चीन सीमा तक सड़क पहुंचने से सीमांत क्षेत्र में खुशी की लहर, आजादी के 7 दशक बाद मिली लाइफ लाइन
पिथौरागढ़ । पिथौरागढ़ से अब चीन सीमा तक सड़क मार्ग से वाहन द्वारा पहुंचा जा सकेगा। बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन (बीआरओ) ने लिपुलेख दर्रे तक सड़क पहुंचा दी है। ये लम्हा पिथौरागढ़ के बॉर्डर इलाकों में रहने वालों के लिए तो यादगार है ही, सुरक्षा के लिहाज से भी खासा अहम है। बीआरओ ने 12 साल की कड़ी मशक्कत के बाद घटियाबगड़ से लिपुलेख तक 74 किलोमीटर की सड़क काट ली है। चीन और नेपाल से सटा ये इलाका अब तक सड़क से महरूम था। आजादी के सात दशक बाद व्यास घाटी के 7 गांवों ने सड़क के दीदार किये हैं। ऐसे में सीमांत क्षेत्र के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है।
लिपुलेख तक सड़क बनने से यात्रा पड़ाव मालपा और लामारी के साथ ही व्यास घाटी के बूंदी, गर्ब्यांग, नपलच्यु, गूंजी, नाबी, रोंगकोंग और कुटी गांव की हजारों को आबादी को राहत मिलेगी। यही नहीं, नेपाल के दूरस्थ गांव छांगरु और टिंकर के लोगों को भी सुविधा मिलेगी। नाबी की ग्राम प्रधान सनम देवी का कहना है कि सड़क पहुंचने से जहां द्वितीय रक्षा पंक्ति कहे जाने वाले सीमांत के प्रहरियों को राहत मिली है वहीं नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज इस इलाके में पर्यटन का भी विकास होगा। रोंगकोंग की ग्राम प्रधान अंजू देवी ने बताया कि उनका गांव अभी भी सड़क सुविधा से नही जुड़ा है। ऐसे में सरकार को नपलच्यू से रोंगकोंग को जोड़ने के लिए सड़क बनाने की जरूरत है। ताकि उनके गांव के लोग भी सड़क सुविधा से जुड़ सके। रं कल्याण संस्था के पूर्व अध्यक्ष कृष्णा गर्ब्याल का कहना है कि लोग अब तक पोनी पोटर्स के सहारे दुर्गम रास्तों से होकर गांव जाते थे, जिस कारण उनकी जान को खतरा बना रहता था लेकिन सड़क पहुंचने से लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि ये इलाका आपदा की दृष्टि से जोन-5 में आता है। सड़क बनने से यहां आपदा राहत कार्यों को संचालित करने में मदद मिलेगी।
लिपुलेख तक सड़क बनाना इसलिए भी अहम माना जा रहा है कि दुनिया की सबसे कठिन पहाड़ियों को काटकर इसे तैयार किया गया है। लखनपुर और नजंग की पहाड़ियों को काटना बेहद कठिन था। इस सड़क को काटने में पिछले दस सालों में ग्रिफ के एक जूनियर इंजीनियर, दो ऑपरेटरों और छह स्थानीय मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी। साथ ही करोड़ों रुपये की मशीनें भी सड़क निर्माण के दौरान इन चट्टानों के नीचे दफन हो गयी हैं। लिपुलेख रोड का सुरक्षा के नजरिए से भी खासा महत्व है। बॉर्डर पर तैनात सेना, आईटीबीपी, और एसएसबी का सफर जो कई दिनों में तय होता था, अब वो घंटों में पूरा हो जाएगा। यही नहीं, कैलाश-मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को भी दुर्गम पैदल सफर से मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही इंडो-चाइना ट्रेड की राह भी इस सड़क के बनने से आसान हो गई है। हालांकि तकनीकी कारणों से अभी भी लिपुलेख से कुछ पहले तक ही सड़क बनी है लेकिन डीजीएमओ की रोक हटने पर ये कटिंग भी पूरी हो जाएगी।
12 साल के सफर में कई झंझावतों को पार कर बीआरओ ने वो कर दिखाया जो कभी सपना लगता था। मगर अभी भी सड़क को चौड़ा करने के साथ ही डामरीकरण होना शेष है। साथ ही मालपा और बूदी में दो पुल भी बनने बाकी हैं। इसके बावजूद पहले चरण में इसे सुरक्षा एजेन्सियों के लिए तैयार कर लिया गया है और जल्द ही आम लोगों की भी यहां आवाजाही हो जाएगी।
चीन सीमा को जोड़ने वाली ये सड़क जहां सीमांत क्षेत्र के लोगों के लिए वरदान है, वहीं कई परिवारों के लिए ये अभिशाप भी साबित हो रही है। सड़क से जुड़ने से हजारों पोनी पोर्टर्स और कंधे में लादकर समान ढोने वालों की आजीविका खतरे में पड़ गयी है। अब तक ये लोग सीमांत क्षेत्रों में सामान लादकर पहुंचाने का 2 से 3 हजार रुपये लेते थे। उसी से इनकी आजीविका चलती थी लेकिन सड़क बनने से इनका एक मात्र रोजगार भी छिन गया है। पोनी-पोटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जगत मर्तोलिया का कहना है कि सड़क बनने से सीमांत क्षेत्र के कई पोनी पोर्टर्स की आजीविका खतरे में है। ऐसे में सरकार को इन लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है।