वीर सावरकर भी थे साम्यवादी क्रांति के महानायक लेनिन के प्रशंसक
नई दिल्ली (ईएमएस)। त्रिपुरा में लोगों ने लेनिन की मूर्ति तोड़ी तो अनेक दक्षिणपंथी नेताओं ने इसे वाजिब ठहराने का प्रयास किया, लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हिंदुत्व के प्रतीक पुरुष वीर सावरकर स्वयं साम्यवादी क्रांति के महानायक व्लादीमीर लेनिन के प्रशंसक थे और उनसे लंदन में मिले थे। यही नहीं, लेनिन स्वयं भारत की आजादी के पक्षधर थे।
साम्यवाद के अंध विरोधी भाजपा-आरएसएस के समर्थकों को यह जानकर हैरानी होगी कि हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वाले विनायक दामोदर सावरकर, लेनिन के प्रशंसक थे। वह अक्सर रूसी नेताओं द्वारा लिखे जाने वाले पर्चों को पढ़ते थे। सभी जानते हैं कि सावरकर महात्मा गांधी की विचारधारा को पसंद नहीं करते थे। उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसक स्वतंत्रता संग्राम के विचार का विरोध किया था। इस मामले में सावरकर लेनिन जैसे क्रांतिकारियों को ज्यादा व्यावहारिक मानते थे। बीसवीं सदी में देश से बाहर स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र लंदन का इंडिया हाउस था।
क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 में लंदन में एक मकान खरीदा था, जिसे बाद में भारतीय छात्रों के हॉस्टल के रूप में इंडिया हाउस में बदल दिया गया। इसके उद्घाटन समारोह में स्वतंत्रता संग्राम के अगुवा दादाभाई नौरोजी, लाला लाजपत राय और मैडम भीकाजी कामा गई थीं। ब्रिटिश शासन के दौरान यह भारत की आजादी के आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया था।
सन 1906 में वीर सावरकर कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए थे। उन्होंने तीन साल तक इंडिया हाउस में रह कर पढ़ाई की। वे एक प्रखर वक्ता थे, जिसकी वजह से जल्दी ही लंदन में रहने वाले भारतीयों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए। इंडिया हाउस में अक्सर दूसरे देशों जैसे रूस, आयरलैंड, टर्की, मिस्र, ईरान और चीन जैसे देशों के क्रांतिकारी नेता आते थे। सावरकर के एक ब्रिटिश मित्र थे जी. अल्फ्रेड जिनका संपर्क रूसी क्रांति के नायक लेनिन से था। लेनिन की उन दिनों रूस से लेकर यूरोप तक ख्याति थी।
वीर सावरकर के जीवन पर आधारित वेबसाइट के अनुसार अल्फ्रेड 1909 में लेनिन को वीर सावरकर से मिलाने के लिए इंडिया हाउस लेकर गए थे। बताया जाता है कि लेनिन चार बार इंडिया हाउस गए थे। यह पता नहीं चल पाया है कि दोनों की मुलाकात के दौरान क्या बातें हुईं थीं, लेकिन यह कहा जाता है कि सावरकर इन मुलाकातों के बाद लेनिन के विचारों से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने जार के शासन वाले रूस में बदलाव लाने के लेनिन के तरीके की सराहना की। बाद में यही सावरकर जनसंघ, भाजपा और तमाम दक्षिणपंथी संगठनों के प्रेरणास्रोत बन गए।