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बदल रही जम्मू-कश्मीर की तस्वीर

– योगेश कुमार सोनी

जम्मू-कश्मीर से अच्छी खबरों का आना जारी है। आतंकवादियों से तो प्रभावी ढंग से निपटा ही जा रहा है, इसबार ऐसी खबर आई है जिससे यहां तस्वीर के साथ-साथ तकदीर भी बदलती नजर आ रही है। बीते रविवार भारतीय सेना ने बताया कि अब आतंकियों को कश्मीर के लोगों को समर्थन नहीं मिल रहा है। पिछले कुछ समय से यहां के युवाओं ने आतंकी संगठनों को ज्वाइन नहीं किया बल्कि इसके विपरीत सेना में भर्ती होने के लिए अपना पंजीकरण करा रहे हैं। इस आधार पर यह तय हो जाता है कि यहां के नागरिक अब शांति व खुशहाली से जीवन जीना चाहते हैं।

सेना के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल सोमशेखर राजू ने बताया कि आतंकवादी इन इलाकों में सिर्फ सनसनी बनाए रखना चाहते हैं। हमेशा से पाकिस्तान का गुणगान करने वाले अलगाववादी नेता इस तरह का प्रोपेगेंडा चलाते हैं, जिससे यहां वे आतंकवाद के नाम पर अपनी रोजी-रोटी चलाते रहें लेकिन अब स्थानीय लोगों ने समर्थन देना बंद कर दिया जिससे आतंकवाद की कमर टूट रही है। इस वर्ष सेना में अगामी भर्ती के लिए दस हजार युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है। पिछले वर्ष यह पांच हजार के लगभग था और उससे पहले बहुत ही कम होता था। लगातार बढ़ रहे आंकडों से सबसे ज्यादा झटका उनको लगा है जो यहां लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर जहर की खेती कर रहे थे।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही बदलाव की यह बयार बड़े स्तर पर देखने का मिल रही थी। विगत दिनों धारा 370 हटी तो यहां के लोगों ने और ज्यादा आजादी महसूस की जिससे इनको इस बात की प्रमाणिकता मिल गई अब यहां के हाल बिल्कुल गए बदल गए जिससे अब किसी से डरने की जरुरत नहीं है। इस बात की जानकारी बहुत ही कम लोगों के पास होगी कि अलगावादियों की सुरक्षा व अन्य जीवन प्रक्रिया पर करोड़ों रुपये खर्च होते थे। 2016 में केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट मे बताया गया था कि 2009 से 2014 तक अलगाववादियों को सुरक्षित स्थलों पर ठहरवाने, देश-विदेश की यात्राएं करवाने व स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के अलावा भी कई प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती थी जिसका 5 साल में 560 करोड़ रुपये का खर्चा आया था। इस हिसाब से सालाना 112 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इतने बजट से किसी अन्य बड़ी योजना को अंजाम दिया जा सकता था जिससे देश का भला होता। कांग्रेस सरकार में इन अलगाववादियों को भरपूर सुविधाएं मिलीं। इनकी निजी सुरक्षा में लगभग 500 व इनके आवास पर 1000 जवान तैनात रहते थे। जम्मू-कश्मीर के 22 जिलों में 670 अलगाववादियों को विशेष सुरक्षा प्रदान की गई थी। जबकि इन नेताओं का काम सिर्फ पाकिस्तान के पक्ष की बातें करना या उनकी चमचागिरी करना था।

बंटवारे से लेकर अबतक हिन्दुस्तान इस दुर्भाग्य से जूझ रहा था लेकिन जबसे मोदी सरकार ऐसी घटनाओं को लेकर एक्शन में आई तब से सब पूरी तरह बदल गया। जम्मू-कश्मीर में जवान होते हैं लड़कियों को बुर्का और लड़कों के हाथ में पत्थर पकड़ा दिया जाता था। कुछ युवाओं को धर्म के नाम भड़काकर उनको आतंकी बना दिया जाता था तो कुछ इन लोगों के डर की वजह से इनके आगे घुटने टेक देते थे। यदि वे विरोध भी करते थे तो शासन-प्रशासन कुछ नहीं कर पाता था। दिहाड़ी वाले पत्थरबाजों को कतई भी एहसास नही था कि जितने भी अलगाववादी व हुर्रियत नेता है वे आलीशान कोठियों मे रहते हैं व इनके बच्चे देश-विदेश की सबसे महंगी व अच्छी जगहों पर पढ़ते हैं। लेकिन अब यहां की जनता को सारा खेल समझ आ चुका है। धर्म के नाम पर कट्टरता फैलाने का खेल अब नहीं चल रहा। हर चीज का अति बुरी होती है और उसका अंत भी होता है, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को लेकर ऐसा ही हो रहा है।

पिछली सरकारों ने सिस्टम को ऐसा बनाया हुआ था जम्मू-कश्मीर की जनता उस मानसिकता से बाहर ही नहीं आ रही थी। यहां की आवाम की सोच को कभी उभरने का मौका ही नहीं दिया चूंकि नेताओं के साथ दुनिया ने भी यह मान लिया था कि यहां से धारा 370 व 35ए कभी नहीं हट सकती। जिस वजह से यहां की आवाम में इतनी दहशत थी कि आतंकियों के सामने झुकने के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं है। जब भी कोई बात होती थी तो कहा जाता था कि यहां की जनता नहीं चाहती कि वे हिन्दुस्तान का हिस्सा बने लेकिन मोदी सरकार की नीतियों के कारण अब जितने भी गद्दार नेता हैं वे भी अपने को देशभक्त बताने में लगे हैं। पिछले कुछ समय से यहां के युवाओं ने कई क्षेत्रों में नाम रोशन किया है। ऐसे बच्चों का केन्द्र सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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