया है कि चिकित्सा पद्धतियों की आपसी प्रतिस्पर्धा से बाहर निकलकर एक समन्वित तरीका अपनाया जाए जिसमें होम्योपैथी को भी शामिल किया जाए। कोरोना महामारी ने दुनिया के समक्ष जो परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं उनसे निपटने के लिए जरूरत है कि सभी पद्धतियों को आपसी समन्वय बनाकर इस आपदा से बाहर निकलने का प्रयास किया जाए।

(लेखक वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक हैं।)

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