नई दिल्ली (ईएमएस)। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला अति बेशकीमती पेड़ भोज पत्र धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है। तंत्र साधना से लेकर प्राचीन हिन्दू धर्मग्रन्थों के संग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले भोज पत्र के पेड़ जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। अब यह दुलर्भ पेड़ महज गोमुख में भोजवासा और मद्महेश्वर धाम के ऊपरी क्षेत्रों में ही सीमित मात्रा में दिखाई दे रहे हैं। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसके संरक्षण पर चिंता जताते हुए कहा कि इन पेड़ों को संरक्षण की आवश्यकता है, वरना पेड़ विलुप्त हो जाएंगे। उच्च हिमालयी क्षेत्र के पौधों की जानकारी रखने वाले अगस्त्य मुनि महाविद्यालय के प्राचार्य और प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी प्रोफेसर जीएस रजवार का मानना है कि यह पेड़ अति दुर्लभ हैं और सिर्फ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पैदा होते हैं।
धीरे-धीरे भोज पत्र के जंगल सिमटते जा रहे हैं, जिसके पीछे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। उन्होंने बताया कि अगर हालात यही रहे तो आने वाले दिनों में ये पेड़ महज कल्पनाओ में ही रहेंगे। पौराणिक काल में इसका काफी उपयोग था। इसकी छाल से पांडुलिपियां तैयार की जाती थीं और तन्त्र साधना के दौरान भी इसका प्रयोग किया जाता था। प्रर्यावरणविद् जगत सिंह चौधरी जंगजी का मानना है कि विकास के नाम पर जिस तरह से प्रकृति का अवैज्ञानिक तरीके से दोहन हो रहा है, वह हिमालयीय क्षेत्रों के लिए एक बड़ा खतरा है। इसके चलते ग्लेश्यिर पीछे खिसकते जा रहे हैं और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली वनस्पति और पेड़ समाप्ति की कगार पर हैं।