कोरोना काल में देश को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प
– सियाराम पांडेय ‘शांत’
तीसरे चरण के लॉकडाउन की समाप्ति में चंद दिन शेष रह गए हैं। लॉकडाउन समाप्त होगा या और बढ़ेगा, इसे लेकर पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर हसरत भरी नजरों से देख रहा था लेकिन उनके संभाषण में आत्मनिर्भर भारत की कल्पना तो दिखी लेकिन लॉकडाउन खत्म होने का कोई संकेत नजर नहीं आया। नियमों का पालन करते हुए अलबत्ते देशवासियों को कोरोना से लड़ने और आगे बढ़ने की सलाह जरूर दी। इससे साफ है कि सरकार का ध्यान अब देश को अपने पैरों पर खड़ा करने का है। वह कोरोना वायरस के संक्रमण का जानलेवा रिस्क भी नहीं लेना चाहती लेकिन अर्थव्यवस्था को भी ध्वस्त होते नहीं देखना चाहती। शायद यही वजह है कि आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। उन्होंने इस बात की देशवासियों को आश्वस्ति भी दिलाई है कि लॉकडाउन का चौथा चरण नए रंग रूप वाला ही नहीं, नए नियमों वाला भी होगा।
उन्होंने कहा कि हाल ही में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी आर्थिक घोषणाएं की थीं, रिजर्व बैंक ने फैसले किये थे। आज जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान हो रहा है, उसे जोड़कर यह पैकेज करीब 20 लाख करोड़ रुपए का है। सही मायने में यह पैकेज भारत की जीडीपी का तकरीबन 10 प्रतिशत है। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए सरकार इस पैकेज में भूमि, श्रमिक, नकदी और कानून सभी पर बल दे रही है। यह आर्थिक पैकेज कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, लघु एवं मध्यम उद्योग, एमएसएमई को तो संजीवनी देगा ही, लोगों की आजीविका का साधन एवं आत्मनिर्भर भारत के संकल्प का मजबूत आधार भी साबित होगा। देश को आत्मनिर्भर बनाने की यह सोच निश्चित ही काबिले तारीफ है।
एक दिन पूर्व ही कोरोना महामारी और लॉकडाउन से निपटने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत की थी। उसमें अनेक मुख्यमंत्रियों का कहना था कि लॉकडाउन नहीं हटना चाहिए लेकिन औद्योगिक गतिविधियां आरंभ की जानी चाहिए। इसकी छूट मिलनी चाहिए।
किसी विषय पर देश और राज्यों के जिम्मेदारों के बीच 6 घंटे की बहस मायने रखती है। संवाद से रास्ता निकलता है। कोराना आज की वैश्विक समस्या है। ऐसी समस्या जिसका समाधान नहीं तलाशा जा सका है। दुनिया भर के देश परेशान हैं। संक्रमण को रोकने के लिए उन्होंने लॉकडाउन की राह तो पकड़ ली है लेकिन उसके प्रतिकूल प्रभाव भी कुछ कम नहीं हैं। दुनिया भर की अर्थव्यव्यवस्था चरमरा गई है। स्विटजरलैंड जैसे संपन्न देश के लोग भी अगर भोजन की कतार में लग रहे हैं तो इससे स्थिति की भयावहता आसानी से समझा जा सकता है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है लेकिन उसके लिए धैर्य की बात यह है कि उसके पास एक सुलझा हुआ प्रधानमंत्री है।
वैसे भी लॉकडाउन किसी भी देश का स्थायी भाव नहीं हो सकता। होना भी नहीं चाहिए। लॉकडाउन कोरोना से बचाव की सावधानी भर है लेकिन सावधानी पर ही आश्रित तो नहीं रहा जा सकता। रूस ने अपने देश से पूरी तरह लॉकडाउन हटा लिया है। अमेरिका और ब्रिटेन भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं लेकिन यह बेहद आत्मघाती कदम है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि एक साल तक तो कोरोना टीका मिलने नहीं जा रहा है और हो सकता है कि भविष्य में कभी भी कोरोना रोधीवैक्सीन मिल ही न सके। इसे हताशा की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या कहा जाएगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन को पूरी तरह नहीं हटाने का संकेत दिया है लेकिन प्रतिबंधों में धीरे-धीरे छूट देने की बात जरूर कही है। लॉकडाउन के पहले तीन चरण में किए गए उपायों की जरूरत पर भी मंथन की बात कही है। 15 मई तक राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सुझाव आमंत्रित किए हैं जिससे पता चल सके कि वे अपने-अपने राज्यों में लॉॅकडाउन की व्यवस्था से कैसे निपटेंगे? प्रधानमंत्री इस बात को लेकर तो चिंतित हैं कि देश की अर्थव्यवस्था सुधरनी चाहिए लेकिन उनकी चिंता के केंद्र में देश के गांव भी हैं, जहां इस बीमारी को नहीं पहुंचना चाहिए। सवाल यह है कि जब देश के विभिन्न राज्यों से, विदेशों में काम करने वाले श्रमिक गांव पहुंचेंगे तो गांव संक्रमण से कैसे बच पाएंगे, यह अपने आप में बड़ा सवाल है।
प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से कोरोना के संक्रमण की दर घटाने और दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए सार्वजनिक गतिविधियों को धीरे-धीरे बढ़ाने को कहा है। उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया कोविड-19 के बाद बदल गई है। अब वह कोरोना से पूर्व और कोरोना के बाद के रूप में जानी जाएगी। इससे हमारे कामकाज के तरीके बदलेंगे। कुछ राज्य अगर ट्रेनों के संचालन के पक्ष में हैं तो कुछ विरोध में। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चाहते हैं कि आपात सेवाओं के कर्मचारियों के लिए मुंबई में लोकल ट्रेन सेवाएं शुरू की जाएं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो जनता से ही राय मांग ली है। वैसे प्रधानमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का जो मंत्र दिया है, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों का साथ मिला तो भारत को आत्मनिर्भर बनते देर नहीं लगेगी।
वैसे जिस तरह चीन, नेपाल और पाकिस्तान भारत के समक्ष सीमाई चुनौतियां पेश कर रहे हैं, उससे उसे थोड़ी परेशानी जरूर हो सकती है लेकिन जरा -सी सावधानी बरतकर वह चीन की कुचालों को शिकस्त भी दे सकता है और दुनिया के अन्य देशों का दिल भी जीत सकता है। कोरोना के बढ़ते मामले चिंता का सबब जरूर हैं लेकिन अगर हर भारतवासी ठान ले तो कोरोना को शिकस्त देना मुश्किल भी नहीं। लॉकडाउन से निपटने और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाने का राज्यों का फार्मूला क्या होगा, यह तो 15 को पता चलेगा लेकिन इतना तय है कि यह कोरोना बहुत कुछ बदल जरूर देगा। किसी देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज कम नहीं होता; ईमानदारी से उसका उपय हो तो भारत को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प पूरा होते देर नहीं लगेगी। देखना यह होा कि इस संकल्प को लेकर हम कितने गंभीर हैं।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)